- पिंक टॉयलेट स्त्रियों की सबसे बुनियादी ज़रूरत – पूजा गुप्ता
- चाहिए पिंक टॉयलेट, समाज भी असंवेदनहीन, नेता-अफ़सर चुप
वाराणसी। राजातालाब/ रोहनियां (18/11/2020) स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालयों का निर्माण कराया जा रहा है। खासकर ग्रामीण इलाकों, बाजारो में महिलाओं के लिए यूरिनल और टॉयलेट की उचित व्यवस्था नहीं है। इससे महिलाओं को दिक्कत होती है।
शहर में कई टॉयलेट बनाया गया है रखरखाव व साफ सफाई नहीं होने के कारण इसका उपयोग नहीं हो रहा है। इससे निजी कार्य हो या खरीदारी करनी के लिए यहाँ आने वाली महिलाओं के जरूरत पड़ने पर काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
जिले में राजातालाब, रोहनिया, मोहनसराय, सुजाबाद और गंगापुर नगर पंचायत के अलावा रानीबाजार के साथ ही जंसा, मिर्जामुराद, कछवा रोड, मोड़ैला, चाँदपुर, बेनीपुर आदि प्रमुख बाजार है। जहां काफी संख्या में महिलाएं खरीदारी करने के लिए आती है। इस दौरान महिलाओं को आवश्यकता पड़ने पर शौचालय नहीं मिलने से उन्हें काफी परेशानी झेलनी पड़ती है।
राजातालाब निवासिनी शिक्षिका पूजा गुप्ता ने कहा कि पिंक टॉयलेट स्त्रियों की है बुनियादी ज़रूरत और उक्त बाजारों में महिलाओं के लिए पिंक शौचालय होने चाहिए। इसके साथ ही उसके साफ -सफाई की व्यवस्था की जानी चाहिए।
बेनीपुर निवासिनी पूजा मसीह ने कहा कि बाजार में खरीदारी करते वक्त कई बार महिलाओं को शौचालय जाने की आवश्यकता पड़ती है लेकिन ऐसी व्यवस्था नहीं होने से महिलाएं काफी परेशान होती है।
सामाजिक कार्यकर्ता राजकुमार गुप्ता ने कहा कि केंद्र और प्रदेश सरकार की ओर से शौचालय बनाए जाने के लिए काफी धन खर्च किया जा रहा है लेकिन महिलाओं के लिए शौचालय बनाए जाने की ओर ध्यान नहीं दिया जाता है। यहां तक कि जनप्रतिनिधि भी इस समस्या के समाधान की ओर विचार नहीं करते है।
नेताओं और अफ़सरों ने भी चुप्पी साधी है, कहा कि राजातालाब चौराहे पर दो साल पहले जनसहयोग से एक यूरिनल बना तो हुआ है लेकिन सफाई के अभाव में वहां गंदगी का अंबार लगा रहता है। जरूरत पड़ने पर सोचना पड़ता है।
लड़कियों के हितों के लिए काम करने वाली रेड ब्रिगेड ट्रस्ट की सचिव प्रियंका भारती और इंडियन केयर शोसल फ़ाउंडेशन की प्रमुख शबा खान कहती हैं कि 2011 में सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार कम से कम लड़कियों, स्त्रियों के लिए स्कूलों, सार्वजनिक जगहों, और सरकारी ग़ैर सरकारी संस्थानों में अलग महिला पिंक शौचालय होनीं चाहिए। लेकिन, समाज महिलाओं के नितांत निजीकर्मों संबंधी जरूरत के अब भी उदासीन बना है। यह घोर असंवेदनशीलता है।
- राजकुमार गुप्ता