कक्षाओं में बोली और ठिठोली की जगह गोली

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राकेश कुमार अग्रवाल

वर्ष 2020 जाते – जाते एक और ऐसी खबर दे गया जिसने शिक्षा जगत से जुडे लोगों को ही नहीं अभिभावक और आम जनमानस को भी झकझोर दिया . खबर उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के शिकारपुर से थी . जहां के सूरजभान सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कालेज में हाईस्कूल के दो सहपाठियों में सीट पर बैठने को लेकर झगडा हुआ . इसी दौरान एक छात्र ने अपने स्कूल बैग से पिस्टल निकाली और दूसरे छात्र पर दनादन दो फायर झोंक दिए . एक गोली छात्र टार्जन के सिर पर लगी और दूसरी गोली सीने में . टार्जन ने कक्षा में ही दम तोड दिया . तीस से अधिक छात्र छात्राओं से भरी कक्षा में चीख पुकार मच गई . सभी छात्र छात्रायें कक्षा से भाग खडे हुए . हालांकि घेराबंदी कर छात्र को दबोच लिया गया . लेकिन इसके पहले उसने पिस्टल लहराते हुए प्रिंसिपल को भी गोली मारने की धमकी दी थी . छात्र के स्कूल बैग की तलाशी में एक तमंचा और कारतूस अलग से बरामद हुआ है .
सीबीएसई द्वारा घोषित बोर्ड परीक्षाओं की तिथि पर चिंतन चल ही रहा था झिंझोडने वाली इस खबर ने नए साल के पहले दिन की खुमारी अपने आप उतार दी . खबर और भी डरावनी तब लगी जब उसमें जिक्र किया गया था कि उक्त छात्र जिसने हत्याकांड को अंजाम दिया है उस छात्र को एक दिन पहले दो शिक्षकों ने बुरी तरह पीट दिया था . हो सकता है कि वह छात्र दोनों शिक्षकों से पिटाई का बदला लेने के लिए पिस्टल और देशी तमंचा लेकर आया हो . आमतौर पर हाईस्कूल में पढने वाले छात्र किशोरवय होते हैं जिनकी उम्र महज 15 या 16 साल के इर्द गिर्द होती है . इस उम्र में हाॅरमोनल बदलाव के कारण बच्चों में अकसर उत्तेजना , चिडचिडापन , जिद्दी व गुस्सैल स्वभाव का होना देखा जाता है . लेकिन यह स्वभाव इतना खतरनाक व जानलेवा भी हो सकता है इस पर चिंतन जरूरी है .
1954 में कुमारी नाज , रतन कुमार व डेविड अब्राहम अभिनीत एक फिल्म आई थी बूट पालिश जिसका एक गीत आज भी उतना ही लोकप्रिय है नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है ? जिसमें गीत के माध्यम से ही बच्चा पलटकर जबाव देता है कि मुट्ठी में है तकदीर हमारी . देश की आजादी के समय कहां बच्चा मुट्ठी में अपनी तकदीर की बात कर रहा था वहीं 66 वर्ष बाद के बच्चे के हाथ में रोबोट , टैबलेट , ब्रश या पेन पेंसिल की जगह पिस्टल या तमंचा होना किसी डरावने सपने से कम नहीं है . जो सीट पर बैठने के छोटे से झगडे पर किसी दुश्मन नहीं अपने ही सहपाठी की जान लेने से भी नहीं हिचकता . या अपने ही शिक्षकों द्वारा की गई पिटाई से क्षुब्ध होकर उन्हीं के खून का प्यासा हो जाए और स्कूल बैग में बुक्स , स्टेशनरी की जगह अपने ही चाचा की लाइसेंसी पिस्टल और तमंचा लेकर चला आए . सवाल यह भी है कि यह छात्र है या पेशेवर हत्यारा जिसके हत्या करते वक्त न हाथ कांपे न रूह कांपी. सवाल ढेर सारे हैं कि हाईस्कूल में पढने वाले छात्र को आखिर पिस्टल और तमंचा मुहैया किसने कराए . माना कि चाचा की लाइसेंसी पिस्टल लेकर भतीजा स्कूल गया था . पिस्टल क्या कोई खिलौना है जिसे चाचा ने कारतूस के साथ उसे स्कूल ले जाने दिया . घर के अन्य सदस्यों ने इसे नोटिस क्यों नहीं किया ? सवाल यह भी है कि पिस्टल घर में सुरक्षित स्थान पर क्यों नहीं रखी गई थी . पिस्टल क्या कोई फल की टोकरी में रखी थी जिसे जो आए उठाए और चलाने लगे . दरअसल देखा जाए तो उत्तर प्रदेश में शस्त्र लाइलेंस पाना एक सामाजिक डिगरी की तरह है . जिससे यह साबित होता है कि आपकी प्रशासन और सत्ता के बीच पकड है और आप रसूख वाले हैं .
