पांच राज्यों के चुनाव, कांग्रेस के लिए वजूद की लड़ाई

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राकेश कुमार अग्रवाल
कांग्रेस मुक्त भारत का भाजपाई स्लोगन भले महज एक जुमले के रूप में गढा गया हो लेकिन कांग्रेस के हालात कमोवेश खराब ही हैं . चार राज्यों एवं एक केन्द्र शासित प्रदेश में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में फिर से कांग्रेस पार्टी बडी चुनौती से मुकाबिल होने जा रही है .
सबसे प्रतिष्ठापूर्ण चुनाव पश्चिमी बंगाल में होने जा रहा है . जिस पर चुनाव आयोग से लेकर पूरे देश की निगाहें लगी हैं . आजादी के बाद हुए विभाजन में पश्चिमी बंगाल हिंदुस्तान में एवं पूर्वी बंगाल पाकिस्तान में चला गया था . जो 1971 में घटे बडे राजनीतिक घटनाक्रम के बाद अलग राष्ट्र बांग्लादेश के रूप में अस्तित्व में आया . आजादी के बाद से 1967 तक पश्चिमी बंगाल में कांग्रेस का शासन रहा . आपात काल के बाद 1977 से मार्क्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी से ज्योति बसु के नेतृत्व में सत्ता की बागडोर संभाली तब से 2011 तक बंगाल में माकपा के हाथों में सत्ता रही . कांग्रेस की तो सत्ता में वापसी नहीं हुई अलबत्ता कांग्रेस से निकलीं तेजतर्रार नेत्री ममता बनर्जी ने जरूर तृणमूल कांग्रेस का गठन कर 2011 में सत्ता में काबिज हो गई . वे लगातार दो बार से बंगाल की मुख्यमंत्री हैं एवं जीत की तीसरी हैट्रिक लगाने के लिए प्राणपण से भाजपा से मुकाबला कर रही हैं . बंगाल में यूं तो एक दर्जन चुनावी दल ताल ठोके हुए हैं लेकिन मुख्य मुकाबला टीएमसी और भाजपा के बीच होने जा रहा है . यहां पर कांग्रेस ने वाम दलों से गठजोड किया है . लेकिन इसके बावजूद इस बात की कोई संभावना नजर नहीं आ रहा है कि उक्त गठबंधन सत्ता की दहलीज तक पहुंचेगा . ये बात अलग है कि किसी एक गठबंधन को बहुमत न मिलने की स्थिति में सरकार बनाने के लिए कांग्रेस – वामदल गठबंधन किसी अन्य पार्टी को समर्थन दे दे .
राजनीति में सभी राजनीतिक दलों की ये चाहत होती है कि उसका दल सत्ता की दहलीज तक पहुंचे . लेकिन इमरजेंसी के बाद से पश्चिमी बंगाल का विश्लेषण बताता है कि कांग्रेस इस राज्य में सत्ता की लडाई से एक तरह से दूर छिटक गई है . कांग्रेस के लिए राज्य में सत्ता तक पहुंचना एक सपने की तरह हो गया है . क्योंकि पहले वाम दल इसके बाद टीएमसी और अब राज्य में भाजपा सत्ता के प्रमुख दावेदार हैं . कांग्रेस राज्य में पिछले विधानसभा चुनावों में दूसरे नंबर की पार्टी रही थी . उसने राज्य में 44 सीटें जीती थीं . तबसे इन पांच सालों में राज्य की राजनीति में बहुत कुछ बदल गया है . यह बदलाव कांग्रेस के पक्ष में तो कतई नहीं है .
