आलेखः- राकेश कुमार अग्रवाल
जेईई या नीट के परीक्षा परिणाम आने के तुरन्त बाद सभी प्रमुख कोचिंग संस्थान अपने सफल छात्रों का हवाला देते हुए टापर्स की फोटो छापकर मार्केटिंग शुरू कर देते हैं। लेकिन सवाल यह है कि उनके देश भर में फैले संस्थानों में रेगुलर एवं डिस्टेंस मोड में पढ़ने वाले छात्रों की सूची वे अपना सत्र शुरू होने के साथ अपने संस्थान की आधिकारिक बेबसाइट पर डाल दें ताकि पेरेन्ट्स व स्टूडेण्ट्स को भी पता चल सके कि परीक्षा परिणाम के बाद जो दावे वे संस्थान करते हैं उनकी असलियत क्या है ?
इन कोचिंग संस्थानों की सफलता का प्रतिशत क्या है क्या देश में किसी अभिभावक , छात्र या सरकारों को इसकी जानकारी है। इन संस्थानों ने कितने छात्रों को कोचिंग दी कितने छात्र सफल हुए क्या इसका वास्तविक आंकड़ा किसी के पास उपलब्ध है ?
देश में किसी भी शिक्षण संस्थान में शिक्षण करने वाले शिक्षक को एक शिक्षण पात्रता परीक्षा पास करने के अलावा न्यूनतम शैक्षणिक अर्हता भी हासिल करनी होती है। देश भर में फैले कोचिंग संस्थान की फैकल्टी की शैक्षणिक योग्यता का रिकार्ड का देश की किसी नियमन संस्था के पास कोई लेखा-जोखा है क्या ? क्यों न इन कोचिंग संस्थानों की फैकल्टी के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता व पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण करने का नियम यहां भी लागू हो।
कोचिंग संस्थानों में तीन दशक पहले इण्टरमीडियट पास करने वाले छात्र प्रवेश लेते थे लेकिन मेडीकल व इंजीनियरिंग संस्थानों में प्रवेश की चाह को भुनाने के लिए इन कोचिंग संस्थानों ने कक्षा 6 से छात्रों का प्रवेश लेना शुरू कर दिया है। कुछ कोचिंग संस्थान इससे भी दो कदम आगे निकल पड़े हैं। उन्होंने प्राइमरी से छात्रों को संस्थान का हिस्सा बनाना शुरू कर दिया। मतलब एडमीशन ही प्रवेश की गारंटी।
क्या देश में कोई संस्थान ऐसा दावा कर सकता है कि उसके यहां प्रवेश सफलता की गारंटी होता है।
जितने भी कोचिंग संस्थान हैं उनका एक बैच स्टार बैच होता है। जिनमें विशेष योग्यता वाले स्काॅलर स्टूडेण्ट्स पर ही कोचिंग संस्थानों का फोकस होता है। बाकी के बैच संस्थानों की मक्खन-मलाई की व्यवस्था के लिए होते हैं। इन संस्थानों में सबसे छोटा बैच भी 50 बच्चों का होता है। अन्य बैचों में छात्रों की यह संख्या 300 तक होती है। सवाल यह उठता है कि ये क्लास रूम है या मल्टीप्लेक्स थिएटर। जहां लेक्चर आकर अपना टाॅपिक समझाकर चला जाता है। कितने स्टूडेण्ट्स को समझ में आया , कितनों ने क्या सीखा इससे किसी को कोई मतलब है या नहीं ?
कोचिंग में पढ़ने वाले छात्रों को क्या रोज ब रोज कोई एसाइनमेंट दिया जाता है यदि हां तो उनके एसाइनमेंट के चेकिंग का कोई प्रावधान भी है ? क्या सभी लेक्चर केवल कोचिंग में प्रवचन देने आते हैं या फिर असाइनमेंट को चैक भी करते हैं ?
क्या वाकई इन संस्थानों में जहां पेरेन्ट्स बच्चे पर दो से पांच लाख रूपए तक खर्च कर रहे हैं कमजोर छात्रों को बेहतर बनाने में फोकस भी किया जाता है ?
यदि सभी नामधारी कोचिंग संस्थानों के पास उत्कृष्ट फैकल्टी है एवं इन संस्थानों से केवल टाॅपर निकलते हैं तो ये आनन्द कुमार की तर्ज पर कमजोर छात्रों को लेकर उन्हें क्यों नहीं इस लायक बना देते कि वे अपनी मेधा के बल पर प्रवेश परीक्षा पास कर जाएं।