अम्मा’ और ‘कलाईनार’ के बिना बिछेगी तमिलनाडु की बिसात

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राकेश कुमार अग्रवाल
तमिलनाडु की गत पचास वर्षों की राजनीति में नए वर्ष में यह पहला विधानसभा चुनाव होने जा रहा है जिसमें तमिलनाडु की राजनीति के दो पर्याय अम्मा ( जयललिता ) और कलाईनार ( एम . करुणानिधि ) की गैर मौजूदगी में इस बार के विधानसभा चुनाव होंगे .
तमिलनाडु में मई 2021 में विधानसभा चुनाव होना हैं . दक्षिण भारत में बसा तमिलनाडु , भारत का अंतिम राज्य है . विधानसभा सीटों की संख्या की दृष्टि से तमिलनाडु देश में उत्तर प्रदेश , पश्चिमी बंगाल , महाराष्ट्र और बिहार के बाद पांचवा बडा राज्य है . जहां विधानसभा की 234 सीटें हैं . आजादी के बाद से 1967 तक इस राज्य में कांग्रेस सत्ता में रही . 1967 के बाद से कांग्रेस तमिलनाडु में सत्ता की लडाई से बाहर है . गत पचास वर्षों से तमिलनाडु की राजनीति में दो क्षेत्रीय दलों द्रमुक और अन्नाद्रमुक का कब्जा है . यही दोनों दल सत्ता की दावेदारी के लिए लगातार आमने सामने रहते आए हैं . इस राज्य में कांग्रेस के अलावा अन्य राजनीतिक दल ज्यादा कुछ हासिल नहीं कर सके हैं . 2021 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी व फिल्म सुपरस्टार रजनीकांत जरूर हलचल पैदा करने की जुगत में है .
एआईडीएमके लगातार दो चुनावों 2011 व 2016 में जीतकर जीत की हैट्रिक की कगार पर है वहीं द्रमुक इस बार एआईडीएमके के जीत के सिलसिले को तोडकर सत्ता पर काबिज होना चाहेगी . लेकिन इन दोनों पार्टियों के लिए यह सब इतना सहज नहीं है . जिस तरह बिहार विधानसभा चुनाव दो बडी राजनीतिक हस्तियों लालू प्रसाद यादव ( जेल में बंद हैं ) एवं रामविलास पासवान ( निधन हो गया था ) की गैर मौजूदगी में लडा गया कमोवेश वैसे ही हाल तमिलनाडु में हैं . 1991 से 2016 तक तमिलनाडु की 14 सालों से अधिक समय तक मुख्यमंत्री रहीं जे . जयललिता का 5 दिसम्बर 2016 को 68 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था . डेढ साल बाद तमिलनाडु की राजनीति के प्रमुख स्तम्भ एवं द्रविण मुन्नेत्र कडगम पार्टी प्रमुख एम .करुणानिधि का 07 अगस्त 2018 को 94 वर्ष की आयु में निधन हो गया . साठ साल के राजनीतिक कैरियर में एम . करुणानिधि पांच बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे . इस तरह से दो दिग्गजों के जाने के बाद तमिलनाडु के चुनावों में इस बार केवल इन पार्टी के कार्यकर्ताओं एवं पदाधिकारियों ही नहीं मतदाताओं को भी इन दिग्गजों की कमी खलेगी . 2006 एवं 2011 के चुनावों में राज्य की ज्यादातर सीटें द्रमुक और अन्नाद्रमुक के खाते में गई थीं . 2006 के चुनाव में 163 सीटें जीतकर द्रमुक ने सरकार बनाई थी लेकिन 2 जी घोटाले की गूंज के चलते 2011 में द्रमुक को सत्ता से हाथ धोना पडा था . अन्नाद्रमुक ने 203 सीटें जीतकर दो तिहाई बहुमत से सरकार सरकार बनाई थी . हालांकि 2016 के चुनावों में अन्नाद्रमुक सरकार बनाने में कामयाब तो रही थी लेकिन पहले की तरह सीटें हासिल नहीं कर सकी थी . अन्नाद्रमुक ने 134 सीटें जीतकर फिर से सरकार बना ली थी . कांग्रेस ने जरूर 2016 के चुनावों में 8 सीटें हासिल करने में सफलता पाई थी .
जे . जयललिता व एम. करुणानिधि के बिना भाजपा व फिल्म अभिनेता रजनीकांत को लगने लगा है कि वे तमिलनाडु की राजनीति में अपनी पैठ बना सकते हैं. इसलिए इस बार के चुनाव में भाजपा पूरी ताकत झोंक रही है . चुनावों के लिए भाजपा ने सत्तारूढ एआईडीएमके से गठबंधन कर लिया है. क्योंकि मुख्यमंत्री जीत की हैट्रिक के लिए कोई कोर कसर नहीं छोडना चाहते हैं . रजनीकांत नए वर्ष की शुरुआत में ही अपनी नई राजनीतिक पार्टी के लांच करने की पहले से घोषणा कर चुके हैं . उन्होंने राज्य की सभी विधानसभा सीटों से प्रत्याशी उतारने की बात भी कही है . हालांकि द्रमुक रजनीकांत को भाजपा की बी टीम बताने से नहीं चूक रही है .
द्रमुक की बागडोर इस समय एम. करुणानिधि के बेटे एम के स्टालिन के पास है . करुणानिधि के बेटे अलागिरी को लेकर एक शिगूफा भी खूब सुर्खियों में रहा कि अलागिरी अपने गुट को लेकर भाजपा के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लडेंगे . हालांकि बाद में खुद अलागिरी को इसका खंडन करना पडा . दो पंचवर्षीय से सत्ता से बाहर द्रमुक इस बार किसी भी सूरत में सत्ता में पुनर्वापसी चाहती है . इसलिए उसने चुनाव रणनीतिज्ञ प्रशांत किशोर की सेवायें लेने का फैसला किया है . मुख्यमंत्री ई . के . पलानीस्वामी को भरोसा है कि अपने काम के बल पर उनकी पार्टी फिर से सत्ता में वापसी करेगी . भाजपा यदि अपना खाता खोलती है तो सुदूरवर्ती दक्षिण भारत में बतौर राजनीतिक दल प्रवेश का उसका रास्ता खुल जाएगा . लेकिन पार्टी तमिलनाडु में बहुत बडा चमत्कार कर देगी ऐसी संभावना नहीं है . कांग्रेस भी इस राज्य में अस्तित्व की लडाई लड रही है . पिछले चुनाव में जीतीं आठ सीटों को वह दहाई में बदल पाती है या नहीं यह देखने की बात होगी . जहां तक रजनीकांत के राजनीतिक पार्टी बनाने का सवाल है वे एम. जी रामचंद्रन , जयललिता , या फिर करुणानिधि जिनका राजनीति में आने से पहले सिने संसार से वास्ता रहा है . रजनीकांत भी उसी स्टारडम को भुनाने की सोच रहे हैं . लेकिन रजनीकांत उम्र के जिस पडाव पर हैं वे बहुत बडी राजनीतिक उपलब्धि हासिल करने की स्थिति में नहीं हैं . इतना जरूर हो सकता है कि वे किसी राजनीतिक दल का खेल जरूर बिगाड दें . सभी की निगाहें बंगाल के साथ तमिलनाडु विधानसभा चुनावों पर भी रहेंगीं .

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