बम्बई से साईकिल से चलकर अपने जिले कोशांबी जाते हुए
राकेश कुमार अग्रवाल
कुलपहाड़ (महोबा) । कोरोना की मार के चलते आटोमोबाइल के युग में साइकिल जिंदगी की जंग का सबसे बडा सहारा बन गई है। लाॅकडाउन में जब घाट के नहीं रहे तो घर के लिए कामगार महानगरों से साईकिलों से हजारों किमी. की दूरी नापने निकल पडे।
यातायात सेवायें बिना कोई नोटिस दिए यकायक बंद कर दिए जाने एवं मालिकों द्वारा भोजन, पानी उपलब्ध कराने से हाथ जोडने के बाद मरते क्या न करते की तर्ज पर 5 मई को चार हजार रुपयों की साईकिलें खरीदकर मुंबई से कौशांबी को निकले एक दर्जन किशोर कुलपहाड़ में गांधी चौराहे पर जब अपनी व्यथा सुनाते हैं तब मन चीत्कार उठता है। साइकिल से यात्रा कर रहे पवन कुमार , घनश्याम , राधेश्याम, व अनिल ने बताया कि उनका भाई बलराम उम्र 12 वर्ष 12 मार्च को मुंबई घूमने के लिए आया था . लेकिन लाॅकडाउन में फंस गया। उन्होंने बताया सभी लोग मुंबई के उल्हास नगर, कल्याण में रहकर सिलाई का काम करते हैं। 45 दिन से जब कोई काम न मिला तो भुखमरी की कगार पर हम लोग पहुंच गए। ऐसे में बीमारी की भयावहता में अपना गांव घर याद आने लगा. मजबूरी में सभी ने 4 – 4000 की साइकिलें खरीदीं। और 5 मई को मुम्बई से अपने गृह जनपद कौशाम्बी के लिए निकल पडे। साईकिल भांज भांजकर सभी निढाल हो चुके हैं , थकान से चूर होने के कारण अब चला भी नहीं जाता।
गनीमत यह रही कि कुलपहाड पुलिस ने भोजन करवा कर सभी प्रवासियों को ट्रक पर बिठाकर उन्हें बांदा रवाना कर दिया।