जमानत पर सृष्टि के पालनहार

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  • 7 मार्च को पहाड़ी थाने से यज्ञवेदी मन्दिर लाये गए विजयराघव सरकार

  • 14 साल बाद हुई मन्दिर में वापसी

संदीप रिछारिया ( वरिष्ठ संपादक)

चित्रकूट। देख तेरे संसार की हालत… गीत तो याद ही होगा…अब इसकी तासीर देखते है। वैदिक धर्म मे सभी ईश्वरीय प्रतिमाओं को जीवित मानते है। हिंदुस्तान का कानून भी मन्दिर में विराजी प्रतिमा को जीवित होने का दर्जा देकर नाबालिग की श्रेणी में रखता है। श्री रामजन्म भूमि- बाबरी मस्जिद विवाद में हिंदुओं के पक्ष की जीत का आधार भी यही कानून रहा। अवकाश प्राप्त न्यायमूर्ति राधामोहन अग्रवाल की याचिका का दारोमदार रामलला के नाबालिग होने के साथ श्री अग्रवाल के उनके सखा व अभिभावक का दर्जा मिलने का रहा। इसी बजह से कोर्ट ने उन्हें वादी नम्बर एक माना। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता के परासरन ने भी कहा था कि हमारे मुकदमे की जीत का मुख्य आधार यही याचिका थी।

अब बात करते है,इसी कानून की। भगवान को नाबालिग मानने वाले कानून ने 2006 में पहाड़ी थाने के कहेटा माफी के गाँव से चोरी हुई विजयराघव सरकार की मूर्ति को एक वर्ष में बरामद कर लिया,पर कानून की पेचीदगियों के चलते उन्हें लगभग 14 वर्ष मालखाने में बिना पूजा पाठ के समय गुजारना पड़ा। अभी चित्रकूट की अदालत से उन्हें 25 लाख की जमानत देकर निर्वाणी अखाड़े के महंत सत्यप्रकाश दास बाहर लाये। 7 मार्च को उन्हें सुरक्षा की दृष्टि से राम घाट स्थित यज्ञवेदी मन्दिर में वैदिक रीति रिवाजों के साथ फिर से प्राण प्रतिष्टित किया गया।

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