राकेश कुमार अग्रवाल
कई वर्षों पहले की बात है . सर्दियों के दिन थे . मैं सरकारी अस्पताल में खबर के संबंध में गया था . अस्पताल में मरीज न के बराबर थे . इसलिए डाक्टर खुले में धूप में बैठे हुए थे . मेरे पहुंचने पर मेरे लिए भी एक कुर्सी मंगाई गई . मैं भी डाॅक्टरों की महफिल में बैठ गया . बातों बातों में एक चिकित्सक ने दूसरे के स्पेशलाइजेशन का मजाक उडाते हुए कहा कि क्या डोक साब आपने भी कंचे जैसी दो आंखों का स्पेशलाइजेशन किया . मुझे देखो मैंने तो हड्डियों का स्पेशलाइजेशन किया . शरीर में 206 हड्डियां हैं कोई न कोई तो टूटेगी ही . अपनी तो हमेशा बल्ले बल्ले रहेगी . मैं भी हतप्रभ था कि आखिर ये किस तरह की बहस या कटाक्ष हो रहे हैं . खैर कोरोना काल में सहसा ही ये प्रसंग इसलिए याद आ गया कि कोरोना का वायरस तो बाल की मोटाई से हजारवें हिस्से से भी छोटा बताया गया है . बुंदेली में एक कहावत है कि देखन में छोटो लगे घाव करे गंभीर . यह कहावत बताती है कि अति सूक्ष्म कोरोना वायरस 206 हड्डियों व 550 मांसपेशियों सभी के चिकित्सकों पर भारी पड गया . इस पिद्दी से वायरस ने ऐसा धमाल मचाया कि विकासशील से लेकर विकसित सभी देश पानी भरते नजर आए .
इस वायरस ने चीन देश से अपनी यात्रा शुरु की और एक बरस में ही दुनिया के डेढ सौ से अधिक देशों में मोदी जी की तरह पहुंचता गया . हमारे मोदी जी जैसे काबुल में कलेवा ( नाश्ता ) , लाहौर में लंच और दिल्ली में ब्यारी ( रात्रि भोजन डिनर ) कर लेते हैं वैसे ही यह नोबल वायरस हिंदी चीनी भाई भाई का नेहरूवादी नारा लगाता हुआ चीन के वुहान शहर से 30 जनवरी 2020 को एक स्टूडेंट के साथ केरल आ पहुंचा . हम भारतीयों ने अतिथि देवो भव: की तर्ज पर नोबल कोरोना वायरस की अगवानी की और उसे अपना अतुल्य भारत ( इनक्रेडिबल इंडिया ) दिखाने का फैसला लिया .
नोबल कोरोना वायरस को महाराष्ट्र , कर्नाटक , आँध्रप्रदेश , तमिलनाडु व केरल राज्य ( इन्हीं राज्यों में कोरोना के सबसे ज्यादा मामले आए ) ऐसे पसंद आए कि यहीं डेरा डाल कर बैठ गया . जबकि सरकार और देशवासी सभी चाहते थे कि वो पूरे देश में जाए . नोबल कोरोना ने जनभावनाओं को देखते हुए पूर्वोत्तर भारत के राज्यों मिजोरम , सिक्किम , लद्दाख , नागालैण्ड , मेघालय ( इन राज्यों में सबसे कम केस दर्ज हुए हैं ) की सैर भी की . लेकिन उसे वहां की आबोहवा रास नहीं आई . उसे दिल्ली , बैंगलुरु , पुणे , मुम्बई और थाणे जैसे शहर इतने भाए कि उसने इन शहरों में स्थायी रूप से अपना डेरा जमा लिया . अतिथि के आगमन पर कोई कसर न रह जाए इसलिए देश के लोगों ने जमकर घी के दिए जलाए रोशनी की , ताली , थाली व पपीरी बजाई . नोबल कोरोना भीडभाड वाले देश में कहीं जाम में न फंस जाए इसलिए सरकार ने उसके सम्मान में लाॅकडाउन लगा दिया ताकि वो जहां भी जाना चाहे बिना बाधा के कहीं भी जा सके . हम भारतीयों को जिस काम के लिए मना किया जाए उसे जरूर हम लोग चोरी चोरी – चुपके चुपके व उचक उचक कर देखने का प्रयास करते हैं . और तो और बेगानी शादी में भी हम अब्दुल्ला बनकर नाचना नहीं छोडते . दरवाजे से बारात निकले और डीजे या बैंड बजे तो हम भारतीय गहरी नींद का त्याग करके अपने छज्जे पर आकर न केवल बारात और दूल्हे को देखते हैं बल्कि उसका बारीकी से विश्लेषण भी करते हैं कि दूल्हा कैसा है . बारात थी कि हुडदंगियों की टोली . ऐसे में भैया आप ही बताओ चीन देश से मेहमान आए तो भी हिंदुस्तानियों ने उसे चैन से देश में भ्रमण न करने दिया तब मजबूरन पुलिस को पीठ पुजाई , टांग तुडाई करनी पडी . अगर पुलिस लाठी न बजाती तो सोचो विदेशों में हमारी कितनी आलोचना होती हमारी छवि खराब होगी . सरकार ने ट्रंप का भी स्वागत सत्कार किया . क्योंकि कोरोना से ट्रंप भी कम घातक न था . इसलिए अमेरिका ने भी उसकी मारक क्षमता को देखकर उससे तौबा कर ली .
