‘चित्रकूट’ को 84 के चक्कर से मुक्त करिए प्रधानमंत्री

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  • धाम, पुरी, तीर्थ, पवित्र स्थान, धर्मनगरी, तपस्थली का प्राप्त है दर्जा

  • चित्रकूट, बांदा, कौशांबी, प्रयागराज, पन्ना,रीवां व सतना जिलों में फैला है चित्रकूट परिक्षेत्र

संदीप रिछारिया ( सीनियर एडीटर)

‘पंक्षी, दरिया और पवन के झोंके कोई सरहद न इन्हें रोके, सरहद इंसानों के लिए बने है क्या खोया और क्या पाया इंसा होकर’

फिल्म रिफयूजी का यह गीत भले ही भारत और पाकिस्तान में बसने वाले इंसानों को लेकर व उनकी समस्याओं पर केंद्रित कर बनाई गई रही हो, पर इसकी तासीर हमेशा से प्रदेश के बार्डर में रहने वालों के लिए दुखभरी ही होती है। ऐसी ही एक कहानी चित्रकूट की है, जो निरापद रूप से हिंदुस्तान की हृदयस्थली का वह भूभाग है। जहां सभ्यता, संस्कृति और रचना ने जन्म लिया। आज यह स्थान अपनी खुद की पहचान बताने में शर्म कर रही है, डर रही है। इस शर्म और डर के पीछे की वजह यहां की वही आदिम मानसिकता है जिसने हमेशा अपने आपको खुद में समेटे रखा। बाहरी दुनिया से ज्यादा मतलब नही रखा। अब जब मीडिया का विस्फोट हो चुका है। सोशल मीडिया जवान होकर पूरी तरह से फागुनी मस्ती में डूबा हुआ है। हर व्यक्ति खबरों को लेकर सचेत हो चुका है तो चित्रकूट का भी विराट वैभव व्यक्तित्व सबके सामने आ रहा हैऔश्र चित्रकूट में आने वाला पर्यटक व स्थानीय व्यक्ति दो प्रदेशों की सीमाओं के कारण विभिन्न समस्याओं को झेल रहा है। पार्किंग हो या फिर अन्य वाहनों की आवाजाही लोगों को दोहरा पैसा टैक्स के रूप में चुकाना पड़ रहा है।

कहानी सतयुग कीः यहीं से उदृभव हुआ था संस्कृति और सभ्यता का

सतयुग में जब प्रजापिता ब्रहमा ने सृष्टि की रचना कर अपने मानस पुत्रों को उत्पन्न किया और आसपास विशेष स्थानों पर निवास दिया। उनकी बनाई हर मानवी कृति अपने आपमें अद्भुत थी। अपने पुत्रों व पुत्रियों को उन्होंने चित्रकूट परिक्षेत्र के 84 कोस में स्थित विभिन्न स्थानों पर रहने के निर्देश दिए। यह स्थान वनप्रस्तरों में फैली विशाल कंदराएं, विहंगम जल प्रपात, फूलों, औषधीय वृक्षों से भरे जंगल आदि थे। हर स्थान की अपनी खुद की भी कुछ न कुछ विशेषताएं थीं। उनके पुत्रों ने वह कर दिखाया जो पीड़ित मानवता की सेवा के लिए वरदान बना। जैसे ब्रहमा जी ने स्वयं पयस्वनी को प्रकट किया तो महर्षि अत्रि की पत्नी महासती अनुसुइया ने दस हजार साल तप कर मंदाकिनी को प्रकट किया। सरभंग ऋषि के तप से सरभंगा नदी तीन धाराओं में निकली। स्थानीय कहावत बार-बार गंगा एक बार संरभंगा का कहावत सिद्ध करती है। इसकी प्रकार चंद्रभागा, कौशकी, गोदावरी, सरयू आदि, वाल्मीकि या तमसा आदि नदियों का प्रादुर्भाव हुआ। शबरी प्रपात, राघप प्रपात, ब्रहस्पतिकुंड, अघमर्षण कुंड आदि आज भी देखे जा सकते हैं।

राम को मिला था औषधि और शस्त्र निर्माण का ज्ञान

दशरथनंदन श्रीराम अपने कुल के पहले राजा नही थे जो चित्रकूट आए थे। उनके दसवें पूर्वज महाराज अंबरीश जी चित्रकूट आए और उन्होंने यहां पर महराज अत्रि,मारकंडेय, अंगिरा, अगस्त, सुतीक्षण, सरभंग आदि ऋषियों से शस्त्र निर्माण की कला के साथ ही विभिन्न रोगों में औषधि उपचार की कला सीखी थी। वन में निवास के लिए श्रीराम को ऋषि भारद्वाज ने भी इसीलिए चित्रकूट का रास्ता बताया। श्रीराम यहां पर साढे ग्यारह साल रहे। उन्होंने पूरे परिक्षेत्र में भ्रमण कर ऋषियों से औषधि निर्माण व शस्त्र निर्माण व उनके अनुसंधान करने के तरीके सीखे। माता अनुसुइया ने वन में रहकर स्वादिष्ट एवं स्वास्थ्यवर्धक भोजन के साथ निर्माण के तरीके माता सीता को बताए।

