कोरोना संक्रमण से बचाव के चलते किए गए लॉकडाउन में ग्रामीण जीवन का रियल्टी चेक

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चित्रकूट – देश के सबसे पिछडे जिलों में से एक यू पी का चित्रकूट जिला जो हमेशा से ही डकैतों से प्रभावित रहा है। लेकिन अब यहां पर भी कई ऐसे गांव हैं जिनमें विकास होता दिख रहा है ।तो कई ऐसे गांव भी है जो आज भी मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर हैं। आज हमने दो ऐसे गांवों का रियल्टी चेक किया, जो पूर्व में डकैतों से प्रभावित रहे हैं। साथ ही वहां पर हो रहे विकास कार्यों के अलावा ग्रामीणों की समस्याओं एवं लाक डाउन के चलते वहां पर लोगों की क्या स्थिति है इसके बारे में जानकारी ली।

सबसे पहले हम बात करेंगे यूपी एमपी के बॉर्डर में बसे हुए गांव बालापुर माफी की । जब हमारी टीम बालापुर माफी गांव पहुंची तो वहां पर ग्रामीणों की स्थिति काफी सुखद दिखाई दी। गांव का स्कूल किसी मॉडल स्कूल की तरह से निजी विद्यालय से दो कदम आगे दिखाई दिया स्वच्छता के साथ विद्यालय को इंग्लिश मीडियम बनाने का कार्य हो रहा है। ऐसा ग्रामीणों द्वारा बताया गया। पक्की सड़कें बिजली पानी और सुलभ शौचालय के साथ-साथ काफी हद तक प्रधानमंत्री आवास भी इस गांव में बन चुके हैं। स्थानीय लोगों की मानें तो स्वास्थ्य व्यवस्था जरूर गांव के आसपास नहीं है कुछ पानी की समस्याएं भी हैं लाक डाउन के चलते प्रवासी मजदूरों महानगरों से लौटकर गांव आए हैं। उनको भी मनरेगा का काम मिल रहा है । ₹202 प्रतिदिन कमा कर यह लोग अपना जीवन यापन कर रहे हैं मनरेगा के कार्य में मुख्य रूप से मेड़बंदी इत्यादि कराई जा रही है। नाली में पानी निकासी की कुछ समस्याएं भी इस गांव मे हैं जिनको सुधारने का कार्य चल रहा है ऐसा यहां के जनप्रतिनिधियों का कहना है। इस गांव में हमने पाया कि यहां के लोग कोरोना और लॉक डाउन को लेकर काफी जागरूक भी हैं।

वहीं अगर हम बात करें कर्वी तहसील के ही दूसरे गांव बरमपुर की, तो यहां पर लोगों को काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है ।कारण एक और भी है कि यह गांव अभी चंद दिनों पूर्व ही दस्यु प्रभाव से मुक्त हुआ है। आज भी उस गांव में पानी की बड़ी समस्या बनी हुई है जल निगम के द्वारा यहां पर लाइन जरूर बिछाई गई लेकिन पानी नही पहुचाया गया ।गांव समाज के द्वारा निजी बोर कराकर के पानी की सप्लाई पूरी की जा रही है। लेकिन जल निगम द्वारा लगातार लोगों के घरों में बिल भेजे जा रहे हैं और पानी का बिल जमा करने का दबाव बनाया जा रहा है। ग्रामीणों के साथ बिजली विभाग ने भी बड़ा मजाक किया है घरों में मीटर लगा दिए हैं। लेकिन ना तो अभी वहां तक खम्भे ही लगे हैं और ना ही बिजली के तार ही पहुंचाए गए हैं ।कुछ ग्रामीणों की माने तो बिजली का बिल भी उनके घर आने लगा है। सड़कों का निर्माण भी आज तक नहीं हो पाया है नाली भी इस गांव में आपको यदा-कदा ही देखने को मिल मिलेंगी, हालाकी ग्राम प्रधान की मानें तो गांव पूरी तरह ओडीएफ हो चुका है और 60 परसेंट से अधिक प्रधानमंत्री आवासों का निर्माण हो चुका है। बाहर से आए 18 प्रवासी मजदूरों को मनरेगा के तहत काम दिया जा रहा है। शिक्षा की बात करें तो इस गांव में कई आसपास के छोटे-छोटे गांव जुड़े हुए हैं जिसके चलते 3 प्राइमरी और 1 माध्यमिक विद्यालय इस गांव में है। पानी की इतनी बदतर स्थिति है, कि पाइपलाइन जमीन के नीचे से न जाकर छत के ऊपर से स्कूल तक पहुंचाई गई है। उज्जवला योजना का भी इस गांव में ज्यादा लोगों तक लाभ नहीं पहुंच पाया है। भले ही केंद्र सरकार और प्रदेश सरकार लगातार पिछड़े इलाकों में विकास कार्यों को करने के लिए भरसक प्रयास रत् क्यों ना हो। लेकिन अधिकारियों की संवेदनहीनता इसके आडे जरूर आ जाती है। अगर हम बात इस गांव बरमपुर की करें तो यहां पर ना तो सोशल डिस्टेंस का पालन ही किया जा रहा है और ना ही यहां के लोग कोरोना और लॉक डाउन को लेकर ज्यादा जागरूक ही दिखाई दे रहे है।

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