राकेश कुमार अग्रवाल
मंगलवार को ग्रेटर हैदराबाद म्यूनिसपल काॅरपोरेशन ( जीएचएमसी ) का चुनाव सम्पन्न हो गया . अब सभी की निगाहें 4 दिसम्बर को होने वाली मतगणना पर लगी हैं . ऐसी संभावना है कि 4 दिसम्बर को ही शाम तक चुनाव परिणाम घोषित हो जायेंगे .
पहली बार किसी म्यूनिसिपल काॅरपोरेशन के चुनावों की धमक राष्ट्रीय स्तर पर महसूस की जा रही है . दरअसल जीएचएमसी चुनावों को भाजपा ने राष्ट्रीय स्तर पर ला कर खडा कर दिया है . इन चुनावों में भाजपा ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा , गृह मंत्री अमित शाह , उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ , महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस , केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर , युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या , भूपेन्द्र यादव व स्मृति ईरानी जैसे नेताओं को चुनाव प्रचार में उतार कर चुनावों को सुर्खियों में ला दिया . और तो और हैदराबाद का नाम बदलकर भाग्यनगर करने व जीतने पर मुफ्त कोरोना वैक्सीन लगवाए जाने , बाढ पीडितों को 25 -25 हजार रुपए देने , सरकारी स्कूल के बच्चों को ऑनलाइन पढाई के लिए टैबलेट देने व हाई क्वालिटी मुफ्त वाई – फाई जैसे वादों ने भी चुनावों की गहमागहमी बढा दी .
वैसे तो देश में दिल्ली , मुम्बई , कोलकाता व चेन्नई चार मेट्रो सिटी हैं . 2014 में बैंगलुरु , हैदराबाद , अहमदाबाद व पुणे को भी मेट्रो सिटी के रूप में स्वीकार कर लिया गया . हैदराबाद आबादी के लिहाज से देश का सातवां सबसे बडा शहर है . जिसकी वर्तमान में लगभग एक करोड आबादी है. यह शहर तेलंगाना राज्य की राजधानी है . सडक, बिजली , यातायात , मैट्रो , सुरक्षा , शिक्षा , ईज ऑफ डूइंग बिजिनेस , आदि पैरामीटर के आधार पर मर्सर ने क्वालिटी ऑफ लिविंग रैंकिंग 2019 में हैदराबाद को देश का बेस्ट शहर चुना था . निजामों के इस शहर में 2015 में हुए म्यूनिसिपल काॅरपोरेशन चुनावों में सत्तारूढ तेलंगाना राष्ट्र समिति ( टीआरएस ) का कब्जा रहा था . टीआरएस ने 99 व सहयोगी ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलमीन ( एआईएमआईएम ) ने 44 सीटें जीतकर कारपोरेशन पर अपना कब्जा जमाया था . कांग्रेस के हिस्से में महज 2 व भाजपा – तेलगुदेशम पार्टी गठबंधन के हिस्से में महज 5 सीटें आई थीं . इस बार भाजपा ने निजाम की नगरी में सेंध लगाने व दक्षिण भारत का किला मजबूत करने के लिए एक बडा दांव खेला है . पार्टी ने जीएचएमसी की 150 सीटों में से 149 कार्पोरेटर सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं . कांग्रेस ने 146 , टीडीपी ने 106 , एआईएमआईएम ने 51 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं . 150 सीटों के लिए 1122 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं . सत्तारूढ टीआरएस के शहर में 6 लाख से अधिक पार्टी मेम्बर हैं . लगभग एक सैकडा निवर्तमान काॅरपोरेटर हैं . कांग्रेस के संकट खत्म होने का नाम नहीं ले रहे हैं . चुनाव के पहले पूर्व केन्द्रीय मंत्री एस सत्यनारायन , पूर्व विधायक बिक्षापति यादव , व पूर्व मेयर कार्तिक रेड्डी ने कांग्रेस छोडकर भाजपा का दामन थाम लिया . जबकि एआईएमआईएम पुराने हैदराबाद व मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में अपने को आज भी सुरक्षित महसूस करती है . क्योंकि यहां की सात सीटों पर आज भी उसके टिकट पर चुने गए विधायक हैं .
7, 467, 256 मतदाताओं वाले इस नगर निगम में लगभग 38 लाख पुरुष मतदाता हैं जबकि लगभग 36 लाख महिला मतदाता हैं .
5380 करोड के बजट वाले हैदराबाद नगर निगम के चुनाव परिणाम यदि भाजपा के पक्ष में जाते हैं तो पार्टी को इसका फायदा आगामी पश्चिमी बंगाल व तमिलनाडु विधानसभा चुनावों में मिल सकता है . हैदराबाद में लगभग 65 फीसदी आबादी हिंदू है जबकि 30 फीसदी मुसलमान हैं . 2018 के विधानसभा चुनावों में टीआरएस सबसे बडा दल था . कांग्रेस 28.4 प्रतिशत वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रही थी . जबकि भाजपा को महज 7.5 फीसदी मत मिले थे . भाजपा की नगर निगम चुनावों से चाहत है कि वह कांग्रेस को पछाडकर मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभर कर आ सके . इसलिए उसने योगी आदित्यनाथ जैसे नेता को चुनाव प्रचार में उतारकर ध्रुवीकरण का दांव भी खेला है . क्योंकि पुराने शहर में भाजपा के लिए सेंध लगाना इतना आसान नहीं है . हाल ही में हुए विधानसभा उपचुनाव में दुब्बक सीट को भाजपा ने टीआरएस से हथियाकर यह संदेश तो दे ही दिया है कि उसको कम करके आँकने की भूल करना ठीक नहीं है . कांग्रेस को भाजपा के चुनाव अभियान से भी सबक लेने की जरूरत है कि नगर निकाय चुनावों को भी भाजपा ने किस शिद्दत से लडा है . उसने न केवल अपनी पूरी ताकत झोंक दी बल्कि इस चुनाव प्रचार शैली ने उसको चुनाव प्रचार में अन्य पार्टियों से बढत भी दिला दी . लेकिन इस हाईफाई चुनाव प्रचार को पार्टी वोटों में कितना तब्दील कर पाती है . चार दिसम्बर को होने वाली मतगणना के बाद तय होगा .