राजनीति-अगर आप सामान्य व्यक्ति हैं और कोई आपसे पूछे कि कौन सा मौसम चल रहा है तो आप फटाक से जबाब देंगे कि सर्दी का मौसम शुरु हो गया है , ठंड का मौसम चल रहा है। किसी बैंड वाले से , पंडित जी से , विवाह घर या टैंट वाले से पूछेंगे तो वह कहेगा कि शादी – विवाह का मौसम चल रहा है। छात्रों से पूछेंगे तो वे कहेंगे कि परीक्षाओं का मौसम चल रहा है। आप शायरों या कवियों से पूछेंगे तो मौसम के बारे में उसका फलसफा तो सबसे अलग होगा वो तो कहेंगे कि
एक बरस के मौसम चार
मौसम चार , पांचवा मौसम प्यार।
और अगर कोई मस्ती में अलमस्त हो तो उसके मुताबिक तो
डम डम डिगा डिगा
मौसम भीगा भीगा ,
बिन पिए मैं तो गिरा मैं तो गिरा
हाए अल्ला…….
अगर आप किसी माशूका से पूछेंगे तो वह तो गुनगुनाते हुए कहेगी कि मौसम है आशिकाना
ऐ दिल कहीं से उनको
ऐसे में ढूंढ लाना।
लेकिन यदि आप नेताओं या अधिकारियों से पूछेंगे तो वे कहेंगे कि चुनाव का मौसम चल रहा है। वादों का मौसम शुरु हो गया है। आँकड़ों का मौसम आ गया है। अब तो रेगिस्तान में भी हरियाली का मौसम है। धीरे धीरे पूरी फिजा चुनावी रंग में रंगने लगी है।
जैसे वसंत ऋतु आती है तो दिग दिगन्त खिल उठता है वैसे ही चुनावी मौसम आते ही गांव , कस्बा , शहर , नगर जहां देखो वहां बैनर , पोस्टर , फ्लैक्स की बहार आई हुई है। बीते 6 माह से ऐसा कोई त्योहार नहीं बचा जिस त्योहार की पूरे क्षेत्रवासियों को शुभकामनाएं न मिलीं हों। संभावित दावेदार व भावी विधायक भर भर के शुभकामनाएं दे रहे हैं। जिन पार्टियों के नाम नहीं सुने जिन नेताओं को कभी देखा सुना नहीं वे भी छककर शुभकामनाएं और बधाई दे रहे हैं। समझ में नहीं आ रहा है कि बिन मांगे मिल रही इतनी सारी शुभकामनाएं और बधाईयों को कहां रखूंगा। ढेरों शुभकामनाओं से ये तो लगने लगा है कि अब तो मंगल ही मंगल का योग है। कोई बला अगर आएगी भी तो वह भी इन शुभकामनाओं को देखकर भागी भागी फिरेगी।
यह मौसम विकास है। यह शिलान्यासों का मौसम है। लोकार्पण का मौसम है। फीता काटने का मौसम है। हाथ हिलाने का और हाथ मिलाने का मौसम है।
यह वाहनों की रेलमपेल का , नेताओं की धमाचौकड़ी का मौसम आ गया है। रैलियों का मौसम आ गया है। मौसम कार्यकर्ताओं का आ गया है। चार – साढ़े चार साल से जो कार्यकर्ता सुशुप्तावस्था में पड़े थे उनको जागृत कर एक्टिव करने का मौसम आ गया है। मौसम टैंट , बांस बल्लियों का आ गया है। मौसम चाय पर चर्चा का आ गया है। मौसम चौपालों का आ गया है। मौसम फुल फुल पेज विज्ञापनों का आ गया है। मौसम जातियों के ठेकेदारों का आ गया है। मौसम जोड़ तोड़ का आ गया है। मौसम दलबदल का आ गया है। मौसम आचार संहिता का आ गया है। मौसम मुर्गा , दारू और बकरों के हलाल होने का आ गया है। मौसम उड़नखटोलों का आ गया है। मौसम टीवी चैनलों पर प्रवक्ताओं की गर्जना का आ गया है। मौसम भविष्यवक्ताओं का आ गया है। मौसम चुनाव पूर्व अनुमान लगाने का आ गया है। मौसम चुनावी सर्वेक्षणों का आ गया है। मौसम सरकार बनाने का आ गया है। मौसम नेताओं के बड़बोलेपन का आ गया है। मौसम आग उगलती जहर फैलाती तकरीरों का आ गया है। यह चुनाव आयोग का मौसम है।
मौसम हम पत्रकारों का आ गया है। एक चाय और दो बिस्किट में दुम हिलाने वाले पत्रकारों को चुनावों तक दामाद बनाने का मौसम आ गया है। भले जलवायु परिवर्तन के चलते मौसम कब बेमौसम हो जाए इसका ठिकाना न हो लेकिन चुनावी मौसम का तो पक्का ठिकाना है। यह चुनावी मौसम अभी कम से कम पांच महीने बरकरार रहेगा। इसलिए इस मौसम का जमकर आनंद उठाइए क्योंकि यह लोकतंत्र का सबसे खुशनुमा मौसम है। बेरोजगारों और निठल्लों के रोजगार का मौसम है। माइक , लाउड स्पीकर साउंड सर्विस का मौसम है। यह मौसम भाषणों का मौसम है। बहसबाजी का मौसम है। आप कहां खो गए जनाब आप भी देख लीजिए कि चुनावी मौसम का आनंद लेने के लिए वोटर लिस्ट में आपका नाम है या नहीं। नहीं तो आप इस आनंद से वंचित रह जाएंगे।
राकेश कुमार अग्रवाल रिपोर्ट