पर्यटन विभाग ने किया चित्रकूट का सुपर विकास-करोड़ों खर्च के बाद भी रामघाट में अंधेरा

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रामघाट पर बना लोहे का फुट ओवर ब्रिज व सामने लगी एललईडी स्क्रीन

– मूल अवस्थापना व्यवस्थाओं का पता नहीं

– पर्यटन विभाग द्वारा लगवाई गई अधिकतर लाइटों की रोशनी धीमी पड़ी

– 5 करोड़ खर्च कर एमपी वालों के लिए बनवा डाला लोहे का विशाल पुल

रिपोर्ट – संदीप रिछारिया

धर्मक्षेत्र। योगी जी की मंशा है कि राजकुमार राम को परमात्मा राम बनाने वाली भूमि का समुचित विकास हो। अयोध्या आने वाला प्रत्येक श्रीराम का पुजारी चित्रकूट भी जरूर आए, ऐसी मंशा से केंद्र सरकार भी काम कर रामवन पथ गमन सड़क का निर्माण करवा रही है, पर योगी जी के अधिकारी नहीं चाहते कि ऐसा कोई काम हो कि बाहर से आने वाले लोग यह कह सकें कि वास्तव में भाजपा सरकार ने अच्छा काम करवाया है।

उदाहरण के लिए रामघाट आकर देख लीजिए। पर्यटन विभाग ने सबसे पहले यहां पर मंदिरों, मठों व प्राइवेट होटलों पर लाइट लगाने का काम किया। करोड़ों रूपये की लगाई गई लाइट का हाल यह है कि विभागीय अधिकारियों ने इन्हें बनाने से पहले खराब करने की गारंटी से काम किया। जहां बिजली की लाइटों को तारों की जाली से ठकने का काम किया, वहीं पाइपों व बोर्डों को अंडरग्राउंड न कराकर खुला लगा दिया, जिन्हें अधिकतर स्थानों पर बंदरों ने तोड़ दिया।

महाराजा मत्तगयेन्द्रनाथ मंदिर में लगी एलईडी के बोर्ड व पाइपों को कई बार वहां के संचालक खुद सुधरवा चुके हैं। जबकि कई स्थानों पर लगी लाइट खराब हो चुकी है। इसके अलावा घाट पर जलने वाली लाइट की चमक भी इतनी फीकी पड़ चुकी है कि अब उससे उजाला कम ही दिखाई देता है।

दूसरा उदाहरण पर्यटन विभाग द्वारा बनवाया गया लोहे का विशाल पुल है। इस पुल को बनाने के समय अधिकारियों ने यह पाठ पढाया कि घाट पर आने का एक ही रास्ता है, भीड़ बढ़ जाती है तो उसे मध्य प्रदेश भेजा जा सकता है। वास्तव मे घाट की लम्बाई एक किलोमीटर के आसपास है। दीपावली व सोमवती अमावस्या में अधिकतम भीड़ होती है। लोग नहा कर वापस चले जाते हैं। ऐसे में जब टैंपों स्टैंड से दुूसरा रास्ता खुल सकता है तो लगभग साढे सात करोड़ खर्च करके कैसे लोहे का विशाल पुल बनाकर शासन का चित्रकूट विकास के लिए आने वाले पैसे को बर्बाद किया गया । दूसरा उदाहरण नगर पालिका परिषद का है। यहां पर पूर्व अधिशाषी अधिकारी ने अपनी हठधर्मिता से एक एलईडी स्क्रीन लखनउ की प्राइवेट कंपनी से लगवाई। जिस दिन से यह स्क्रीन लगी यह आज तक नही चली। बताया जाता है कि लगभग 18 लाख की इस एलईडी स्क्रीन को खरीदने का काम लगने के पहले ही कर दिया गया था। यानि इसका पेमेंट लगने के पहले ही पालिका क फंड से कर दिया गया था, जबकि पालिका में कंगाली का हाल यह है कि इसके कर्मचारियों को दो दो महीने बीत जाने के बाद भी पैसा नहीं मिल पा रहा है।

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