अयोध्या। अयोध्या मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के पावन धर्म नगरी अयोध्या, छठ पर्व की महिमा अपरंपार है। एक तरफ जहां पूरी दुनिया उगते हुवे सूर्य को पूजती है ,वही बिहारी व पूर्वांचली लोग अस्त होते सूर्य को भी श्रद्धा से पूजते हैं।
जी.. हां…. ये कोई मिथ्या या अतिश्योक्ति नहीं है ।
जो व्यक्ति थोड़ा बहुत भी छठ पर्व के बारे में जानते होंगे उन्हे…. ये बात अच्छी तरह से पता होगी ,…छठ पर्व (व्रत )में सबसे पहले अस्त होते सूर्य की ही पूजा होती है ,उसके बाद सूर्योदय की पूजा होती है।बिहारी पूर्वांचली समाज का यह बहुत अद्भुद सकारात्मक सोच समाज के लिए दिव्यदर्शन की थाती है।
इस छठ पर्व से हमे ये गूढ़ ज्ञान लेनी चाहिए कि जिसका भी अंत होता है,,, उसका उदय होना भी अटल निश्चित है।अर्थात पराजय के बाद विजय भी निर्धारित है।
जिस तरह सूर्यास्त के बाद सूर्योदय निर्धारित होता है ,,उसी प्रकार पराजय के बाद जीत भी निर्धारित है।
छठ व्रत से हमे ये जरूर सीखना चाहिए कि छठ व्रती अस्त होते सूर्य को तो पूजती ही हैं, उसके बाद निराजल रहते हुवे ,….अगले दिन के उदय होनेवाले वाले सूर्य के इंतजार भूखी प्यासी रहती हैं, ….अर्थात जबतक अगले सुबह सूर्य नही निकलते हैं, वे व्रती जल तक ग्रहण नही करती हैं।अर्थात सदा ही आशावादी रहें ,,,अस्त होनेवाले का उदय भी अवश्य होगा यही छठ व्रत का मुख्य उद्देश्य है, हिम्मत न हारे और आशावान रहें दुख तो सुख भी आयेगा इस पर्व का यही दर्शन है।
छठ हम बिहारी व पूर्वांचली लोगो के भावनाओ से जुड़ी एक विशेष कड़ी है जिसमें रंग बिरंगे मिट्टी के कोशी दिए , भाति भाति के फल फूल ,कंद _ मूल ,और हमारे विशेष बिहारी पकवान , थेकुआ, खजूर, खस्ता, साठी चिउड़ा आदि, ये सब हमारी भावनाओं में रचे बसे हैं।
अर्थात सीधे सपाट शब्दों में कहा जाए तो ,, साफ स्पष्ट है कि हमें अपना यह छठ पर्व सदा अपने जन्मभूमि पे ही मानना अच्छा लगता है। क्योंकि छठ ही एक ऐसा पर्व है जिस पर्व पे हम बिहारी पूर्वांचली बड़े शहर को छोड़कर अपनी गांव की पगडंडी की उंगली थामना पसंद करते है। हम बिहारी पूर्वांचली लोग जो रोजी रोटी के जुगत में भारत के अलग अलग शहरों में बसे हुवे हैं ,…हम सब वर्ष में एकबार छठ पे अपने घर गांव जरूर जरूर आते हैं।
देश में बिहारियों और पूर्वांचली लोगो को अपने जन्मभूमि पे बुलाने व आपस में अपनो से अपनो को मिलने मिलाने का यह एक माध्यम भी है। हम बिहारी पूर्वांचली भारत के किसी भी कोने में क्यों न रह रहे हो,…. किंतु छठ पर्व के अवसर पे अपने घर गांव में आने का हर संभव प्रयास करते हैं। ये छठ पर्व हमारी संस्कृति की एक अभिन्न हिस्सा है। क्योंकि, छठ हमारे लिए मात्र पर्व नही बल्कि….यह एक भावनात्मक लगाव है।
रिपोर्ट- मनोज कुमार तिवारी