आल्हा ऊदल की वीरता से जाना जाता है महोबा

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महोबा , आल्हा ऊदल की वीरता के लिए देश में जानी जाती है। आल्हा का जन्म 25 मई 1140 सन को महोबा के ग्राम दिसरापुर में हुआ था, उनकी माता का नाम देवकुंवरी था। ज्योतिषियों ने बताया था कि आल्हा, सिंह लग्न में जन्मे हैं, इसलिए वह सभी शत्रुओं पर सिंह की तरह गरजते रहेंगे। आल्हा मां शारदा के भक्त थे और कहते हैं की मां शारदा ने आल्हा को अमरता का वरदान भी दिया था। वीर आल्हा की सवारी करिलिया घोडा, घोड़ा व पचशब्द हाथी था। आल्हा कभी भी किसी युद्ध में नहीं हारे।

बताया जाता है कि दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान की पुत्री बेला के सती होने पर युद्ध के समय जब आल्हा की सेना सब ओर से घिर गई, कोई योद्धा न बचा, तब आल्हा ने मां शारदा की दी हुई तलवार निकाली और जहां तक उस तलवार की आभा पड़ी वहां तक के पृथ्वीराज हाथी पर सवार आल्हा की प्रतिमा।के सभी सैनिक सिरहीन हो गए, केवल पृथ्वीराज और चंद्रकवि वृक्ष की ओट में शेष रहे। उसी समय गुरु गोरखनाथ वहां आ गए और आल्हा ने वह तलवार म्यान में रख ली तथा गोरखनाथ के आदेश से पृथ्वीराज को क्षमा कर दिया। इसके बाद गोरखनाथ आल्हा को अपने साथ तप के लिए कजली वन ले गए। अनूठी है आल्हा के विवाह की लड़ाईः राजकीय महाविद्यालय के पूर्व प्रवक्ता डॉ. एलसी अनुरागी बताते हैं कि वीर आल्हा महाभारत के ज्येष्ठ पांडव धर्मराज युधिष्ठिर अवतार माने जाते हैं।

आल्हा के विवाह की लड़ाई बड़ी अनूठी है। आल्हा का विवाह नैत्रगढ़ के शक्तिशाली राजा नैपाली की पुत्री सुनवां से हुआ था, सुनवां का दूसरा नाम मछला भी था। राजा नैपाली केपास इंद्र का दिया हुआ अमर ढोल था, जिसके बजाने से मरे हुए सैनिक भी जीवित हो जाते थे, इसलिए कोई भी राजा उनसे युद्ध करने का साहस नहीं करता था। राजा नैपाली ने अपनी पुत्री सुनवां के विवाह के लिए नाऊ, बारी, भाट, पुरोहित चारों नेगियों से तीन लाख का टीका विवाह के लिए देश में फिरवाया, लेकिन किसी ने विवाह प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया, यहां तक दिल्ली नरेश पृथ्वीराज व कन्नौज के राजा जयचंद्र ने भी अस्वीकार किया, इससे राजा नैपाली ने सुनवां पुत्री के विवाह के लिए स्वयंवर रचा और डंका को रखवा कर कहा जो इस डंका को बजाएगा उसी के साथ अपनी पुत्री का विवाह करूंगा। सुनवां केवल आल्हा के साथ विवाह करना चाहती थी, लेकिन उसके पिता आल्हा से विवाह नहीं कराना चाहते थे।

मछला ने ऊदल को पत्र लिखा और आल्हा से विवाह करने की बात बताई, जिस पर आल्हा ऊदल, मलखान, ढेबा, ताला सैयद सहित तमाम लोग नैनागढ़ पहुंच गएऔर ऊदल ने उस डंका को बजा दिया, तब राजा नैपाली ने अपने तीनों पुत्रों को युद्ध के लिए भेजा। अमृत कि आल्हा की सेना को नैपाली के पुत्रों अभियान ने युद्ध में मार गिराया तब मझला ने बताया कि इस डंका को बजाने से सारे मारे हुए सैनिक जीवित हो जाएंगे। तब ऊदल ने जोगा, भोगा, विजया, पूरन ठाकुर को युद्ध में कड़ी मात दी, जोगा भोगा को राजा ने अमर ढोल देना चाहा, लेकिन अमर ढोल महल में नहीं था, इसलिए राजा ने देवी शारदा का आह्वान करके अमर ढोल लाने को कहा। कथिततौर पर देवी इंद्र के पास ढोल लेने गईं, लेकिन इंद्र ने कहा कि आल्हा को अमरता का वरदान प्राप्त है, इसलिए ढोल को फोड़ दो और ढोल फोड़ दिया गया। देवी ने राजा से कहा कि ढोल फूट गया है, अपने बलबूते पर युद्ध करो। अंत में आल्हा ऊदल सहित सभी योद्धा ने नैपाली सेना को हराकर सुनवा के साथ आल्हा का विवाह करा दिया।

रिपोर्ट- राकेश कुमार अग्रवाल

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