राकेश कुमार अग्रवाल
अब जबकि पूरा उत्तर भारत कडाके की सर्दी की चपेट में है . ठिठुरन भरी सर्दी में भी पश्चिमी बंगाल का राजनीतिक पारा लगातार बढता जा रहा है . बिहार व तेलंगाना में मिली जीत के बाद भाजपा जहां आक्रामक तेवरों में है वहीं तीखे तेवरों के लिए जाने जानी वाली ममता बनर्जी के तेवर कुछ कमजोर नजर आने लगे हैं . जनता दल यूनाईटेड और एआईएमआईएम के चुनाव मैदान में उतरने की घोषणा के बाद लगने लगा है कि 2021 में बंगाल के चुनाव का घमासान सबसे ज्यादा सुर्खियाें बटोरने वाला चुनाव होगा .
2021 में पांच राज्यों पश्चिमी बंगाल , तमिलनाडु, असम , केरल व पुडुचेरी में विधानसभा चुनाव होना है . लेकिन लगता है कि असली चुनावी महाभारत पश्चिमी बंगाल में होने जा रही है . जहां लगभग एक दर्जन दल चुनावी जंग में उतरने जा रहे हैं लेकिन सबसे बडा मुकाबला भाजपा और सत्तारूढ तृणमूल कांग्रेस में होने जा रहा है . बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले के डायमंड हार्बर में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा के काफिले में शामिल पार्टी के सभी नेताओं की गाडियों पर हुए पथराव में पार्टी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय व उपाध्यक्ष मुकुल राय को चोटें आई थीं . पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष का एक सुरक्षा कर्मी भी घायल हो गया था . इस घटना क्रम के बाद भाजपा न केवल आक्रामक मू़ड में थी बल्कि उसने ममता बनर्जी पर जमकर भडास निकाली . उक्त घटना की गूंज दिल्ली से लेकर कोलकाता तक सभी जगह रही . राज्यपाल ने डीजीपी व मुख्य सचिव को तलब किया तो केन्द्र सरकार ने अधिकारियों को दिल्ली बुलाने की कोशिश की जिससे राज्य बनाम केन्द्र में सिरफुटौव्वल की स्थितियां पैदा हो गईं . पार्टी अध्यक्ष के काफिले पर हुए हमले का मामला ठंडा भी न पड पाया था कि गृह मंत्री अमित शाह दो दिन के दौरे पर कोलकाता जा पहुंचे . पश्चिमी मिदनापुर में आयोजित रैली में निवर्तमान सांसद सुनील मंडल , पूर्व सांसद दशरथ तिर्की और 10 विधायकों जिनमें तृणमूल कांग्रेस के शुभेंदु अधिकारी , शीलभद्र दत्ता , विश्वजीत कुंडू , शुक्र मुंडा , बनाश्री मैती , सैकत पांजा , सीपीएम विधायक तापसी मंडल व दिपाली विस्वास , सीपीआई विधायक अशोक डिंडा , कांग्रेस विधायक सुदीप मुखर्जी ने भाजपा का दामन थाम लिया . गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि आगामी विधानसभा चुनावों में पार्टी 200 से ज्यादा सीटें जीतकर सरकार बनाएगी . महज पांच साल पहले 2016 में हुए विधानसभा चुनावों में पार्टी ने 10.16 फीसदी वोटों के साथ केवल 3 सीटें हासिल की थीं . जबकि तृणमूल कांग्रेस ने 44.91 फीसदी वोटों के साथ 211 सीटें हासिल की थीं . 294 सीटों वाली विधानसभा में सरकार बनाने का जादुई आंकडा 147 सीटों का है . सवाल उठता है कि आखिर पांच साल में ऐसा क्या बदल गया जिसके कारण गृहमंत्री अमित शाह 2016 के चुनाव परिणामों को पलटाने का दावा कर सरकार बनाने की बातें करने लगे . जिस पार्टी के पास सीटों की संख्या इकाई में हो वह सैकडा भर नहीं बल्कि दो सैकडा सीटें हासिल करने व सरकार बनाने का दंभ भरे तो निश्चित तौर पर इसके पीछे कोई कारण तो होना ही चाहिए . सवाल यह भी है कि क्या 65 वर्षीया ममता बनर्जी का जादू खत्म हो रहा है या फिर भाजपा के कमल के पास कोई जादुई शक्ति आ गई है .
बंगाल में तीन दशक तक कांग्रेस ने राज किया . 34 साल तक अविराम वामदलों ने सरकार चलाई . दस वर्षों से सत्ता पर ममता काबिज हैं . गत पांच वर्षों से भाजपा व संघ ने पश्चिमी बंगाल में ऐडी चोटी का जोर लगा रखा है . पार्टी के लिए लोकसभा चुनाव संजीवनी साबित हुए थे जब पार्टी ने 40.25 फीसदी वोटों के साथ 18 सीटें जीत ली थीं . इस सफलता ने पार्टी में जैसे पंख लगा दिए . बंगाल का किला फतह करने के लिए भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी . इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि पार्टी के 117 नेता बंगाल विजय के लिए प्राणपण से जुटे हुए हैं . पार्टी का संगठन और पूरी मशीनरी जिस तरह से मिशन बंगाल के लिए काम कर रही है उससे यह तो तय है कि भाजपा की सरकार बनाने का दावा भले बडबोला नजर आ रहा हो लेकिन भारतीय जनता पार्टी दिल्ली में आम आदमी पार्टी की तरह हैरत अंगेज प्रदर्शन कर सभी को चौंका जरूर सकती है .
जनता दल यूनाइटेड और एआईएमआईएम ने चुनाव मैदान में उतरने की घोषणा कर कई पार्टियों के चुनावी समीकरण बिगाडने का इंतजाम अवश्य कर दिया है . जदयू के राष्ट्रीय महासचिव व बंगाल के चुनाव प्रभारी गुलाम रसूल बलियावी ने राज्य में कम से कम 75 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की घोषणा कर दी है . हैदराबाद नगर निगम चुनावों में पुराना प्रदर्शन दोहराने व बंगाल विधानसभा चुनावों में चौंकाने वाला प्रदर्शन करने वाली एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी द्वारा बंगाल व यूपी विधानसभा चुनावों में पार्टी के चुनाव मैदान में उतारने की घोषणा के बाद तृणमूल कांग्रेस की घेराबंदी की संभावना बढ गई है . 28 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं वाले इस राज्य में तृणमूल कांग्रेस का बडा वोटबैंक मुस्लिम हैं . जदयू और एआईएमआईएम के आने के बाद इस वोट बैंक में भी सेंध लगने के आसार बन गए हैं . जिसका सीधा खामियाजा तृणमूल को उठाना पड सकता है . कांग्रेस का जहां तक सवाल है पार्टी अभी भी अपने अंदरूनी मतभेदों को सुलझाने में जूझ रही है . ऐसे में कांग्रेस इन चुनावों में बडी चुनौती खडी कर पाएगी ऐसे आसार नजर नहीं आ रहे हैं . ममता बनर्जी भाजपा को यूं ही वाकओवर दे देंगी ऐसा उनका मिजाज नहीं है . ऐसे में यह तो तय है कि बंगाल के चुनाव पर सभी की निगाहें होंगीं . बंगाल के मतदाता के मूड में क्या है इसको जानने के लिए कुछ माह तो इंतजार करना ही पडेगा .