आँकड़े बेहतरी के लिए भी और भरमाने के लिए भी

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राकेश कुमार अग्रवाल
जिस तरह से वाहनों को चलाने के लिए ईंधन जरूरी है . इंटरनेट को चलाने के लिए डेटा जरूरी है . कमोवेश उसी तरह से किसी भी योजना को फलीभूत करने के लिए आँकडे जरूरी हैं .
आँकडे जिन्हें हम डाटा ( DATA ) के नाम से भी जानते हैं . यह एक तरह से तथ्यों व सूचनाओं का लेखा जोखा है . जिनके आधार पर नीतियां बनाकर उन्हें लागू किया जाता है . आँकडे जुटाने का काम नया नहीं है . ऋग्वेद में भी इसका उल्लेख मिलता है . 800-600 बीसी में देश में जनसंख्या का कुछ रूप में आँकडा जुटाया गया था . कौटिल्य के अर्थशास्त्र में उस काल में टैक्स , आर्थिक और कृषि से जुडे आँकडों का हवाला दिया गया है . और तो और मुगल काल में मुगल बादशाह अकबर के दौर में लिखी गई पुस्तक आईन- ए – अकबरी में जनसंख्या , औद्योगिक व संपत्ति से जुडे आँकडों का जिक्र किया गया है .
20 अक्टूबर को पूरी दुनिया में विश्व सांख्यिकी दिवस मनाने की शुरुआत वर्ष 2010 में हुई थी . जिसे दुनिया के 130 से अधिक देशों में मनाया गया था . संयुक्त राष्ट्र के सांख्यिकी आयोग ने प्रत्येक पांच वर्ष बाद विश्व सांख्यिकी दिवस मनाने का निर्णय लिया था . इस बार तीसरा विश्व सांख्यिकी दिवस मनाया जाएगा जिसकी थीम है ‘ कनेक्टिंग द वर्ल्ड विद डाटा ‘ .
भारत में प्रोफेसर प्रशान्त चंद महालनोबिस को सांख्यिकी का जनक माना जाता है. दूसरी पंचवर्षीय योजना का सूत्रधार भी पी सी महालनोबिस को माना जाता है . 29 जून 1893 को कोलकाता में जन्मे पीसी के जन्म दिन को भारत में सांख्यिकी दिवस के रूप में मनाया जाता है . उन्हीं ने 1931 में देश में भारतीय सांख्यिकी संस्थान की स्थापना की थी . जिस तरह से प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव और वित्त मंत्री मनमोहन सिंह की जोडी मानी जाती थी . उसी प्रकार प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और प्रो. पी सी महालनोबिस की जोडी मानी जाती थी . पी सी के योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने 1963 में उन्हें सबसे प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्मविभूषण से सम्मानित किया था .
दरअसल सांख्यिकी गणित की वह शाखा है जिसमें आँकडों का संग्रहण , वर्गीकरण व प्रदर्शन किया जाता है . जिसके आधार पर अध्ययन व आकलन किया जाता है . आँकडों और गणित का वास्ता इंसानी जीवन में जन्म से लेकर मौत तक है . यह कोई नया विषय नहीं है लेकिन नए सिरे से इन पर चर्चा होने के कारण ऐसा जरूर लगने लगा है कि जैसे अध्ययन की नई शाखा विकसित हो गई है .
देश में आजादी के पहले 1865 से 1872 के मध्य जनगणना की गई थी . लेकिन 1881- 1882 में की गई जनगणना को पहली आधिकारिक जनगणना माना जाता है .
अंतिम बार देश में 2001 में जनगणना की गई थी . जो अब तक की चौदहवीं व आजादी के बाद छठवीं जनगणना थी .जिसमें 20 लाख जनगणनाकर्मियों ने घर घर जाकर आँकडे जुटाए थे . वर्ष 2021 की जनगणना की कवायद शुरु भी हो गई थी सरकार ने इस हेतु बजट भी पारित कर दिया था लेकिन कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण जनगणना को रोकना पडा .
जैसे जैसे शिक्षा का प्रसार हुआ है आँकडों की अहमियत सभी को समझ में आने लगी है . दुनिया का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहां आँकडों की जरूरत न हो . सरकारें हों या कंपनियाँ या फिर खेल या घर गृहस्थी सब कुछ आँकडों पर टिका है . सरकारी हो या गैर सरकारी सभी संस्थान आँकडे जुटाकर उसी के अनुरूप नीतियाँ बनाते और उन्हें लागू करते हैं . आँकडों की गणना से लाभ – हानि , प्रगति – ह्रास का पता लगता है . आँकडे हमें ट्रेंड बताते हैं . आगे का रास्ता सुझाते हैं . आँकडों की अहमियत भी हर कोई समझने लगा है . यही कारण है कि अब आँकडों को लेकर खेल खेला जाने लगा है . ताकि नीतियों को प्रभावित किया जा सके . क्योंकि जिस तरह से और जिस तरीके के आँकडे परोसे जायेंगे उससे नीतियों और योजनाओं को मनमुताबिक बदला भी जा सकता है . यह एक डरावना खेल है जो सरकारें भी खेलती हैं , राजनीतिक दल और कारपोरेट हाउस भी खेल रहे हैं . विशेषतौर पर जब सरकार और उसकी नीतियों को अपने पक्ष में करना हो या तब जब आँकडों को परोसकर आम जनता को भरमाना हो . चुनावों से लेकर लोगों के मूड को परखने , भांपने और उन्हें प्रभावित करने के लिए आँकडों को खास तरीके से परोसा जाता है . इसे आँकडों की बाजीगरी भी कहा जाता है . लेकिन इस तथ्य को भी नहीं भूलना चाहिए कि इससे किसी एक का या कुछ लोगों का तो भला हो सकता है लेकिन इस बाजीगरी से सबका साथ सबका विकास सपना ही बना रहेगा .

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