सुननी होगी पर्यावरण की पुकार

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आज कोरोना महामारी के रूप में हम जिस भयावह दौर से गुजर रहे हैं यह मुख्य रूप से पर्यावरण की क्षति का ही परिणाम है। हमने नदियों, जलाशयों, पेड़-पौधों, वनों समेत अनेक प्राकृतिक भंडारों को अपूर्व नुकसान पहुंचाया है। भारत की राष्ट्रीय राजधानी समेत उत्तर प्रदेश के कानपुर और लखनऊ विश्व प्रसिद्ध प्रदूषित शहर रहे हैं।

पर्यावरण का सीधा सम्बन्ध प्रकृति से है। अपने परिवेश में हम तरह-तरह के जीव-जन्तु, पेड़-पौधे तथा अन्य सजीव-निर्जीव वस्तुएँ पाते हैं, ये सब मिलकर पर्यावरण की रचना करते हैं। विज्ञान की विभिन्न शाखाओं जैसे-भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान तथा जीव विज्ञान, आदि में विषय के मौलिक सिद्धान्तों तथा उनसे सम्बन्ध प्रायोगिक विषयों का अध्ययन किया जाता है। परन्तु आज की आवश्यकता यह है कि पर्यावरण के विस्तृत अध्ययन के साथ-साथ इससे सम्बन्धित व्यावहारिक ज्ञान पर बल दिया जाए। आधुनिक समाज को पर्यावरण से सम्बन्धित समस्याओं की शिक्षा व्यापक स्तर पर दी जानी चाहिए। इसकी समस्या से निपटने के बचावकारी उपायों की जानकारी भी आवश्यक हैं। आज के मशीनी युग में हम ऐसी स्थिति से गुजर रहे हैं, जो विनाशकारी है। प्रदूषण एक अभिशाप के रूप में सम्पूर्ण पर्यावरण को नष्ट करने के लिए हमारे सामने खड़ा है। सम्पूर्ण विश्व एक गम्भीर चुनौती के दौर से गुजर रहा है। यद्यपि हमारे पास पर्यावरण सम्बन्धी पाठ्य-सामग्री की कमी है, तथापि सन्दर्भ सामग्री की कमी नहीं है। वास्तव में आज पर्यावरण से सम्बद्ध उपलब्ध ज्ञान को व्यावहारिक बनाने की आवश्यकता है, ताकि समस्या को जनमानस सहज रूप से समझ सके। ऐसी विषम परिस्थिति में समाज को उसके कर्त्तव्य तथा दायित्व का एहसास होना आवश्यक है। इस प्रकार समाज में पर्यावरण के प्रति जागरुकता पैदा की जा सकती है। सजीव तथा निर्जीव दो संघटक मिलकर प्रकृति का निर्माण करते हैं। वायु, जल तथा भूमि निर्जीव घटकों में आते हैं, जबकि जन्तु-जगत तथा पादप-जगत से मिलकर सजीवों का निर्माण होता है। इन संघटकों के मध्य एक महत्वपूर्ण रिश्ता यह है कि अपने जीवन-निर्वाह के लिए परस्पर एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं। जीव-जगत में मानव सबसे अधिक सचेतन एवं संवेदनशील प्राणी है, अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु वह अन्य जीव-जन्तुओं, पेड़-पौधों, वायु, जल तथा भूमि पर निर्भर रहता है। अब हमें पर्यावरण की पुकार सुननी होगी। प्रकृति के प्रोत्साहन के लिए जागना होगा।

शिक्षा के माध्यम से पर्यावरण का ज्ञान मानव-जीवन के बहुमुखी विकास का एक प्रबल साधन है। इसका मुख्य उद्देश्य व्यक्ति के अन्दर शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संस्कृतिक तथा आध्यात्मिक बुद्धि एवं परिपक्वता लाना है। शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु प्राकृतिक वातावरण का ज्ञान अति आवश्यक है। प्राकृतिक वातावरण के बारे में ज्ञानार्जन की परम्परा भारतीय संस्कृति में आरम्भ से ही रही है। परन्तु आज के भौतिकवादी युग में परिस्थितियाँ भिन्न होती जा रही हैं। एक ओर जहां विज्ञान एवं तकनीकी के विभिन्न क्षेत्रों में नए-नए अविष्कार हो रहे हैं तो दूसरी ओर मानव परिवेश भी उसी गति से प्रभावित हो रहा है। आने वाली पीढ़ी को पर्यावरण में हो रहे परिवर्तनों का ज्ञान शिक्षा के माध्यम से होना आवश्यक है। पर्यावरण तथा शिक्षा के अन्तर्सम्बन्धों का ज्ञान हासिल करके कोई भी व्यक्ति इस दिशा में अनेक महत्वपूर्ण कार्य कर सकता है। पर्यावरण का विज्ञान से गहरा सम्बन्ध है, किन्तु उसकी शिक्षा में किसी प्रकार की वैज्ञानिक पेचीदगियाँ नहीं हैं। शिक्षार्थियों को प्रकृति तथा पारिस्थितिक ज्ञान सीधी तथा सरल भाषा में समझायी जानी चाहिए। शुरू-शुरू में यह ज्ञान सतही तौर पर मात्र परिचयात्मक ढंग से होना चाहिए, आगे चलकर इसके तकनीकी पहलुओं पर विचार किया जाना चाहिए। शिक्षा के क्षेत्र में पर्यावरण का ज्ञान मानवीय सुरक्षा के लिए आवश्यक है।

लोग अपने आसपास के आवरण को नष्ट करने का हर संभव प्रयास में लगे हैं, पर्यावरण की सुरक्षा तो सिर्फ दिमाग मे ही है। नगरीकरण तथा औद्योगीकरण के कारण पर्यावरण का अधिक से अधिक दोहन हो रहा है और इसका सीधा परिणाम यही निकल कर आ रहा है कि पर्यावरण का संतुलन बिगड़ता जा रहा है, जिससे कहीं सूखा, कहीं अतिवृष्टि जैसी समस्याएं उत्पन्न होती जा रही हैं। जो जमीन कल तक उपजाऊ थी, आज देखा जाए तो उसमें अच्छी फसल नहीं होती और ऐसा प्रतीत होता है कि आने वाले समय मे यह बंजर हो जाएगी। हमें पर्यावरण के संतुलन के लिए सभी को मिलकर कदम बढ़ाना होगा, वरना वसुंधरा कही जाने वाली हमारी पृथ्वी एक दिन बंजर होकर रह जायेगी। और इस प्रकार वह दिन भी आ सकता है कि यहां जीवन मुश्किल हो जाए। अगर अभी जागृत नहीं हुए तो और भी गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
हमें पर्यावरण को बचाने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। इसे बेहतर बनाने के लिए हमें सबसे पहले अपनी मुख्य जरूरत ‘जल’ को प्रदूषण से बचाना होगा। कारखानों का गंदा पानी, घरेलू, गंदा पानी, नालियों में प्रवाहित मल, सीवर लाइन का गंदा निष्कासित पानी समीपस्थ नदियों और समुद्र में गिरने से रोकना होगा। अंधाधुंध वायु प्रदूषण पैदा करने वाली चिमनियों को बंद करना होगा।

शिव मोहन यादव
(लेखक साहित्यकार और पत्रकार हैं।)

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