भगवान बनाने के बजाय प्रभु का दास बनने का प्रयास करें : आचार्य विनोद शुक्ला

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मौदहा (हमीरपुर) मनुष्य स्वंय को भगवान बनाने के बजाय प्रभु का दास बनने का प्रयास करें, क्योंकि भक्ति भाव देख कर जब प्रभु में वात्सल्य जागता है तो वे सब कुछ छोड़ कर अपने भक्तरूपी संतान के पास दौड़े चले आते हैं। गृहस्थ जीवन में मनुष्य तनाव में जीता है, जब कि संत सद्भाव में जीता है। यदि संत नहीं बन सकते तो संतोषी बन जाओ। संतोष सबसे बड़ा धन है।
मौदहा क्षेत्र के इचौली में भागवत कथा के समापन पर व्यास पीठ से आचार्य विनोद शुक्ला ने यह बातें कहीं।
श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के सातवें दिन श्रीकृष्ण भक्त एवं बाल सखा सुदामा के चरित्र का वर्णन, श्रीमद्भागवत तथा श्रीव्यास पूजन किया। कथावाचक आचार्य विनोद शुक्ला ने कथा के दौरान श्रीकृष्ण एवं सुदामा की मित्रता के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि सुदामा के आने की खबर पाकर किस प्रकार श्रीकृष्ण दौड़ते हुए दरवाजे तक गए थे। “पानी परात को हाथ छूवो नाहीं, नैनन के जल से पग धोये।” श्री कृष्ण ण अपने बाल सखा सुदामा की आवभगत में इतने विभोर हो गए के द्वारका के नाथ हाथ जोड़कर और अंग लिपटाकर जल भरे नेत्रों से सुदामा का हालचाल पूछने लगे। उन्होंने बताया कि इस प्रसंग से हमें यह शिक्षा मिलती है कि मित्रता में कभी धन दौलत आड़े नहीं आती।


आचार्य ने सुदामा चरित्र की कथा का प्रसंग सुनाकर श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। आचार्य ने कहा कि ‘स्व दामा यस्य स: सुदामा’ अर्थात अपनी इंद्रियों का दमन कर ले वही सुदामा है। सुदामा की मित्रता भगवान के साथ नि:स्वार्थ थी, उन्होने कभी उनसे सुख साधन या आर्थिक लाभ प्राप्त करने की कामना नहीं की, लेकिन सुदामा की पत्नी द्वारा पोटली में भेजे गए, चावलों में भगवान श्री कृष्ण से सारी हकीकत कह दी और प्रभु ने बिन मांगे ही सुदामा को सब कुछ प्रदान कर दिया। भागवत ज्ञान यज्ञ के सातवें दिन कथा मे सुदामा चरित्र का वाचन हुआ तो मौजूद श्रद्धालुओं के आखों से अश्रु बहने लगे। उन्होंने कहा श्री कृष्ण भक्त वत्सल हैं सभी के दिलों में विहार करते हैं जरूरत है तो सिर्फ शुद्ध ह्रदय से उन्हें पहचानने की।
इस मौके पर चंद्रभूषण पाण्डे, जिलापंचायत सदस्य प्रतिनिधि विपिन पाण्डे,संजय त्रिपाठी, दिनेश गुप्ता,शशिकांत पाण्डे,ऋषिकांत पाण्डे आदि

एमडी प्रजापति रिपोर्ट

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