रायबरेली में आईजी की मौजूदगी में पत्रकार पर प्राणघातक हमला

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वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे

  • पत्रकार पर प्राणघातक हमला

  • राष्ट्रीय कवच अखबार की क्षेत्रीय संवाददाता शैलेश कुमार पर हुआ था प्राणघातक हमला

  • जनपद में आईजी की मौजूदगी, पत्रकार पर प्राणघातक हमला

  • हमलावरों ने लॉकडाउन में कैसे खोली अपनी दुकान? हमलावरों की तहरीर में कैसे हुआ जिक्र?

  • प्राणघातक हमले से बचे पत्रकार पर एफआईआर भी दर्ज हुई

  • हमलावर अभी तक गिरफ्तार नहीं, मामले को रफा-दफा करने में जुटी गुरबख्शगंज पुलिस

  • 28 अप्रैल को हुआ था प्राणघातक हमला, मामूली धाराओं में कार्यवाही गिरफ्तारी नहीं

गुरबक्शगंज (रायबरेली) – पीड़ित पत्रकार, काम सच लिखना और दिखाना भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध शंखनाद करना। खामियाजा कानून व्यवस्था को ताक पर रखते हुए पत्रकार पर प्राणघातक हमला होना और अगले ही दिन पत्रकार पर ही एफआईआर दर्ज हो जाना। मतलब गजब हो गया ना सीबीआई बड़ी ना सीआईडी बड़ी सबसे बड़ी गुरबख्शगंज पुलिस का बुद्धि विवेक, जिस पत्रकार पर प्राणघातक हमला किया गया वह अस्पताल में रहा हो उसकी मानसिक दशा पर भी आघात लगा हो और अगले ही दिन हमले के बाद उस पर एफ आई आर दर्ज हो जाना यह तो साफ इशारा करता है बड़ी ही सोची समझी रणनीति के तहत पत्रकार और पत्रकारिता को डिगाने की कोशिश स्थानीय पुलिस मिलकर कर रही है। ऐसे कैसे संभव है पत्रकार पर प्राणघातक हमला किया जाए 8:00 बजे रात को पत्रकार थाने में या बताता है कि उसके ऊपर हमला हो गया है। और उसके 1 दिन बाद हमलावर तहरीर दर्ज कराने पत्रकार के खिलाफ थाने पहुंच जाएं और वहां पर उसकी तहरीर को ले लिया जाए जबकि पत्रकार ने अपनी तहरीर 15 घंटे पहले अपने ऊपर हुए हमले कि घटना का जिक्र नजदीकी थाने में कर चुका हो। ऐसे में सवाल यही है क्या जानबूझकर पत्रकार को मानसिक रूप से परेशान करने के लिए प्रयास ऐसा असफल प्रयास कर रही है जिससे पत्रकार डर जाए सहम जाए और वह भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध सच ना लिखें। जहां पर सबसे बड़ी बात समझने वाली है कि आई जी रेंज खुद रायबरेली में मौजूद हैं और अगर उनके रहते स्थानीय oपुलिस एक पत्रकार को न्याय नहीं दे सकती तो फिर आम जनता को क्या न्याय मिलेगा जहां आप समझ सकते।

हमलावरों ने लॉकडाउन में कैसे खोली अपनी दुकान? हमलावरों की तहरीर में कैसे हुआ जिक्र?

सबसे बड़ी बात निकल कर सामने आ रही है कैसे रेड जोन में आने वाले रायबरेली में जब लॉक डाउन का वक्त हो और हमलावरों ने अपनी दुकान खोल कर रखी थी? किसकी शह पर वह चौराहे पर दुकान खोलकर खुलेआम कानून-व्यवस्था की धज्जियां उड़ा रहा था और वही पत्रकार से मारपीट हो जाती है इसका साफ जिक्र हमलावरों ने अपनी तहरीर में किया है।और गुरबक्शगंज पुलिस ने शब्द- शब्द टाइप करके इसकी जानकारी भी दे दी है। गजब कर दिया है कोतवाल गुरबख्शगंज ने इनके सामने सीबीआई और सीआईडी के बड़े-बड़े दिग्गज फेल हो जाए। पीड़ित पत्रकार ने बताया है पहले भी उन्होंने इस प्रतिष्ठान द्वारा कानून व्यवस्था को ताक पर रखकर किए जा रहे कार्यकलापों की खबर छापी थी जिसकी वजह से हमलावरों ने उन पर हमला बोल दिया।ऐसे में यह बात साफ हो गई है कि किस तरह से गुरूबक्सगंज पुलिस की कार्यशैली खुद में साफ नहीं है। तो फिर सवाल ये उठता है क्या गुरबख्शगंज पुलिस लॉक उल्लंघन की जरूरी धाराएं दर्ज करना भूल गई।इतनी बड़ी गलती गुरबख्शगंज पुलिस कैसे कर सकती है कहीं ना कहीं पूरे मामले में गठजोड़ की स्थिति आ रही है। और उससे कहीं ज्यादा जानकारियों को छुपाने और मामले पर पर्दा डालने का काम श्री राम पांडे ने किया है जो चौकी इंचार्ज भी हैं।

ना सीबीआई बड़ी न सीआईडी सबसे बड़े गुरबख्शगंज कोतवाल

दी गई तहरीर से स्पष्ट है किस तरह से खुला खेल फर्रुखाबादी गुरबख्शगंज कोतवाल के द्वारा खेला गया।पत्रकार के ऊपर हुए प्राणघातक हमले को दबाने के लिए हर जतन गुरबख्शगंज कोतवाल द्वारा किया गया, जबकि दूसरी और हमलावरों के द्वारा दी गई तहरीर में बात स्पष्ट है कि वह दुकान खोल कर बैठे हुए थे और मारपीट हो गई तो ऐसे में समझा जा सकता है किस तरह से गुरबख्शगंज पुलिस खुला खेल फर्रुखाबादी खेल रही थी। सवाल यह उठता है जिस दुकान की परमिशन है ही नहीं उसे कैसे खोलकर रखा गया था जब वहां पर ना तो सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो रहा था। ऐसे में सवाल यह बनता है क्या लापरवाह गुरबख्शगंज पुलिस पर कार्यवाही नहीं होना चाहिए!

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