न गले लगाकर मुबारकबाद दे पाए, न फुलौरी और सिवइयां की उडा पाए दावत
राकेश कुमार अग्रवाल / वरिष्ठ संवाददाता
कुलपहाड (महोबा)। कोरोना वायरस का फैलाव रोकने के लिए लगाए गए लाॅकडाउन व फिजिकल डिस्टेसिंग पर दिए जा रहे जोर के चलते कई दशकों के बाद पहली बार ईद के त्योहार और गंगा जमुनी संस्कृति को जैसे ग्रहण लग गया।
बुंदेलखंड में आज भी सभी धर्मों के बीच साझा संस्कृति है। कुलपहाड में तो मोहर्रम पर्व पर कई हिंदू परिवार ताजिए निकालते हैं। रामलीला में तमाम मुस्लिम अलग अलग किरदार निभा कर अपनी भागीदारी करते हैं और बात जब ईद की होती है तो ईदगाह से नमाज पढकर लौटने वाले मुस्लिम भाईयों को रास्ते में रोककर हिंदू लोग स्वल्पाहार कराते हैं। उनके गले लग उन्हें ईद की मुबारकबाद देते हैं। दोपहर से ही हिंदू लोग मुस्लिम दोस्तों के घर दावत पर आमंत्रित होते हैं। दावत का यह सिलसिला दोपहर से देर रात शाम तक चलता था। लेकिन इस बार लाकडाउन ने ईद की गंगा जमुनी संस्कृति को घरों में कैद कर दिया। मुबारक बाद का सिलसिला चला भी तो केवल मोबाइल तक सीमित रहा।
दिनेश अग्रवाल
जब खुलेगा लाकडाउन तब खायेंगे सिवइयां – दिनेश अग्रवाल
दिनेश अग्रवाल के अनुसार इस बार न गले मिल पाए न उनको स्वल्पाहार करा पाए। फोन पर मुबारकबाद देकर ये वादा कर दिया है कि लाकडाउन खुलने के बाद सिवईयां फुलौरी खाने आएंगे।
वक्त का तकाजा है, क्या कर सकते – आलोक
आलोक अग्रवाल के अनुसार इस बार की ईद वक्त का तकाजा है। देश काल के मुताबिक इस तरह का फैसला लेना पडा। रामनवमी भी, गुड फ्राइडे, ईस्टर , अक्षय तृतीया भी यूं ही निकल गए। अगली बार जमकर मनाएंगे सभी त्योहार।
इस बार मेरी ईद फीकी हो गई – राजू
राजू रैकवार के अनुसार इस बार मेरी ईद फीकी हो गई। मेरे तो अधिकांश मित्र मुस्लिम हैं जो हमारे यहां दशहरा – दीपावली में शिरकत करते हैं, और हम ईद में जाकर उनके साथ सिवंई व मीठा खाकर और आपस में गले मिलकर बधाइयां देते थे लेकिन इस बार फोन पर बधाई देकर काम चलाना पड़ रहा है।
इस बार गले नहीं दिल मिले – रमेश यादव
शिक्षक रमेश यादव के मुताबिक ईद पर इस बार गले नहीं दिल मिलना चाहिए। ईद पर हर वर्ष हम अपने मित्रों के साथ मिल बैठकर सेवइयां और फुलौरी खाते थे लेकिन क्या करें कोरोनावायरस जैसी महामारी के चलते इस बार फोन से बधाइयां दीं और अगली ईद पर खाने के बाद ही फोन पर ही शुभकामनाएं दीं।