मानस मंथन अनुष्ठान (चतुर्थ दिवस)
चित्रकूट । भगवान श्रीराम का जीवन प्रकृति प्रदत्त और प्रकृति के आसपास बीता, इसलिए भगवान श्री राम मां जानकी की जिस छवि की आप पूजा करते हैं, वह वास्तव में चित्रकूट की ही है। भगवान राम ने यहां पर आकर प्रकृति से प्रेम का अतभुद पाठ पढाया। उन्होंने यहां पर आकर पर्णकुटी में निवास किया, कोल किरातों के द्वारा लाए गए जंगल के फल खाए। आज हमें अगर मां पयस्वनी को प्रकट करना है तो प्रकृति से प्रेम करना सीखना होगा। यह बातें साध्वी कात्यायिनी ने श्रीकामदगिरि परिक्रमा मार्ग स्थित ब्रहमकुंड के शनि मंदिर पर श्रीराम सेवा मिशन द्वारा आयोजित मानस मंथन अनुष्ठान के चतुर्थ दिवस श्रीराम जन्म की कथा सुनाते हुए कही।
उन्होंने कहा कि श्रीराम ही नहीं बल्कि मां जानकी भी प्रकृति प्रदत्त हैं। भूमि से उत्पन्न होने के कारण उनका दूसरा नाम भूमिजा है, माता का जीवन भूमि से उपजने के साथ ही भूमि के अंदर समा जाने के बीच का है। श्रीराम ने भी जब अपने धाम वापस जाने का निर्णय लिया तो उन्होंने सरयू मैया का गुप्तार घाट ही चुना। दृष्टांत कोई भी हो सकता है, लेकिन उसका अर्थ यह है कि श्रीराम व मां जानकी प्रकृति के पुजारी थे। करुणानिधान प्रभु श्री राम स्वयं आनंद स्वरुप हैं। भगवान् शंकर मानस में स्वयं कहते हैं,
हरि व्यापक सर्वत्र समाना।
प्रेम ते प्रगट होहिं मैं जाना।
अग जगमय सब रहित बिरागी ।
प्रेम तें प्रभु प्रगटइ जिमि आगी ।।
श्री हरि जो स्वयं आनंद स्वरुप हैं एकमात्र भक्तों के प्रेम के वशीभूत होकर प्रगट होते हैं। जिस प्रकार काष्ठ में सर्वत्र अग्नि का निवास होता है परन्तु जब तक उसे प्रगट करने के लिए घर्षण न किया जाये वह प्रगट नहीं होती। ठीक वैसे ही यह परमात्मा प्रेम की पुकार सुन प्रगट हो जाते हैं। यही परमात्मा अग्नि रूप में प्रगट होते हैं यही सूर्य रूप में, यही जल रूप में प्रगट होते हैं। भागीरथ हों, माता अनुसुइया या ऋषि गौतम सब ही ने प्रेम तपस्या से सुरसरि को प्रगट किया है। मात पयस्विनी के लिए ब्रम्हा जी ने तप किया है।हम प्रेम से यदि इस अनुष्ठान में संलग्न होंगे तो ही माता अपने आपको प्रगट करेंगी। प्रेम तब उपजेगा जब पहचान होगी। जन जन तक यह बात पहुँचे। जब जानकारी होगी तब दर्शन की अभिलाषा जागेगी। दर्शन से प्रेम दृढ़ होगा और मन में माँ को जाग्रत रूप में देखने की प्यास जागेगी। इससे दृढ संकल्प का उदय होगा। यही प्रेम तपस्या है। कथा के दौरान सुमधुर गायक अपने भजनों से लोगों का मन मोहने का काम कर रहे हैं। श्रीकामदगिरि पीठम के संत मदन गोपाल दास जी महराज ने कथा मंडपम में पहुंचकर कहा कि चित्रकूट अलौकिक स्थल है जहां पर स्वयं प्रभु श्रीराम ने साढे ग्यारह साल बिताए हैं। भगवान श्री राम ने चित्रकूट में स्वयं संतों व ऋषियों को उपर बैठाकर स्वयं नीचे बैठकर कथा सुनी। भगवान कामदगिरि में जब सब आए तो कोल किरात भी आए और उन्होंने कहा कि प्रभु आपके आने से हम सनाथ हो गए। श्रीकामदगिरि की तलहटी में बैठकर कथा सुनने से हम सबसे बडे़ भाग्यशाली व सनाथ हो गए। इस दौरान महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय के दूरवर्ती शिक्षा के प्रभारी डा0 कमलेश थापक व नीलम थापक भी पहुंचे और कथा का आनंद लिया। इस दौरान कथा के व्यवस्थापक सत्यनारायण मौय, संतोष तिवारी हैं।