संघर्ष करना खुद में एक इनाम

13

राकेश कुमार अग्रवाल
नए साल के पहले दिन मन को प्रफुल्लित करने वाली गुड न्यूज केरल से मिली . जहां की एक अंश कालिक सफाई कर्मी को ब्लाक प्रमुख चुन लिया गया .
अनुसूचित जाति की 46 वर्षीया आनंदवल्ली एक सप्ताह पहले तक जिस ब्लाक कार्यालय में अधिकारियों के पास चाय पानी पहुंचाती थी उसी ब्लाक की ब्लाक प्रमुख निर्वाचित हो गई हैं . 2011 में आनंदवल्ली अंशकालिक सफाईकर्मी के तौर पर पंचायत कार्यालय से जुडी थी . जहां मानदेय के रूप में उसे 6 साल तक दो हजार रुपए प्रतिमाह मिला करते थे . हाल ही में सम्पन्न निकाय चुनाव में कोल्लम के पतनापुरम ब्लाक में माकपानीत एलडीएफ को 13 सीटें और विपक्षी कांग्रेसनीत यूडीएफ को छह सीटें मिलीं . ब्लाक अध्यक्ष का पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित था . माकपा नीत एलडीएफ ने आनंदवल्ली को अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनाया . आनंदवल्ली ने बडे अंतर से जीत दर्ज करते हुए ब्लाक प्रमुख का ताज ग्रहण किया . आनंदवल्ली के अनुसार ऐसा लग रहा है कि मैं कोई सपना देख रही हूं . क्योंकि मैंने तो सपने में भी इस पद के लिए नहीं सोचा था . यही तो जीवन है . जरूरी नहीं है कि इसकी पटकथा ठीक वैसी हो जैसी आपने सोची हो .
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में यही तो कहा था कि कर्मण्ये वाधिकारश्ते मां फलेषु कदाचन अर्थात हम आपका का काम कर्म करना है . बस ईमानदारी से अपना कर्म करते जाइए फल की चिंता ईश्वर पर छोड दीजिए . यकीन मानिए उसने आपके लिए कुछ बहुत अच्छा सोच रखा है . जो आपने अपने लिए सोचा भी नहीं होता है वो आपको मिलता है .
अमेरिका के चर्चित गायक व गीतकार फिल ओक्स मानव मन को झिंझोडने वाली बात कहते हैं . फिल के अनुसार अपने संघर्ष के बदले में इनाम की उम्मीद करना गलत है . क्योंकि संघर्ष करना खुद में एक इनाम है . मेरठ में जन्मी इरा सिंघल ने आईएएस बनने के लिए कमोवेश ऐसा ही संघर्ष किया था जब 2010 में भारतीय राजस्व सेवा की परीक्षा में सफल होने के पश्चात भी अधिकारियों ने इरा को किसी वस्तु को ढकेलने , खींचने या उठाने की अयोग्यता का हवाला देते हुए उसे पद देने से मना कर दिया था . क्योंकि इरा स्कोलियोसिस नामक बीमारी से ग्रसित थीं . इरा ने इस फैसले को केन्द्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के समक्ष चुनौती दी . चार साल बाद ही सही प्राधिकरण ने इरा के पक्ष में फैसला सुनाया था . संघ लोक सेवा आयोग द्वारा 2014 में आयोजित सिविल सेवा परीक्षा में देश में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाली इरा देश की पहली ऐसी विकलांग महिला थी जिसने इस सर्वोच्च स्थान को हासिल किया था . इरा के पिता राजेन्द्र सिंघल एक इंजीनियर हैं जबकि मां श्रीमती अनीता सिंघल बीमा सलाहकार . कम्प्यूटर इंजीनियरिंग के बाद एमबीए करने वाली इरा ने 2010 , 2011 , 2013 , 2014 में सिविल परीक्षा दी जिसमें 2010 , 2011 व 2013 में उन्हें राजस्व सेवा के लिए चुना गया था . 2014 में इरा ने भारतीय प्रशासनिक सेवा में सफलता पाई .
अमेरिकन बिजनेसमैन जाॅन सी वाल्डेन कहते हैं कि संघर्ष यह प्रमाणित करता है कि आप अभी जीते नहीं हैं और आप यदि आत्मसमर्पण करने से इंकार करते हैं इसका मतलब है कि जीत अभी भी संभव है .
क्या मशहूर वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम ने कभी सोचा था कि वे एक दिन देश के राष्ट्रपति बनेंगे . वे तो अपने कर्म में लगे रहे और कुदरत उनके लिए रास्ते खुद बनाती गई . या के . सिवन ने कभी सोचा था कि वे कभी इसरो की जिम्मेदारी संभालेंगे जिसके पिता के पास उन्हें पढाने तक के पैसे नहीं थे . भारत के तेज गेंदबाज आशीष नेहरा ने देश की ओर से 18 साल तक खेला . किसी तेज गेंदबाज के लिए 18 साल तक खेलना परीकथा से कम नहीं होता है . 18 वर्ष के उनके अंतर्राष्ट्रीय कैरियर के दौरान 11 बार उनकी सर्जरी हुई . उनकी कोहनी , कूल्हा , टखना , अंगुली और दोनों घुटनों के आपरेशन हुए . वर्ष 2003 के विश्व कप में उनका पैर मुड गया था उन्हें बुरी तरह चोट लगी थी . चोट को देखते हुए इंग्लैण्ड के खिलाफ अगला मैच खेलने की संभावनाएं क्षीण हो गई थीं . लेकिन इसके बावजूद खेलने के लिए किसी का दिल मचल रहा था तो वे थे आशीष नेहरा . अगले 72 घंटे में आशीष ने लगभग 40 बार बर्फ से टखने की सिंकाई की . टैपिंग कराई , दवा भी खाई और मैच शुरु होने से पहले ही वे खेल के लिए फिट हो गए .
नए वर्ष का जो बडा सूत्र है वह यही है कि आप बिना फल की इच्छा के अपना कर्म करते रहिए , ईमानदारी से अपना बेस्ट दीजिए और याद रखिए
टूटने लगें हौसले तो ये याद रखना
बिना मेहनत के तख्तो ताज नहीं मिलते
ढूंढ लेते हैं अँधेरों में मंजिल अपनी क्योंकि जुगनू कभी रौशनी के मोहताज नहीं होते .

Click