द्वापर में पांडवों ने काटा था अज्ञातवास

द्वापर युग में जुएं में संपत्ति हारने के बाद शर्त के मुताबिक अपना अज्ञातवास काटने के लिए पांडवों ने चित्रकूट की ही शरण ली। अघमर्घण कुंड पर ही उनका यक्ष के साथ संवाद हुआ और फिर यही पर हिडिम्बा के साथ भीम के विवाह की बात भी की जाती है। उस समय यहां पर श्री हरि विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण के कई बार आने की बात भी विभिन्न ग्रंथों में उल्लिखित है।

कलियुग के प्रथम चरण में बंट गई सीमाएं

कलियुग के प्रथम चरण में ही 1300 गुलाम रहने के बाद देश को अंग्रेजों से स्वतंत्रता 1947 को मिली। भारत एक गणतंत्र बना। राज्यों की सीमाओं का विभाजन अधिकतर पहाड़ों व नदियों से किया गया। चित्रकूट परिक्षेत्र को भी उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश की सीमाओं में बांट दिया गया। जिससे भाई- भाई के बीच बंटवारा हो गया। अब अलग-अलग प्रदेशों मे अलग -अलग दलों की सरकारें बनी तो उनकी प्राथमिकताएं अलग हो गई। लिहाजा नयानाभिराम दृश्य वाले यह स्थान लोगों की आंखों से ओझल होने लगे। देश के सामने रोटी, कपड़ा और मकान की समस्या होने लगी। औद्योगिक क्रांति के कारण लोग जंगलों, गांवों से निकलकर शहरों की ओर भागने लगे। गांव गरीब व उपेक्षित होने लगे और शहर प्रदूषण के साथ संपन्नता की निवासी माने जाने लगे।

केंद्रशासित प्रदेश है चित्रकूट के विकास का निदान

चित्रकूट का विकास दो प्रदेशों में बांटकर नही किया जा सकता। अगर वास्तव में चित्रकूट का विकास करना है तो इसे दो सीमाओं से मुक्त कर या तो एक ही प्रदेश को सौप दिया जाए, जहां से उसका विकास सही प्रकार से हो सके या फिर इसे केंद्रशासित प्रदेश बना दिया जाए। वैसे भारतरत्न नाना जी देशमुख ने चित्रकूट में आने के बाद पहली बार यही की थी और वह लगातार इसके बावत केंद्र सरकार को पत्र भी लिखते रहे।

यह हो सकती हैं केंद्रशासित प्रदेश की सीमाएं

चित्रकूट का वन प्रस्तर क्षेत्र चित्रकूट, बांदा, कौशांबी, सतना, पन्ना, रींवा जिलों में फैला है। इयसमें जहां चित्रकूट जिले का पूरा भाग, वहीं बांदा का केन नदी से लेकर पन्ना का अजयगढ से होते हुए सतना का तराई वाला इलाका व रींवा का तराई वाला इलाका, इलाहाबाद का कुछ भाग के साथ ही कौशांबी का कुछ भाग आता है। वैसे इन दिनों चित्रकूट के संतो ंके द्वारा परिक्षेत्र में 84 कोसीय दो परिक्रमाएं चलाई जा रही है। एक परिक्रमा का प्रारंभ फाल्गुन अमावस्या को जानकीकुंड की मैथलीगली के संत गोविंद दास व सुदर्शन दास जी ने किया है। जबकि दूसरी परिक्रमा बुधवार को रघुवीर मंदिर ट्रस्ट की तरफ से प्रारंभ की गई है। दोनों परिक्रमाओं में देश के सभी प्रांतों के साथ ही विदेशों नेपाल, बांग्लादेश, भूटान आदि से संत आए हुए है। यह दोनों पैदल परिक्रमाएं एक महीने चलेंगी। अब चित्रकूट को धाम, पुरी, तीर्थ, पवित्र स्थान, धर्मनगरी, तपस्थली का दर्जा प्राप्त है तो इसे 84 के चक्कर से मुक्त कर केंद्रशासित प्रदेश बनाने की पहल प्रधानमंत्री को करनी चाहिए।

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