एक दौर था, जब नए साल के आने से एक महीने पहले ही शहर के सभी बाजारों में ग्रीटिंग कार्ड की दुकानें सज जाती थीं

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रिपोर्टर महेन्द्र कुमार गौतम 8542832748

दुकानों पर तो कार्ड खरीदने के लिए लंबी लाइन लगानी पड़ती थी। कई बार दुकानों पर भीड़ बेकाबू हो जाती थी। अपने पसंद के ग्रीटिंग कार्ड खरीदने के लिए ग्राहक पूरे शहर की परिक्रमा लगाया करते थे। लेकिन अब ग्रीटिंग कार्ड को लेकर शहर में बढऩे वाली सरगर्मी पर जैसे विराम लग गया है। भूले से भी कोई उसे खोजता नजर नहीं आता। नई पीढ़ी तो दूर, पुरानी पीढ़ी भी उसे भूल सी गई है।

वर्तमान में ग्रीटिंग कार्ड की बिक्री को लेकर दुकानों जब पड़ताल की गई तो सभी दुकानदारों का यही दर्द था कि वर्चुअल बधाई ने कार्ड के बाजार को ही ठंडा कर दिया है। कार्ड खरीदने के लिए आना तो दूर अब कोई उसकी बात भी नहीं करता। नीलम लॉज के पास स्थित आर्चीज गैलरी के प्रोपराइटर विनोद सिंह ने बताया कि जबसे वाट्सएप का दौर चला, तबसे ग्रीटिंग कार्ड ही प्रचलन से बाहर हो गया और जो उम्मीद थीं फेसबुक ने उसपर पानी फेर दिया। अब तो दुकान बंद करने की नौबत आ गई है। आर्चीज कार्ड शॉप के प्रोपराइटर मनीष श्रीवास्तव ने बताया कि अब इक्का-दुक्का बहुत शौकीन लोग ही कार्ड खरीदने आते हैं। जो आते भी हैं, उनके लिए विशेष दिन नहीं बल्कि शौक मायने रखता है। ऐसे ग्राहक वर्ष में कभी भी आ जाते हैं।

किसी जमाने मे डाकिया बाबू का रहता था इंतज़ार

जब ग्रीटिंग कार्ड का दौर था तो डाकघर भी इसे लेकर खासे परेशान रहते थे। समय से कार्ड को पहुंचाना उनके लिए चुनौती होती थी। कई बार तो इसे लेकर डाकियों और ग्राहकों में विवाद की स्थिति बन जाती थी पर अब न तो ग्रीटिंग कार्ड है और नहीं ही इसे लेकर डाक विभाग के सामने चुनौती। पोस्टमास्टर ने बताया कि बीते कुछ वर्षों में ग्रीटिंग कार्ड पहुंचाने को लेकर डाक विभाग पर बनने वाला दबाव काफी कम हो गया है। अब तो चंद कार्ड ही डाक विभाग से भेजे जाते हैं

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