रिपोर्ट- राकेश कुमार अग्रवाल
गांवों को लोकतंत्र की आत्मा कहा जाता है लेकिन गांवों के हालात जस के तस रहे . बिजली , पानी , सडक , सिंचाई , सफाई , शिक्षा , स्वास्थ्य जैसी प्राथमिक सुविधाओं से महरूम रहे गांवों की दशा व दिशा सुधारने के लिए देश की संसद ने तय किया था कि ग्राम स्तर पर लोकतंत्र को वास्तविक स्तर पर स्थापित किए बिना देश में आत्मनिर्भरता और खुशहाली के रास्तों को खोजा नहीं जा सकता।
लोक स्वराज की इसी भावना के उद्देश्य से देश की संसद ने 1992 में , संविधान में 73 वें संशोधन के जरिए पहली बार एक ऐसा पंचायती राज अधिनियम स्वीकृत किया , जो न केवल ग्रामीण स्तर पर चुने गए प्रतिनिधियों के संवैधानिक अधिकार स्वीकार करती है बल्कि उन्हें आत्मनिर्भरता और स्वनिर्णय के व्यापक अधिकारों से सुसज्जित भी करती है ताकि गांव के लोग गांव के कुशल संचालन एवं प्रबंधन हेतु स्वयं ही आवश्यक निर्णय ले सकें ।
1992 में किए गए 73वें संशोधन के साथ देश के सभी राज्यों से यह अपेक्षा की गई थी कि वे संविधान संशोधन की मूल भावना के अनुरूप अपने-अपने विधान मंडलों ( विधान सभाओं / परिषदों ) से आवश्यक कानूनी संशोधन कराकर नई पंचायती राज व्यवस्था को लागू करेंगे । इसी संदर्भ में उत्तर प्रदेश विधानसभा ने 1994 में प्रदेश के लिए पंचायती अधिनियम स्वीकृत किया । 22 अप्रैल 1994 से पंचायती राज कानूनों को पूर्ण संवैधानिक मान्यता प्राप्त हो सकी।
तीन स्तरों पर चलने वाली पंचायत राज व्यवस्था :-
संविधान के 73वें संशोधन में यह साफ साफ कहा गया है कि जिन राज्यों की आबादी 20 लाख या उससे ऊपर है वहां पंचायतों को ‘तीन स्तरीय ढांचा’ बनाया जाना आवश्यक है । जब तक हमारे प्रदेश में 1961 का पंचायती राज अधिनियम प्रभावी था . जिसके अंतर्गत गांवों में ग्राम पंचायतें ( या ग्रामसभा ) विकासखंड या ब्लॉक स्तर पर क्षेत्र समितियां ( बी0डी0सी0 ) तथा जनपद स्तर पर जिला परिषद कार्यरत थीं। 1994 में बनाए गए कानूनों के अनुसार गांव स्तर पर ग्राम पंचायतें होंगी . विकासखंड या ब्लॉक स्तर पर क्षेत्र पंचायत एवं जनपद स्तर पर जिला पंचायतें कार्य करेंगीं .
त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था की विस्तृत रूपरेखा पंचायतों का स्वरूप :-
नये पंचायती राज कानूनों का मुख्य उद्देश्य यह है कि एक तरफ जहां ग्राम स्तर के लोग अपने आसपास के संसाधनों और गांव की आर्थिक क्षमता का अंदाजा लगाकर स्वयं अपने लिए विकास का अपना ढांचा चुनें वहीं प्रत्येक विकासखंड या ब्लॉक स्तर पर यह सभी पंचायतें मिलकर पूरे विकासखंड या ब्लॉक के लिए योजनाओं का निर्माण करें , इसके साथ ही साथ सारे जनपद की ग्राम व क्षेत्र पंचायतें आपस में मिलकर ऐसा ढांचा खड़ा करें जहां वह न केवल आपस में सहयोग कर सकें बल्कि पूरे जनपद के स्तर पर अपनी योजनाओं का ऐसा स्वरूप निर्धारित करें जो उस क्षेत्र विशेष में आर्थिक , भौगोलिक , सामाजिक तथा सांस्कृतिक माहौल से मिलता जुलता हो। इस प्रकार हम पाते हैं कि एक तरफ जहां से पंचायतें ग्राम स्तर पर विशिष्टता बनाए रखते हुए आत्मनिर्भरता की प्रवृत्ति को बढ़ावा देती हैं वहीं क्रमशः बड़े समूह और समाज से मिलकर चलने की सोच भी पैदा करना चाहती हैं ।
ग्राम पंचायतों को आबादी के अनुसार निर्धारित किया जा रहा है वहीं क्षेत्र और जिला पंचायतों की कुल क्षमता विकास खंड या जिले की आबादी के आधार पर तय होगी । ग्राम पंचायत के सदस्यों एवं प्रधान के चुनाव में गांव में रहने वाला 18 वर्ष की आयु का यह व्यक्ति मतदान कर सकता है जिनका नाम गांव की मतदाता सूची में दर्ज है। साथ ही यह भी स्पष्ट है कि अब त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था में प्रारंभिक स्तर पर यानि ग्राम पंचायतों के लिए ही ग्राम प्रधान सीधे जनता द्वारा चुना जाएगा। प्रत्येक एक हजार की आबादी वाले ग्राम पंचायत में 8 सदस्य होंगे . एक हजार से ज्यादा किंतु 2 हजार तक की आबादी पर 11 सदस्य तथा 2 हजार से 3 हजार तक कुल 13 सदस्य होंगे। 3 हजार से अधिक आबादी पर 15 सदस्य होंगे। क्षेत्र पंचायतों के लिए प्रत्येक 2 हजार की जनसंख्या पर एक सदस्य होगा और इस प्रकार अगर पूरे विकास खंड की आबादी 50 हजार है तो क्षेत्र पंचायत के कुल सदस्यों की संख्या 25 होगी जो सीधे मतदाताओं द्वारा चुने जाएंगे। इसी प्रकार जिला पंचायतों के लिए प्रत्येक 50 हजार की आबादी पर एक जिला पंचायत सदस्य चुना जाएगा।
पंचायतों का नामकरण :-
एक से ज्यादा गांवों के समूह से बनी ग्राम पंचायत का नामकरण सबसे अधिक आबादी वाले गांव के नाम पर होगा ।विकासखंड के नाम पर इस क्षेत्र पंचायत का नाम तय होगा और प्रत्येक जिले के नाम पर जिला पंचायत का नाम रखा जाएगा।
अब जबकि पंचायत चुनावों की रणभेरी बज चुकी है . चुनावों को लेकर उत्सुकता व क्रेज चरम पर है . चार चरणों में प्रदेश में चुनाव सम्पन्न होने जा रहा है . ठीक 10 माह बाद प्रदेश में विधानसभा चुनावों का बिगुल बजना है . प्रदेश की राजनीतिक पार्टियों के लिए यह चुनाव लिटमस टेस्ट की तरह होने वाला है. यह एक तरह से प्री विधानसभा इलेक्शन है . जिससे पार्टियों को पता चलने वाला है कि राजनीतिक करंट और जमीनी हकीकत क्या इशारा कर रही है . इसलिए यदि इन चुनावों को जिस पार्टी ने गंभीरता से न लिया उसके लिए अपनी संभावनाओं की हकीकत जानने से महरूम होना पडेगा . क्योंकि प्रदेश की सत्ता तक पहुंचने का रास्ता तो गांवों से ही निकलेगा .