सवाल यह भी है कि पिस्टल के अलावा छात्र के पास तमंचा कहां से आया ? क्या लाइसेंसी के अलावा घर में गैर लाइसेंसी हथियार भी हैं . या छात्र किसी अवैध असलहा विक्रेता हैंडलर के सम्पर्क में था . सवाल यह भी है कि असलहा चलाना उसे किसने सिखाया ? जिसने प्रोफेशनल शूटर की तर्ज पर सहपाठी को मौत के घाट उतार दिया . सवाल यह भी है कि क्या बच्चे के क्रियाकलापों और गतिविधियों पर नजर रखने की जिम्मेदारी अभिभावकों की नहीं है ? जो बच्चे इंटर कालेज और डिग्री कालेज में पढते हैं उन बच्चों के कितने ऐसे पेरेन्ट्स हैं जो अपने बच्चों के स्कूल जाने के पूर्व उनके बैग चैक करते हैं . नियमित रूप से छोडिए हफ्ते या एक पखवाडे में बैग चैक कर लेते हों . हकीकत तो यह है कि चंद पेरेन्ट्स को छोड दिया जाए तो अधिकांश पेरेन्ट्स कभी भी अपने बच्चे के स्कूल बैग की तलाशी नहीं लेते . इस दौर में अधिकांश बच्चों का मिजाज तो इतना कडक है कि वे यदि अपने पेरेन्ट्स को उनके स्कूल बैग की तलाशी लेते देख लें तो बच्चे अपने माता पिता पर ही भडक उठते हैं . इस तथ्य का खुलासा हो सकता है कि आपको अतिश्योक्तिपूर्ण लगे . मेरे एक मित्र स्कूल संचालित करते हैं . एक दिन प्रिंसिपल ने आकस्मिक तौर पर सभी शिक्षकों को स्टूडेंट्स के बैग चैक करने को कहा . एक मैडम ने तलाशी में एक लडकी के बैग में जो पाया उसे देखकर पूरा स्टाफ सन्न रह गया . जूनियर कक्षा में पढने वाली लडकी के बैग में एक ब्रांडेड कंपनी के कंडोम का पैकेट निकला . अगले दिन फिर उसी लडकी के बैग से फिर एक कंडोम का पैकेट निकला . एक लडके के बैग से प्रेम पत्र निकला जिसमें शादी करने का जिक्र था . एक लडके के बैग से दर्जनों बासी रोटियाँ तो एक लडके के बैग से सैकडों की संख्या में चाॅकलेट निकलीं . सवाल यह भी है कि स्कूल के शिक्षक शिक्षण पर फोकस करें या बच्चों के बैग की जामातलाशी का काम करें . क्या यह जिम्मेदारी अभिभावकों को नहीं निभानी चाहिए ? यदि बच्चों को यह भय हो कि उनका बैग उनकी अलमारी और उनके मोबाइल या अन्य उपकरण चैक हो सकते हैं तो शायद कभी इस तरह की नौबत ही न आए .
एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि नए दौर की परवरिश में माता पिता मार पिटाई तो दूर बच्चों को झडप भी नहीं पिला पाते हैं ऐसे में स्कूल में शिक्षकों को भी जहां तक संभव हो मार पिटाई से बचना चाहिए . यदि शिक्षक को लगता है कि छात्र की उद्दण्डता लगातार बढती जा रही है तो उसकी शिकायत प्रिंसिपल या फिर बच्चों के पेरेन्टस तक जरूर पहुंचाई जाए . याद रखें स्कूल बच्चों को गढने और उनकी प्रतिभा को तराशने का केन्द्र है न कि कोई जंग का मैदान या बदला भांजने की जगह . वक्त का तकाजा यह भी है अभिभावक अपने बच्चे की कुछ जिम्मेदारियां खुद ओढें और उन को पूरी तरह शिक्षण संस्थाओं के भरोसे न छोडें .

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