घरार नदी को अपने श्रमदान से पुनर्जीवित करने भागीरथों को सम्मानित करेंगे योगी

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  • महानगरों से लौटे कामगारों ने अपने श्रमदान से जल संरक्षण की लिखी नई इबारत

  • सामूहिक रसोई व बुंदेली गायन वादन से श्रमवीर मिटाते हैं थकान

राकेश कुमार अग्रवाल की विशेष रिपोर्ट

बांदा। अपने श्रमदान से मृतपाय घरार नदी को पुनर्जीवन देने वाले श्रमवीरों के पुरुषार्थ से आल्हादित मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें सम्मानित करने का ऐलान किया है।

घरार नदी में वर्षों से जमी सिल्ट के हटते ही जलधारायें फूटने के भागीरथी प्रयास से शासन प्रशासन हरकत में आ गया है।

बांदा जिले के नरैनी विकास खंड के बिल्हरका ग्राम पंचायत का मजरा है भांवरपुर। कोरोना वायरस के संक्रमण को कम करने के लिए लागू हुए लाकडाउन के कारण रोजी रोजगार ठप हो जाने के बाद दिल्ली , मुम्बई, पंजाब व हरियाणा से वापस अपने गांव लौटकर अपने गांव आए मजदूरों को मनरेगा के तहत काम न मिलने पर मजदूरों ने मृतप्राय पडी घरार नदी को पुनर्जीवित करने का बीडा उठाया था।

पन्ना की घाटियों से निकलकर अजयगढ- करतल से स्पर्श करती हुई यह नदी दोआबा के बदौसा में रंज नदी में मिलती है। इसका उदगम पन्ना की घाटियों से हुआ है। यह नदी एक समय सदानीरा रही है। इस नदी से करतल से लेकर बदौसा तक के चालीस गांवों के किसान सिंचाई, पेयजल व पशुओं की प्यास बुझाने का बडा स्रोत थी। वन विभाग, व लघु सिंचाई विभाग ने इस नदी में जगह जगह दो दर्जन से अधिक चैकडैम बना दिये। गहरीकरण व रखरखाव न होने के कारण घरार नदी मृतपाय सी हो गयी थी। वर्तमान में यह नाले का रूप ले चुकी थी। जिससे उसका अस्तित्व खत्म होने की कगार पर था। नाले के इर्द गिर्द खरपतवार उग आए थे।

मनरेगा में काम न मिलने पर वापस लौटे इन कामगारों ने घरार नदी के पुनर्जीवन का फैसला लिया और फावडा, कुदाल, कुल्हाडी, गैंती लेकर डट गए। धरती का सीना चीर कर पानी निकालने वाले इन जलयोद्धाओं की मेहनत रंग लाई। नदी फिर लहलहाने लगी है।

प्रदेश के अपर गृह व सूचना सचिव अवनीश कुमार अवस्थी ने लखनऊ में यह जानकारी देते हुए बताया कि शीघ्र ही मुख्यमंत्री सभी श्रमदानियों को सम्मानित करेंगे।

घरार नदी पर जलधारायें फूटने के बावजूद श्रमदान लगातार जारी है। मौके पर सामूहिक रसोई में सभी का एक साथ भोज होता है। रसोई की जिम्मेदारी महिलायें संभाले हुए हैं। दूसरी से थक कर चूर हुए कामगार ढपली की थाप पर गीत संगीत व गायन का आनंद लेकर अपनी थकावट दूर करते हैं।

इन जल योद्धाओं के प्रयासों को देखने के लिए जिले के आला अधिकारी व आस पास के लोग भी जुटने लगे हैं।

कोरोना ने भले देश को अपूरणीय क्षति पहुंचाई हो लेकिन लाॅकडाउन न होता तो शायद घरार नदी के दिन न बहुरते।

प्रवासी कामगारों की यह पहल वाकई अनुकरणीय है।

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