प्रवासी मजदूर श्रमदान से रच रहे जल संरक्षण की अनूठी कहानी

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बांदा के घरार नाले को पुनर्जीवित करने का कर रहे प्रयास

राकेश कुमार अग्रवाल की विशेष रिपोर्ट

बांदा। कहते हैं कि इंसान पर तमाम ऋण होते हैं। इन ऋणों में सबसे बडा ऋण मातृभूमि का ऋण होता है। इसी मातृभूमि की खातिर लाॅकडाउन के कारण वापस अपने गांव लौटे मजदूर जल संरक्षण के लिए घरार नाले को पुनर्जीवित करने में जुट गए हैं।

” श्रम से बनाएंगे मिट्टी को सोना, जीवन बनेगा सुंदर सलोना ” गीत को समवेत स्वर में गाते हुए आधा सैकडा से अधिक प्रवासी मजदूर आजकल सामूहिक श्रमदान कर घरार नाले की डीसिल्टिंग व खरपतवार निकालने में प्राणपण से जुटे हुए हैं।

बांदा जिले के नरैनी विकास खंड के बिल्हरका ग्राम पंचायत का मजरा है भांवरपुर। कोरोना वायरस के संक्रमण को कम करने के लिए लागू हुए लाकडाउन के कारण रोजी रोजगार ठप हो जाने के बाद जैसे तैसे वापस अपने गांव लौटकर आए इन मजदूरों के पास जाॅब कार्ड नहीं हैं। मजरे में मनरेगा के तहत भी कोई काम नहीं हो रहा है। वापस लौटे मजदूरों ने ग्राम प्रधान से मिलकर कई बार काम मांगा लेकिन प्रधान ने काम देने में असमर्थता जता दी।

पन्ना की घाटियों से निकलकर बदौसा नदी में मिलने वाला घरार नाला का उदगम पन्ना की घाटियों से हुआ है। यह नाला सदानीरा रहा है। इस नाले से करतल से लेकर बदौसा तक के कई गाँवो के लोगों व पशुओं की प्यास बुझती थी। वन विभाग, व लघु सिंचाई विभाग ने इस नाले में जगह जगह आधा सैकडा चैकडैम बना दिया है। चैकडैमों की हालत भी खराब है। गहरीकरण न होने , रखरखाव न होने के कारण घरार नाला मृतपाय सा हो गया है। उसका अस्तित्व खत्म होने की कगार पर है. नाले के इर्द गिर्द खरपतवार उग आए हैं।

मनरेगा में काम न मिलने पर वापस लौटे कामगारों ने घरार नाले के पनर्जीवन का फैसला लिया और फावडा, कुदाल, कुल्हाडी, गैंती लेकर जल संरक्षण के प्रयासों में डटे हुए हैं।

प्रवासी कामगारों की यह पहल वाकई अनुकरणीय है।

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