वाराणासीः रोहनियां – प्रशासन द्वारा करसड़ा गाँव के उजाड़े गये मुसहर बस्ती से बेघर हुए लोगों का कहना है कि इस बार की दीपावली हमारे लिए खुशियों का त्योहार नहीं है, बल्कि मातम का त्योहार बन गया है। कटी-फटी तिरपाल और कँटीले बबूल के पेड़ों के नीचे जीवन गुजर रहे हैं। दीपावली की रात भी ऐसे ही गुजर गई। टूटे घरों के गम में दिल दीपावली मनाने की इजाजत नही दिया। लेकिन उम्मीद है कि खुशियों का रौनक एक-न-एक दिन उनके घरों के छोटे-से हिस्सों तक भी जरूर पहुँचेगा; जहां आज गमगीन माहौल है और यहां के लोग परेशान एवं हताश हैं।
पीड़ित लोगों ने शासन-प्रशासन के खिलाफ विरोध स्वरूप दीपावली नहीं मनाया है। जब घर ही नहीं है, तो दीवाली किस बात की और प्रतिज्ञा ली है कि जमीन वापस पाने तक नहीं मनायेंगे कोई पर्व-त्योहार, वहीं सामाजिक और राजनैतिक संगठनों के प्रतिनिधियों प्रतिदिन बस्ती पंहुच कर पीड़ितों को हर संभव मदद देने का भरोसा दे रहे हैं और पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए संबंधित अधिकारियों से वार्ता कर रहे है पीड़ितों को जल्द न्याय नहीं मिलेगा तो आंदोलन की चेतावनी भी दिया जा रहा है। उधर रोटी बैंक के तरफ़ से पीड़ितों के प्रति सहानुभूति रखने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं को बस्ती में पीड़ितों के साथ रोज़ाना भोजन ग्रहण कराया जा रहा है। राजकुमार गुप्ता, बीरभद्र सिंह, अनिल कुमार, रश्मि सिंह, धीरेंद्र गिरी, भास्कर पटेल, रोशन पटेल, निखिल, अनूप दुबे आदि तमाम समाजसेवी इन परिवारों के साथ खड़े हैं और इनकी पूरी रखवाली भी कर रहे हैं जिनको भी प्रशासन द्वारा प्रताड़ित और झूठे मामले में फँसाने की धमकियाँ दी जा रही है।
राजकुमार गुप्ता रिपोर्ट