बुंदेलखंड ने भी झंडे लहराए बाॅलीवुड में

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राकेश कुमार अग्रवाल
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बुधवार को मुम्बई दौरे के साथ ही प्रदेश में फिल्मसिटी निर्माण को लेकर यूपी से लेकर महाराष्ट्र में घमासान शुरु हो गया है . यूपी के मुख्यमंत्री ग्रेटर नोएडा में विश्व की सबसे बेहतरीन फिल्म सिटी के निर्माण को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जाहिर कर चुके हैं . लेकिन देखा जाए तो फिल्म सिटी के निर्माण के लिए बुंदेलखंड सर्वथा उपयुक्त है .
सिनेमा को देश में मनोरंजन का सबसे सशक्त माध्यम माना जाता है . एक शताब्दी से अधिक समय की विकास यात्रा में सिने इंडस्ट्री में तमाम बदलाव आए . सिनेमा बदला , भाषाई सिने इंडस्ट्री का विकास हुआ . भारतीय फिल्में विदेश पहुंचीं . फिल्मों की कमाई का ऑकडा करोडी क्लब में जा पहुंचा . लेकिन हिंदी फिल्मोद्योग की ह्रदयस्थली मुम्बई ही बनी रही . ज्यादातर फिल्मों की इंडोर शूटिंग मुम्बई में होती . बडे फिल्मकार आउटडोर शूटिंग के लिए विदेश जाने लगे .जबकि देश में ऐसे सैकडों स्पाॅट हैं जहां फिल्मों की शूटिंग हो सकती है . और ये स्पाॅट कैमरे की नजर से आज भी अछूते हैं .
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा प्रदेश में फिल्म निर्माण के लिए फिल्मसिटी की घोषणा के बाद बुंदेलखंड में फिल्म सिटी बनाए जाने की मांग ने जोर पकडा . फिल्म निर्माण सिने उद्योग का हिस्सा है जिसमें सैकडों की संख्या में लोगों का प्रत्यक्ष और इतनी ही संख्या में अप्रत्यक्ष रूप से एक्सपर्ट एवं अन्य लोगों का जुडाव होता है . फिल्म निर्माण के लिए लगने वाली भारी भरकम धनराशि फिल्म निर्माता फाइनेंस करते हैं . फिल्म का भार उसके डायरेक्टर के कंधे पर होता है . गीत , संगीत , नृत्य , कैमरा यूनिट , डायलाॅग राइटिंग , कहानी व स्क्रिप्ट राइटिंग , लाइट , साउंड , फाइट एक्शन डायरेक्टर , ट्रांसपोर्ट , असिस्टेंट , सेट डिजायनर , काॅस्ट्यूम डिजायनर , कलाकारों का चयन व सहायकों की लम्बी तगडी फौज के अलावा शूटिंग से जुडे उपकरणों का इंतजाम करना पडता है. यही कारण है कि फिल्म की शूटिंग के पहले ही भारी भरकम इंतजाम करना पडता है . इनडोर शूटिंग के लिए मुम्बई की सिने इंडस्ट्री हिंदी व मराठी फिल्मों की राजधानी मानी जाती है. देश में इसके अलावा तमिल , तेलुगु , कन्नड , मलयालम , बांग्ला , असमी , भोजपुरी आदि भाषाओं की अपनी सिने इंडस्ट्री है . इन फिल्मों को भी बडे चाव से देखा जाता है . बल्कि इन भाषाओं की तमाम हिट फिल्मों का रीमेक हिंदी भाषा में भी हुआ है .
बुंदेली फिल्मों का सिने बाजार तो खडा नहीं हो पाया लेकिन ऐसा नहीं है कि हिंदी सिने इंडस्ट्री में बुंदेलखंड का कोई योगदान नहीं रहा है .
29 अगस्त 1917 को झांसी में जन्मे निसार अहमद अंसारी ने परास्नातक की शिक्षा पूरी करने के बाद वे अपने रिश्तेदार के यहां मुम्बई पहुंचे . मुम्बई में विदेशी फिल्में देखने के बाद निसार अहमद को लगा कि भारत में जासूसी व अपराध की फिल्मों का स्तर काफी कमजोर है . हालांकि इसके पहले फिल्मकार महबूब की 1940 में बनी फिल्म औरत और इसके बाद नजमा फिल्म में वे एक्टिंग कर चुके थे . उन्होंने अभिनेता शेख मुख्तार जो उनके घनिष्ठ मित्र थे 1954 में फिल्म मंगू का निर्देशन किया था . इसके बाद उन्होंने मि. लंबू , जीपी सिप्पी की ब्लैक कैट , वांटेड , टावर हाउस जैसी तमाम फिल्में निर्देशित कीं . उन्होंने बुंदेलखंड फिल्म्स के नाम से खुद का प्रोडक्शन हाउस खोला . और मुल्जिम , जिंदगी और मौत , वहां के लोग , मि.मर्डर व जुर्म और सजा फिल्मों का निर्माण किया . जुल्म और सजा उनकी अंत्म थ्रिलर फिल्म थी . हालांकि निर्देशन छोडने के बाद भी उन्होंने अभिनय नहीं छोडा था . एन ए अंसारी के नाम से मशहूर निसार पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने आजादी से पहले मुम्बई पहुंचकर अपने बलबूते न केवल अपनी पहचान बनाई बल्कि अपना प्रोडक्शन हाउस खोला . खुद अभिनय किया , फिल्म निर्माण किया व फिल्मों का निर्देशन भी किया . इसके बाद बारी थी झांसी के ही मुखर्जी परिवार की . आजादी के बाद काम की तलाश में मुम्बई पहुंचे शशिधर मुखर्जी के बाद से 70 साल बाद भी मुखर्जी परिवार फिल्म नगरी से आज भी जुडा हुआ है.
नई पीढी को शायद यह पता भी नहीं होगा कि रानी मुखर्जी का रिश्ता झांसी से है . जब देश गुलाम था उस समय झांसी के कालीबाडी में हरिपद मुखर्जी का परिवार रहता था . हरिपद मुखर्जी के तीनों बेचों शशिधर , सुबोध और प्रबोध का जन्म कालीबाडी वाले घर में हुआ .पढाई पूरी करने के बाद 1949 में शशिधर मुखर्जी काम की तलाश में मुम्बई चले गए जहां उन्हें फिल्मिस्तान कंपनी में लैब टैक्नीशिृन तथा कैमरामैन के रूप में काम करने का मौका मिल गया . सफलता की सीढियां चढते चढते शशिधर ने फिल्मालय स्टूडियो की स्थापना कर डाली . शशिधर को मिली सफलता का परिणाम यह हुआ कि देखते ही देखते मुखर्जी परिवार झांसी से मुम्बई शिफ्ट हो गया . रवीन्द्र मोहन मुखर्जी जो मुंसिफ मजिस्ट्रेट थे उनके पुत्र राम मुखर्जी भी झांसी से मुम्बई चले गए .
1933 में जन्मे राम मुखर्जी ने हम हिंदुस्तानी , एक बार मुस्करा दो , लीडर , रक्तानदिर धारा , रक्तलेखा , सम्बन्ध जैसी फिल्मों को निर्देशित किया . टाॅलीवुड में उन्होंने बंगाली फिल्म बियेरफूल से रानी मुखर्जी को लांच किया . अपनी बेटी के लिए राम मुखर्जी ने हिंदी फिल्म ” राजा की आएगी बारात ” का भी निर्माण किया जो बुरी तरह फ्लाप रही .
क्रमश :

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