भारत-चीन सीमा के पास ‘सोने की पहाड़ी’ के लिए चीन ने बनाई पक्की सड़क – प्रेस रिव्यू

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रिपोर्ट – दुर्गेश सिंह

भारत-चीन सीमा पर एक्चुअल लाइन ऑफ़ कंट्रोल के नज़दीक चीन ने एक पक्की सड़क बनाई है जिसके ज़रिए अब भारी वाहनों की आवजाही हो सकेगी.

अख़बार ‘द इकोनॉमिक टाइम्स’ के अनुसार ये पक्की सड़क भारत के गोगरा पोस्ट के नज़दीक है. सैटलाइट से मिली तस्वीरों के अनुसार इस जगह पर सोना जैसे प्राकृतिक संसाधन हैं. करीब चार किलोमीटर लंबी इस सड़क को महज़ तीन सप्ताह के भीतर बनाया गया है और ये सड़क आगे जा कर उन दूसरी सड़कों से मिलती है जो चीन ने बीते सालों में एक्चुअल लाइन ऑफ़ कंट्रोल के नज़दीक बनाए हैं.

अख़बार कहता है कि मई की शुरुआत से ही भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में तनाव जारी है. इस बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास चीन ने एक ऐसे पर्मानेंट रोड का निमाण कार्य किया है जिससे प्राकृतिक संसाधनों वाली पहाड़ियों तक उसकी पहुंच बढ़ गई है. सूत्रों के हवाले से अख़बार लिखता है कि इस इलाके में पहले ही एक कच्ची सड़क मौजूद थी लेकिन तीन सप्ताह के भीतर तेज़ी से काम करते हुए चीनी सेना ने यहां दो ब्रिज और एक पक्की सड़क बना ली है.

हालांकि ये सड़क वास्तविक नियंत्रण रेखा के नज़दीक है लेकिन इसका इस्तेमाल इन पहाड़ियां तक गाड़ियां और लोग पहुंचाने में किया जा सकता है. ये पहाड़ियां वास्तविक नियंत्रण रेखा के इस तरफ भारत में हैं. हाल में सैटलाइट से मिली तस्वीरों से ये पता चला था कि इसी सड़क पर 10 किलोमीटर पीछे चीन ने भारी हथियार और बख़्तरबंद गाड़ियां तैनात की हैं.

अख़बार कहता है कि भारत ने भी गोगरा पोस्ट पर सुरक्षा बढ़ा दी है लेकिन प्राकृतिक संसाधनों से भरी पहाड़ियों तक पहुंचने के लिए भारत की तरफ कोई पक्की सड़क नहीं है. सैटेलाइट इमेजरी एक्सपर्ट सेवानवृत्त कर्नल विनायक भट्ट ने अख़बार को बताया कि इन पहाड़ियों के नीचे सोना दबा हो सकता है. वो इस इलाक़े को ‘गोल्ड माउंटेन’ कहते हैं. गोगरा पोस्ट ने नज़दीक सड़क बनाने के अलावा चीन ने पेनगॉन्ग सो झी के नज़दीक बंकर भी बनाए हैं.

चीन हमेशा से इस इलाक़े पर अपना दावा करता रहा है हालांकि दोनों देशों की सेनाएं इस इलाक़े में पट्रोलिंग करती हैं. अख़बार के अनुसार बीते 26 दिनों से दोनों देशों के बीच तनाव जारी है और भारत और चीन के हज़ारों सैनिक गलवान और पेनगॉन्ग सो झील के इलाक़े में आमने सामने तैनात हैं.

नेपाल के नए नक्शे को लेकर संसद में पेश हुआ अहम बिल
नेपाल के नए राजनीतिक नक्शे पर औपचारिक तौर पर मुहर लगाने के लिए रविवार को नेपाल की संसद में एक अहम संविधान संशोधन बिल पेश किया गया. देश की क़ानून, न्याय और संसदीय मामलों की मंत्री शिवमाया तुम्बाहान्गफेले ने बिल पेश किया.

देश के तराई वाले इलाक़ों से संबंध रखने वाली मधेसी पार्टियों ने फिलहाल इस बिल पर विरोध जताया है. मधेसियों का नेतृत्व कर रही समाजबादी पार्टी के नेता उपेन्द्र यादव ने कहा है कि इस नक्शे को कर उन्होंने अब तक कोई फ़ैसला नहीं किया है.

अख़बार ‘द हिंदू’ में छपी एक ख़बर के अनुसार ये देश का दूसरा संविधान संशोधन बिल है जो शेड्यूल 3 में 20 मई को जारी किए गए नेपाल के राजनीतिक नक्शे को नए नक्शे से बदलेगा. इस नए नक्शे में लिपुलेख, लिम्पियाधुरा और कालापानी को नेपाल की सीमा का हिस्सा दिखाया गया है.

छह महीने पहले भारत ने अपना नया राजनीतिक नक़्शा जारी किया था जिसमें जम्मू और कश्मीर राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख़ के रूप में दिखाया गया था. इस मैप में लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख को भारत ने अपना हिस्सा बताया था.

इससे एक दिन पहले नेपाल की मुख्य विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली सरकार के इस संविधान संशोधन प्रस्ताव पर अपनी सहमति दी थी. हालांकि औपचारिक तौर पर दो तिहाई बहुमत हासिल करने के लिए इसे संसद में पेश करना ज़रूरी था. माना जा रहा है कि इस नक्शे पर बहस और वोटिंग होने की पूरी प्रक्रिया में एक सप्ताह तक का वक्त लग सकत है.

नेपाल के पूर्व विदेश मंत्री मधु रमन आचार्य ने अख़बार को बताया कि, “नए नक्शे पर सभी मुख्य पार्टियां सहमत हैं ऐसे में ये प्रस्ताव जल्द पारित हो जाएगा. सभी पार्टियां इस बात से सहम हैं कि लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख नेपाल का हिस्सा हैं और नक्शे में देश की सही सीमाओं का दिखाया जाना ज़रूरी है.”

वहीं अख़बार का कहना है कि भारतीय जानकार मानते हैं कि इस बिल का असर दोनों देशों के रिश्तों पर पड़ सकता है.

नेपाल का कहना है कि महाकाली (शारदा) नदी का स्रोत दरअसल लिम्पियाधुरा ही है जो फ़िलहाल भारत के उत्तराखंड का हिस्सा है. भारत इससे इनकार करता रहा है. हाल में भारत ने लिपुलेख से होकर मानसरोवर जाने के रास्ते में एक सड़क का उद्घाटन किया था जिससे नेपाल नाराज़ है.

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