राकेश कुमार अग्रवाल
उरई – जालौन के राजा धारासिंह , आर डी साहनी व मोहन तिवारी ने भी मुम्बई सिने इंडस्ट्री में अपना योगदान दिया।
झांसी से ही महज 20 किमी0 दूर बरुआसागर कस्बे के श्यामलाल आजाद का जन्म 15 अगस्त 1924 को हुआ था। बुंदेली गीत-संगीत व लोकगीतों से वे बचपन से ही जुड गए थे। आजादी के आंदोलन के दौरान उन्होंने अपनी कविताओं से स्वतंतत्रा संग्राम की अलख जगाई। आजादी के बाद श्यामलाल मुम्बई चले गए जहां उन्होंने दो साल संघर्ष करने के बाद फिल्मों के लिए गाना लिखना शुरू कर दिया था । फ़िल्म ‘मलहार’ के गीत
‘बड़े अरमान से रखा है बलम तेरी कसम
प्यार की दुनिया में पहला कदम……..
1951 में ‘मलहार’ फ़िल्म के इस हिट गीत के बाद उन्होंने कभी मुड़कर नहीं देखा। पारसमणि के गीतों ने उन्हें बुलंदियों पर पहुँचा दिया। श्यामलाल को मुम्बई में नया नाम मिला ‘इंदीवर’ । 1976 में ‘अमानुष’ फ़िल्म के लिए उन्हें फिल्मफेयर अवार्ड मिला। उन्हें फिल्मफेयर अवार्ड के लिए 4 बार नॉमीनेट किया गया था। उन्होंने 300 फिल्मों के लिए एक हजार से अधिक गाने लिखे।
बुन्देलखंड दो अलग राज्यों उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश में बंटा हुआ है . बुंदेलखंड ने सिने इंडस्ट्री को दर्जनों कलाकार दिए हैं । आशुतोष राणा , रानी मुखर्जी , मुकेश तिवारी , गोविंद नामदेव , राजा बुंदेला व योगेश त्रिपाठी ऐसे कलाकार हैं जो किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं।
आशुतोष राणा हिंदी के अलावा मराठी , तेलुगु , कन्नड़ व तमिल फिल्मों में काम कर चुके हैं। 1995 में दूरदर्शन के धारावाहिक ‘ स्वाभिमान ‘ से अभिनय की दुनिया मे कदम रखने वाले आशुतोष लगातार दो बार ‘ दुश्मन ‘ व ‘ संघर्ष ‘ फ़िल्म के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार जीत चुके हैं। मध्यप्रदेश के सागर के मुकेश तिवारी ने 1998 में ‘ चायना गेट ‘ फ़िल्म से पदार्पण किया। वे भी दर्जनों फिल्मों में अपने अभिनय कौशल को प्रदर्शित कर चुके हैं। गोविंद नामदेव ने 1992 में ‘ शोला और शबनम ‘ फ़िल्म से इंडस्ट्री में कदम रखा। इसके बाद से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। सैकड़ों फिल्मों में वे अभिनय कर चुके हैं एवं 70 वर्ष की उम्र में भी सक्रिय हैं।
बांदा के कवि केदारनाथ अग्रवाल के बेटे अशोक कुमार अग्रवाल ने दक्षिण भारत की सिने इंडस्ट्री में बतौर सिनेमेटोग्राफर ( कैमरामेन ) अपनी छाप छोड़ी। उन्हें पहली ही फ़िल्म के छायांकन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। हिंदुस्तान की पहली थ्री डी ( त्रिआयामी ) फ़िल्म का छायांकन भी अशोक कुमार अग्रवाल ने किया था। उन्होंने दक्षिण भारत की सैकड़ों फिल्मों में काम किया एवं वहीं बस गए। अशोक अग्रवाल के निधन के बाद उनके बेटे ने कैमरे संभाल लिया है।
जहां तक बुंदेलखंड में फिल्मों की शूटिंग का सवाल है मशहूर फिल्मकार मणिरत्नम ने ‘ रावण ‘ फ़िल्म की शूटिंग ओरछा के निकट एक गाँव में की थी। हाल ही में महोबा जिले के कस्बे चरखारी में हिंदी फिल्म ‘प्रेमातुर’ की शूटिंग पूरी हुई। तो बाँदा में भोजपुरी फ़िल्म की शूटिंग।
फ़िल्म ‘प्रेमातुर’ के निर्देशक सुमित सागर के अनुसार बुंदेलखंड की लोकेशन इतनी फोटोजनिक व खूबसूरत हैं कि फिल्मकारों को न भारी-भरकम धनराशि खर्च कर सेट बनाने की जरूरत है न ही विदेश जाने की। उनके अनुसार यहां का प्राकृतिक वातावरण प्रदूषण मुक्त है। और भोजन तो इतना सात्विक है कि हम लोग यहाँ पर फ़िल्म की शूटिंग का फैसला करके खुश हैं।
बुंदेलखंड में आज भी गाँव , लोककलाएं व लोकाचार अपने मूल रूप में विद्यमान हैं। यहां के झांसी , कालिंजर , बिठूर , कालपी , ग्वालियर , महोबा , गढ़कुंडार , मऊ सहानिया व भूरागढ़ ऐतिहासिक स्थल हैं।
चित्रकूट , राजापुर , मैहर , दतिया , ओरछा , सोनागिरि और कुंडेश्वर की धार्मिक व पौराणिक महत्ता है।
पन्ना नेशनल टाइगर रिजर्व , खजुराहो , पांडवफाल व चरखारी प्राकृतिक व एडवेंचरस प्वाइंट हैं। जबकि ग्वालियर , ओरछा , खजुराहो , पन्ना , श्रीनगर , बाँदा व कुलपहाड़ कला व हस्तशिल्प के लिए जाने जाते हैं।
चित्रकूट तो जलप्रपातों के लिए जाना जाता है . यहां हनुमान धारा , शबरी जल प्रपात व गुप्त गोदावरी जल प्रपात है . ललितपुर में जखौरा – ननौरा मार्ग पर ग्राम बांदरौन के निकट जलप्रपात है . झांसी के निकट बरुआसागर के स्वर्गाश्रम जल प्रपात की प्रसिद्धि से हर कोई वाकिफ है . पन्ना व खजुराहो के मध्य पांडव जल प्रपात व खजुराहो के ही निकट स्नेह वाटर फाल दोनों में 100 फीट की ऊँचाई से पानी नीचे गिरता है . यह इतना अनूठा नजारा पेश करते हैं कि पूरा दृश्य ही नयनाभिराम हो जाता है . विंध्य पर्वत श्रृंखला से घिरे बुंदेलखंड में पहाड, पहाडियाँ , पठार व खाइयाँ , व बाँध , तालाब , झीलें सब कुछ हैं . इस तरह से देखा जाए तो बुंदेलखंड में आउटडोर शूटिंग की भी राजधानी बनने की भी पूरी संभावना है . बशर्ते शासन बुंदेलखंड को तवज्जो दे .