हमारा देश उत्सवधर्मी है . हमारे यहां तो सुख दुख मौके बेमौके सब के गाने हैं . हमारे गीतकारों ने कोरोना पर भी धाँसू गीत लिखकर अपनी सलामी दी . हमाए गांव में तो राष्ट्रगान 15 अगस्त , और 26 जनवरी को सुनने को मिलता है लेकिन कोरोना का गाना मुर्गे के बांग की तरह रोजाना सुनने को मिलने लगा . एक साल से कचरा वाली गाडी कोरोना का गाना बजाती हुई आती है . बच्चों ने तो उसे कंठस्थ भी कर लिया है . क्योंकि एक साल से वे स्कूल नहीं जा रहे . लेकिन कचरे वाली गाडी रोज आकर दरवाजे के बाहर खडी हो जाती है . जब तक सभी लोग कोरोना गीत न सुन लें गाडी आगे नहीं बढती . बच्चों को भी लगता है कि शायद इसे याद करना जरूरी है . इसलिए वे भी कोरोना गीत को साथ साथ गाते गुनगुनाते हैं . कोरोना ने हम भारतवासियों का अंग्रेजी ज्ञान इतना बढाया कि अनपढ अँगूठा छाप भी लाॅकडाउन , सेनेटाइजर , माॅस्क , क्वारंटीन , पीपीई किट , आइसोलेशन , सोशल डिस्टेंस , अनलाॅक , कोरोना वारियर्स , पल्स ऑक्सीमीटर , कोविड केयर सेंटर , हाॅटस्पाट , वेंटीलेटर , एल वन , एल टू जैसे दो दर्जन से अधिक नए शब्द सीख गए . जिस सर्दी , खांसी , जुकाम को लोग हम कभी भाव नहीं देते थे . डाक्टर साब को दिखाने नहीं जाते थे . यूं ही सुडकते सुडकते एक हफ्ते में चली जाती थी आपके आने के बाद उसके मरीजों की वेल्यू बढ गई . रजिस्टर बनने लगे . भले मतदाता सूची से नाम गायब हो गया है लेकिन कोरोना रजिस्टर में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो गया . एम्बुलेंस में बिठाकर खादी वर्दीधारियों के संरक्षण में 14 साल का वनवास तो नहीं लेकिन 14 दिनों तक सरकारी अज्ञातवास में मेहमाननवाजी का मौका मिला . एक साल की भारत यात्रा करने के बाद अब नोबल कोरोना की वापसी का वक्त नजदीक आता जा रहा है . पूरे देश से उसकी विदाई के लिए व्यापक तैयारियां चल रही हैं . मकर संक्रांति पर्व से कोरोना की घर वापसी होना है . कोरोना तुम चले जाओगे लेकिन सच कह रहे हैं तुम बहुत याद आओगे . रह रह कर याद आओगे . बात बेबात याद आओगे . बाॅय बाॅय कोरोना .
कोरोना तुम चले जाओगे तो बड़ा याद आओगे
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