दूसरे प्रमुख राज्य तमिलनाडु जो आजादी के पहले मद्रास रेजीडेंसी के नाम से जाना जाता था . आजादी के बाद से इस राज्य में 1967 तक कांग्रेस की सरकार रही है . 1967 में पहली बार डीएमके के नेतृत्व में गैर कांग्रेसी सरकार बनी . इसके बाद से तो राज्य की राजनीति में द्रविड दलों का कब्जा हो गया . मार्च 1967 में डीएमके के सी एन अन्नादुरई ने प्रदेश की कमान संभाली . तबसे राज्य में डीएमके और एआईएडीएमके ने कांग्रेस को सत्ता तक फटकने ही नहीं दिया . 2011 से राज्य में लगातार दो बार से एआईएडीएमके सत्ता में है . इस बार कांग्रेस ने राज्य में डीएमके के साथ गठबंधन किया है . अपने बलबूते पर भले न सही लेकिन डीएमके के साथ जरूर कांग्रेस राज्य में सत्ता की पार्टनर बन सकती है . क्योंकि इस बार डीएमके सत्ता में वापसी को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त है .
तीसरा प्रमुख राज्य पूर्वोत्तर का असम है . असम में भी कांग्रेस शुरुआत से सत्ता में रही . आपातकाल के बाद जनता पार्टी के गोलप बोरबोरा व जोगेन्द्रनाथ हजारिका ने दो वर्षों के लिए सत्ता संभाली थी . 1985 में असम में एक नए राजनीतिक दल असम गण परिषद ने दस्तक दी . प्रफुल्ल कुमार मोहन्ती ने सत्ता की बागडोर संभाली . हालांकि असम कांग्रेस का अजेय गढ बना रहा . कांग्रेस के तरुण गोगोई ने 2001 से 2016 तक लगातार तीन कार्यकाल पूरे किए . लेकिन इसके बाद हुए चुनावों में भाजपा ने सत्ता हथिया ली . तरुण गोगोई का निधन हो गया है . सर्वानंद सोनेवाल के नेतृत्व में भाजपा फिर से सत्ता में वापसी के लिए आश्वस्त नजर आ रही है . कांग्रेस के लिए इस राज्य में वापसी कठिन नहीं तो इतनी आसान भी नहीं है .
जहां तक केरल का सवाल है राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत 1 नवम्बर 1956 को अस्तित्व में आए केरल में पहली सरकार ही सीपीआई के ईएमएस नम्बूदरीपाद ने बनाई थी . यहां पर पहली कांग्रेसी सरकार आर शंकर ने 1962 में बनाई थी . केरल में के करुणाकरन , ए के एंटनी , उम्मन चांडी कांग्रेस की सरकार का नेतृत्व कर चुके हैं . इस राज्य में वामपंथी दल बडी ताकत हैं . केरल में वाम दल बडी ताकत हैं . यहां पर भाजपा भी एक दशक से अपनी जडें जमाने की कोशिश में है . रेलवे के मशहूर इंजीनियर रहे ई . श्रीधरन को पार्टी ने मुख्यमंत्री के लिए प्रोजेक्ट कर बडा दांव खेला है लेकिन पार्टी के लिए इस राज्य में सत्ता तक पहुंचने का सफर बहुत लम्बा है . केरल में कांग्रेस व वामपंथी दल कडे मुकाबले में है . सीपीएम के पिनराई विजयन का कार्यकाल पूरा हो चुका है . कांग्रेस यहां सत्ता की लडाई लड सकती है . लेकिन क्या वह केरल में सत्ता में वापस आ पाएगी यह राहुल गांधी के लिए भी बडी चुनौती है क्योंकि वे स्वयं केरल से सांसद भी हैं .
केन्द्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में कांग्रेस का एकाधिकार रहा है . लेकिन जिन हालातों में वहां वी. नारायणसामी को सत्ता गंवानी पडी वह भी कांग्रेस को दिमाग में रखने की जरूरत है .
जिन पांच राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं उनमें कांग्रेस असम , केरल और पुडुचेरी में बेहतर प्रदर्शन करने की स्थिति में है . लेकिन बंगाल और तमिलनाडु अभी भी पार्टी के लिए दूर की कौडी की तरह है . पार्टी वैसे भी एक एककर राज्यों से सत्ता खोती जा रही है ऐसे में पार्टी और संगठन को अगर संजीवनी चाहिए तो कम से कम तीन राज्यों में तो जोरदार प्रदर्शन होना ही चाहिए . जो पार्टी को सत्ता की दहलीज तक लेकर जाए . एक अखिल भारतीय पार्टी के लिए यह अपना वजूद बचाने की भी लडाई है .

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