बड़ों की बेरहम दुनिया में असुरक्षित बच्चे

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राकेश कुमार अग्रवाल
बच्चों को कुदरत की सबसे खूबसूरत नेमत कहा जाता है . बच्चों के बिना घर आँगन सूना सूना होता है . संतानोत्पत्ति में नाकाम दम्पत्ति एक बच्चे की कामना के लिए पीर – फकीर , मंदिर , मजार से लेकर इनफर्टिलिटी सेंटरों की मदद लेते हैं ताकि उनकी सूनी गोद हरी भरी हो जाए. लेकिन यही कोमल , मासूम बच्चे बडों की बेरहम दुनिया में अपने को सबसे ज्यादा असहाय और असुरक्षित महसूस कर रहे हैं .
समाचारों की दुनिया में कोई दिन ऐसा नहीं जाता है जिस दिन बच्चों से जुडे अपराधों की खबरें सुर्खियां न बनती हों . लेकिन हाल ही में घटी कुछ खबरों ने कठोर दिलों के लोगों को भी झकझोर दिया . एक खबर कानपुर के निकट घाटमपुर से थी . खबर के मुताबिक दो भाइयों ने छह साल की मासूम बच्ची के साथ दुराचार करने के बाद उसकी गला काटकर हत्या कर दी . उसका दिल , गुर्दा , आँतें निकाल लीं और सिर फोड दिया . संतान प्राप्ति के लिए एक नि: संतान दम्पत्ति ने इस वीभत्स घटना को अंजाम दे डाला .
दूसरी खबर भी उत्तर प्रदेश के चित्रकूट से जुडी है . खबर के मुताबिक सिंचाई विभाग में तैनात एक अवर अभियंता को सीबीआई ने गिरफ्तार किया है . जिस पर पचास से अधिक बच्चों के यौन उत्पीडन के आरोप हैं . सीबीआई के अनुसार अवर अभियंता रामभवन ने बीते दस वर्षों में चित्रकूट , बांदा और हमीरपुर जिले में आधा सैकडा से अधिक 5 से 16 के बच्चों को अपनी हैवानियत का शिकार बनाया . सीबीआई ने छापेमारी में अवर अभियंता के पास से आठ मोबाइल फोन , वेब कैमरा , सेक्स टाॅयज , लैपटाॅप , मेमोरी कार्ड और पैन ड्राइव जब्त किए हैं . उसके पास से बडी मात्रा में अश्लील तस्वीरें एवं वीडियो भी बरामद हुए हैं . सीबीआई की मानें तो वह बच्चों को प्रलोभन देकर उनकी अश्लील तस्वीरें व वीडियो बनाकर उन्हें डार्कवेब और क्लाउड के जरिए चाइल्ड पोर्न को विदेशों में बेचता था . जिसकी विदेशों में बडी मांग है . दरअसल जो बच्चे मासूम होते हैं बडों के सबसे आसान शिकार होते हैं . ये बडे लोग उस बहेलिया की तरह होते हैं जो दाना डालकर पक्षियों को अपने जाल में फंसाता है .
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो ( एनसीआरबी ) के आँकडों की मानें तो देश में प्रतिदिन 350 से अधिक बच्चे विभिन्न अपराधों के शिकार होते हैं . वर्ष 2015 में जहां बच्चों के साथ हुए अपराधों के देश में 94172 मामले दर्ज हुए थे . 2016 में दर्ज मामलों की संख्या बढकर 1.07 लाख पहुंच गई . 2017 में दर्ज मामलों मे और भी उछाल आया और यह संख्या 129032 जा पहुुंची . बच्चों के साथ होने वाले अपराधों में पश्चिमी बंगाल , उत्तर प्रदेश , महाराष्ट्र , म.प्र और दिल्ली देश में सिरमौर हैं . इन पांचों राज्यों में बच्चों के साथ होने वाले अपराध देश में बच्चों के साथ घटने वाले प्रकरणों का पचास फीसदी हैं . बच्चों के साथ घटने वाले अपराधों में आधे मामले अपहरण , बाल तस्करी , बलात्कार , यौन उत्पीडन से जुडे होते हैं .
मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था वर्ल्ड विजन इंडिया ने भारत में 45844 बच्चों के बीच सर्वेक्षण कर जो रिपोर्ट प्रस्तुत की है वह चौंकाने के साथ ही बच्चों के साथ घटने वाले अपराधों की भयावहता की बानगी पेश करती है. रिपोर्ट के अनुसार देश का हर दूसरा बच्चा यौन उत्पीडन का शिकार है . पीडितों में लडके – लडकियाँ दोनों शामिल हैं . रिपोर्ट का सबसे डरावना तथ्य यह था कि बच्चों के साथ 98 फीसदी मामलों में बच्चों के परिचित या संबंधी ने ही उनका यौन उत्पीडन किया है . मतलब साफ है कि घर की चहारदीवारी में बच्चे सुरक्षित नहीं हैं . इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि घर में होने वाले उत्पीडन के ज्यादातर मामलों को घर में ही दबा दिया जाता है . अन्यथा बच्चों के साथ घटने वाले अपराधों का आँकडा न जाने किस स्तर पर पहुंच जाए .
देश में हर साल 40000 बच्चे लापता हो जाते हैं . इनमें से 10000 से अधिक बच्चों की तो कोई पहचान नहीं हो पाती है . हर आठवें मिनट में एक लडकी गायब हो जाती है . ज्यादातर लडकियों को देह व्यापार के कारोबार में धकेल दिया जाता है . क्योंकि इस कारोबार में कम उम्र की लडकी की मांग ज्यादा होती है . आँकडों की मानें तो देश में 16 मिलियन से अधिक लडकियाँ देह व्यापार के कारोबार में धकेली जा चुकी हैं . गैर सरकारी संगठन चाइल्ड राइट्स एंड यू ( क्राइ ) का बच्चों के साथ होने वाले अपराधों का अध्ययन बताता है कि 2006 से 2016 के बीच एक दशक के दौरान बच्चों के साथ घटने वाले अपराधों में पांच सौ फीसदी की वृद्धि हुई है .
बच्चों के साथ यौन अपराध करने वाले अपराधियों पर शिकंजा कसने के लिए प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रिन फ्राम सेक्सुअल आफेंस एक्ट ( पाॅक्सो ) लाया गया . जिसमें कडी सजा का प्रावधान किया गया है ताकि बाल यौन अपराधियों को कडा सबक सिखाया जा सके . 2016 में पाॅक्सो एक्ट के तहत छोटी बच्चियों से बलात्कार के 64138 मामले दर्ज हुए थे.
बचपन में ही हिंसा या यौन हिंसा का शिकार हुए बच्चों पर पडने वाला दुष्प्रभाव पूरी जिंदगी उनके जेहन में रहता है. ऐसे में यह बार बार समझने की जरूरत है कि बच्चों को गुड टच , बैड टच के बारे में बचपन से बताया व समझाया जाए साथ ही उनसे पेरेन्ट्स की इतनी कनेक्टिविटी जरूर होनी चाहिए कि बच्चे उनसे खुलकर अपनी बात कह सकें , उन्हें बता सकें . बच्चों से प्रतिदिन जरूर बात करें . और उनको जरूर अपनी नजरों में रखें . आखिर वो आपकी आँखों के तारे जो हैं.

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