नूतन वर्षाभिनन्दन … जी लीजिए जिंदगी जी भर के

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राकेश कुमार अग्रवाल

कोरोना – कोरोना करते – करते कब साल के 365 दिन बीत गए पता ही नहीं चला . कोरोना को लेकर पूरी दुनिया में स्यापा रहा . क्योंकि इसे मीडिया ने भी जमकर हवा दी . कोरोना का डर किसी परमाणु – अणु बम के खौफ की तरह पूरे वर्ष भर लोगों को हलाकान किए रहा . कोरोना का सच क्या है इसकी परत दर परत उधडने में तो कई वर्ष लग सकते हैं . ये भी हो सकता है कि इस महामारी का पूरा सच कभी बाहर ही न आए .
1957 में महबूब खान की एक फिल्म आई थी ‘ मदर इंडिया ‘ जिसमें एक गाना था दुनिया में अगर आए हैं तो जीना ही पडेगा जीवन है अगर जहर तो पीना ही पडेगा . तो कोई कहता है जीने के हैं चार दिन , बाकी हैं बेकार दिन . या राजकपूर की फिल्म आह के उस गीत की तरह जिसमें बताया गया है कि छोटी सी ये जिंदगानी रे , चार दिन की जवानी तेरी हाय रे हाय .
हम सब जानते हैं कि अजरता , अमरता का वरदान लेकर हम लोग इस दुनिया में नहीं आए हैं . जो भी सजीव इस ब्रह्मांड में विद्यमान है उसका एक दिन अंत जरूर होना है . चिकित्साविदों और वैज्ञानिकों ने जन्म तिथि और जन्म का समय तो बताना शुरु कर दिया है लेकिन मौत ही वह विषय है जहां चिकित्सा तंत्र के हाथ भी बंधे हुए हैं . चिकित्सा जगत में नई नई तकनीकियों के आगमन और बीमारियों से जूझने के चिकित्सकों के माद्दे के बाद जीवन प्रत्याशा में जरूर गुणात्मक बदलाव आया है . बीमारियों से होने वाली मौतों पर अंकुश लगा है . एवं तमाम बीमारियों से घिरे होने के बावजूद इंसान दवाओं के बल पर लम्बा जीवन जीने में सक्षम हो गया है .
हम सभी बैक्टीरिया और वायरस से घिरे हैं . मानव सभ्यता के पहले से ही जीवाणु और विषाणुओं का अस्तित्व पृथ्वी पर रहा है . हमारी जीवन शैली प्रकृति के अनुरूप रही इसलिए सीमित ज्ञान के बावजूद मनुष्य अपना अस्तित्व बचाए रहा . लेकिन कोरोना वायरस के प्रकोप के बाद से जिस तरह से चीजें फ्रेम हुई हैं इससे दुनिया में यह संदेश गया है कि इंसानी अस्तित्व बचा रहेगा या नहीं . समाज ने समय समय पर तमाम परिभाषायें गढीं हैं . ऐसा ही एक सूक्ति वाक्य है कि धन गया तो कुछ नहीं गया , स्वास्थ्य गया तो कुछ गया , चरित्र गया तो सब कुछ गया .
2020 का यदि सबसे बडा सबक कोई है तो वह है सेहत और स्वास्थ्य सर्वोपरि है . इस वेशकामती मानव रूपी काया को सहेजिए . संभालिए . उसे कृत्रिमता से बाहर लाइए . कंक्रीट और संगमरमरी दरों दीवारों से बाहर निकल प्रकृति के साहचर्य में हिल मिल जाइए . उसको छेडिए नहीं उसको नष्ट न करिए उसको बदरंग न करिए . महात्मा गांधी ने यही तो कहा था कि प्रकृति में इतना सामर्थ्य है कि वह हर किसी की जरूरतों की पूर्ति कर सकती है लेकिन लालसाओं की नहीं . हमारे ऋषि , मुनियों , मनीषियों ने प्रकृति से सामंजस्य का मंत्र सिखाया . नदियों , तालाबों , पहाडों , पेड पौधों को पूजनीय बताया . जिसका सीधा तात्पर्य था कि जिन चीजों की हम कद्र करते हैं उनको स्वयं नष्ट नहीं करते . इससे प्रकृति और इंसान दोनों का अस्तित्व बचा रहा . आज नदियों , पहाडों का अस्तित्व खतरे में है . तालाब तो यादों और बातों का हिस्सा बनने के करीब पहुंच गए हैं .
स्वास्थ्य का सबसे पहला सूत्र है कि कर्म करना . यदि आप रोजाना अपने हिस्से की मेहनत नहीं करते हैं तो माफ करिए आपकी रात करवटें बदलते हुए बीतेगी . आपको नींद लाने के लिए दवा और डाक्टरों का सहारा लेना पडेगा . विज्ञान और बाजार ने आपको अकर्मण्य बनाने का पूरा इंतजाम कर दिया है . आप चाहें तो अपने को मशीनों और नौकरों के हवाले कर सकते हैं लेकिन सुकून की नींद तो आपको आपकी मेहनत दिलाएगी . यही मेहनत शारीरिक रूप से आपको फिट रखती है . योग गुरु बाबा रामदेव योग सिखाने के बहाने ही प्रतिदिन तीन घंटे योग व्यायाम कर डालते हैं .
भोजन एक बहुत बडा फैक्टर है जो आपकी सेहत और स्वास्थ्य का निर्धारण करता है . विकास क्रम के इस मुहाने पर आने के बाद भी ऐसा लगता है कि हर व्यक्ति बीमार है . काम करते रहने का मतलब यह नहीं है वो पूर्णतया स्वस्थ है . वो कोई न कोई बीमारी जरूर पाले है ये हो सकता है दवायें उसे चला रही हों . जब इंसान शिक्षित होने के बावजूद बीमार है तो भला जानवर पूर्णतया स्वस्थ होगा ऐसा कैसे सोचा जा सकता है . मांसाहार का चलन बढता जा रहा है . बीमार जानवर को खाकर भला हम कैसे स्वस्थ रह सकते हैं . फास्ट फूड कल्चर ने जीभ को स्वाद तो दिया लेकिन सेहत के लिए क्या योगदान दिया यह एक बडा सवाल है जो मुंह बाए खडा है .
यदि सेहतमंद रहना है तो खानपान सुधारना ही होगा . ईमानदारी का भी सेहत से सीधा रिश्ता है . यदि आप मेहनती और ईमानदार हैं येन केन प्रकारेण धनार्जन में नहीं लगे हैं तो आप ह्रदय रोग व अनावश्यक तनाव से बचे रहेंगे जो आपको तमाम विसंगतियों से बचाएगी . कहते हैं कि जान है तो जहान है . इसलिए सेहत पर काम करिए . वर्ष 2021 का पहला संकल्प यही हो सकता है कि यदि आप अपने खानपान और जीवन शैली को सुधारते हैं तो आप कोरोना जैसी महामारी से कोसों दूर रहे . कमजोर पर ताकतवर हमेशा हावी होता है चाहे वह बलशाली व्यक्ति हो या फिर बीमारी हो . सेहत यदि आप संभाल लेंगे तो यकीन मानिए बाकी चीजें सेकेंडरी हैं देर सवेर संभल ही जाएंगी . तभी आप जिंदगी को जी भर के जी पाएंगे .

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