●आज सड़क किनारे भूखा जिन्दगी गुजारने को मजबूर
●आज इसकी सुध लेने वाला भी कोई नही
मउरानीपुर (झाँसी) : देश के लिये कुछ कर गुजरने का जज्बा हिंदुस्तान के लोगो मे ऐसा है कि फिर हिंदुस्तान के लिए कुछ भी कर गुजरते है। हिंदुस्तान जोकि हिंदुस्तानियों के बलिदान और उनके कर्मों से भरा पड़ा है। हिंदुस्तान पर जब भी कोई संकट आया है तो देश के लोगों ने आगे बढ़कर उस शंकट का डटकर मुकाबला किया। इस संकट के बीच कई लोग ऐसे भी थे जिन्होंने देश के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया लेकिन देश के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर देने वाले लोग आज भुखमरी की कगार पर हैं और भीख मांग कर अपना गुजारा करने को मजबूर है।
ऐसी ही दुख भरी कहानी 1962 की जंग में भी लिखी गयी। जब हिंदुस्तान चीन से जंग लड़ रहा था। जंग के दौरान हिंदुस्तान की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो चुकी थी जिसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने आकाशवाणी से देश के लोगो से अपील करते हुए देश हित में दान करने की बात कही थी। इनमें से एक थे झाँसी के थाना सकरार के रहने वाले मोहन कुशवाह। मोहन कुशवाहा का जन्म 1925 में झाँसी की तहसील मउरानीपुर में हुआ था। मोहन कुशवाहा 40 वर्ष के थे तभी हिंदुस्तान और चीन का युद्ध छिड़ गया था। मोहन कुशवाहा तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की एक अपील पर अपना घर, रुपये पैसे और जेवरात राहत कोष में जमा करा कर दान कर दिया था। कुछ समय बाद हिंदुस्तान और चीन की जंग तो थम गई लेकिन मोहन कुशवाहा के सामने खुद की रोजी रोटी के लिए बड़ा संकट खड़ा हो गया। देश के लिए सब कुछ कुर्बान कर देने वाले मोहन कुशवाह की सुध तब से लेकर आज तक किसी ने भी नहीं ली। मोहन कुशवाहा आज तकरीबन 95 वर्ष के हो चुके हैं और सकरार के पास नेशनल हाईवे के किनारे एक छोटी सी झोपड़ी में अपनी जिंदगी गुजारने को मजबूर हैं। मोहन कुशवाहा बताते हैं कि इस दौरान उनकी पत्नी भी उनको छोड़कर चली गई। अभी से मोहन कुशवाहा अपनी जिंदगी इसी बदहाल जिंदगी में गुजारने को मजबूर हैं। अपने को जिंदा रखने के लिए मोहन कुशवाहा उम्र के इस पड़ाव में लोगों के रहमों करम पर मजबूर है।
देश का एक ऐसा सच्चा दानवीर जिसमें बिना हथियार उठाए ही जिंदगी की बड़ी जंग को अकेले ही लड़ा! जो हमारी नज़रों में एक सच्चा स्वतंत्रता सेनानी है लेकिन देश की राजनीति और सरकारों की बेरुखी इस सच्चे दानवीर और स्वतंत्रा सेनानी की जिंदगी पर भारी पड़ गई है।