भांवरपुर से शुरु हुआ श्रमदान का बन गया कारवां
राकेश कुमार अग्रवाल की विशेष रिपोर्ट
बांदा। भांवरपुर के बाद मऊसिंहपुरवा से शुरु हुआ श्रमदान कर अपने गांव की बिगडी सूरत को संवारने की पहल अब कारवां बन गई है। महानगरों से लौटे आधा दर्जन गांव व मजरों के कामगारों ने फिर से हाथों में फावडा थाम लिया है। इन मजदूरों ने अपने गांव तक नहर का पानी ले जाने की ठानी है। ताकि अपनी मिट्टी में सोना उपजायेंगे।
शनिवार से पिपरहरी, खम्भौरा, कुचबंधियनपुपवा, कठैलापुरवा में भी शहरों से वापस लौटे कामगारों ने श्रमदान की राह पकड ली।
जल संरक्षण व कृषि कार्यों में दक्ष इन कामगारों ने गांवों तक जल पहुंचाने की ठानी है।
माऊसिंह के पुरवा में ६५ मजदूर नहर की सफाई के काम में प्राणपण से डटे पडे हैं। आस पास के गांवों के बाशिंदे इन कर्मयोगियों को राशन सामग्री पहुंचा रहे हैं। आषाढ माह में प्रकृति की गोद में बैठकर सामूहिक भोज का बुंदेलखंड में पुराना संस्कार रहा है। जो श्रमदान के बहाने ही सही फिर से देखने को मिल रहा है। आज नीबी, सुलखान का पुरवा और नौगवा के मजदूर श्रमदान में शामिल हुए।
सबने मिल कर ठाना है
अपनी नहर बनाना है …
के नारे के साथ मजदूर काम में डट पडते हैं।
कुचबंधियनपुरवा में ३५ कामगारों ने नाली निर्माण में भागीदारी की इनमें गुलाबवती, महेश , फूलचंद, राहुल, पप्पू, लक्ष्मी, अन्नू, कठैलापुरवा में ३२ व पिपरहरी में ३८ मजदूरों ने श्रमदान में हिस्सा लिया।
दूसरी ओर सिंचाई विभाग के अधिशाषी अभियंता सरदार सिंह चौहान ने जानकारी मिलने पर एक विभागीय कर्मी को मौके पर भेजा। उनके अनुसार नहर की सफाई की जरूरत थी। उन्होंने कहा है कि वे कोशिश करेंगे कि मजदूरों को उनकी मेहनत का मेहनताना दिला सकें।
काश प्रशासन गांवों की जरूरत के मुताबिक नीतियों पर अमल करती तो कामगारों को श्रमदान कर इस तरह कायापलट के लिए आगे न आना पडता।