कोरोना ने कुछ एहसास दिलाया
छोटे से बड़ा हुआ बचपन गया जवानी आई। जिम्मेदारियों को मैंने निभाया ।
जिंदगी को दौड़ धूप में जिस घर प्यार अपनेपन को था मैं छोड़ आया।।
कोरोना ने मुझे कुछ एहसास दिलाया
जिद सी आती थी जब मां कहती थी बेटा कुछ खा के जा तरस जाती है ,मेरी बाहें थोड़ा तो इनमें समा के जा।
आज फिर इतने सालों बाद मेरे सर पर आया मेरी मां के आंचल का साया….
कोरोना ने मुझे कुछ एहसास दिलाया
पत्नी का बार-बार फोन करना , यह ले आओ वह ले आओ, और कह कर बार-बार टोकना बच्चे पापा कब आओगे जल्दी आना कहकर मुझे जाने से रोकना।
उन सारे सवालों का जवाब मुझे इस समय ने दिलाया
कोरोना ने मुझे कुछ एहसास दिलाया
जिंदगी तो अपनों से हैं अपनों के सपनों से है जरूरतों का तो कोई अंत नहीं ।
हम तो प्राणी मात्र हैं कोई संत नहीं , तो जीलो अपनों के साथ बहुत सालों बाद ऐसा मौका आया….
कॉरोना ने मुझे यह एहसास दिलाया
डॉ अमृता सिंह (कवियत्री)