बेलाताल ( महोबा ) रविवार को हलछठ का पर्व पारम्परिक रस्मों के साथ मनाया गया। महिलाओं ने पुत्र के दीर्घायु व परिवार की समृद्धि के लिए व्रत रखा। इस मौके पर धार्मिक स्थलों पर पूजा व अनुष्ठान का दौर चलता रहा। महिलाओं ने बिना जोती-बोई भूमि से उपजे अन्न का सेवन किया और विविध अनुष्ठान पूरे किए।
सदियों से चली आ रही परंपरा के अनुसार जन्माष्टमी पर्व के दो दिन पूर्व भगवान श्रीकृष्ण के अग्रज बलराम का जन्मोत्सव रविवार को मनाया गया।
भगवान बलराम शेषनाग का अवतार थे। पुत्रवती महिलाएं इस दिन व्रत रखकर परंपरा के अनुसार पूजन-अनुष्ठान करती हैं। प्रत्येक घरों के आंगन में महिलाओं ने हाथों से प्रतीकात्मक तालाब निर्मित कर कुश व ढाक की स्थापना करके परंपरागत तरीके से पूजा-अर्चना की।
क्या है परंपरा?
महिलायें एकत्रित होकर पूजा की तैयारी करती हैं पूजन के लिए 6 महुआ के पत्ते रखती हैं जिसपर महुआ,भैंस के दूध का दही, तीनि का चावल,तीनि के चावल से बने आटे से भैंस के घी में छनी पूड़ी चढ़ाती है फिर कुस को जमीन में लगाकर एक उंगली से छह गांठ लगती हैं और नये वस्त्र चढ़ाती हैं।
इसके बाद सभी महिलाएं 6 कहानी और 6 गीत गाती हैं। पूजा की समाप्ति पर सभी एक दूसरे को प्रसाद देती हैं। हलछठ पर्व पर अपना प्रसाद खुद खाना वर्जित है। पूजा के स्थान से चलने से पहले अपने से बड़े का पैर छूती हैं और आशीर्वाद लेती हैं। अंत मे सभी महिलाएं गीत गाते हुए अपने घर की ओर प्रस्थान करती हैं।