महिला सीएमएस और ठेकेदार की मनमानी से संविदाकर्मियों का शोषण

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पूरे विश्व मे कोरोना संकट के चलते जहां योग्य प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मियों की छुट्टियां रद्द की जा रही है वही रायबरेली में महिला चिकित्सालय की सीएमएस और क्यू सिक्योरिटी की मिलीभगत से स्वास्थ्य कर्मी सड़क पर आ गए हैं। ऐसे समय जब स्वास्थ्य सेवाओं में लापरवाही न बरतने के निर्देश भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय से लेकर प्रदेश सरकार तक दे रही है ये कार्यवाही धन उगाही को का संकेत देती है।उत्तर प्रदेश सरकार में आउटसोर्सिंग नीति को लेकर 16 दिसम्बर 2019 को एक अहम फैसला आया था जिसके बाद अपर मुख्य सचिव ने पत्र जारी कर सभी भर्ती जेम पोर्टल से करने के निर्देश जारी किए थे। चूंकि आउटसोर्सिंग स्टाफ ज्यादातर ठेकेदारों द्वारा रखा जाता है जिसमे उनसे मनचाही उगाही ठेकेदार द्वारा नौकरी देने के नाम पर की जाती है। ऐसे ही एक मामले में शिकायत हुई थी और मामला मुख्यमंत्री के संज्ञान में आने के बाद जांच कराई गई और 4 बड़ी कम्पनियों को ब्लैक लिस्ट किया गया। इसके बाद सरकार ने आउटसोर्सिंग कर्मियों का शोषण न हो इसलिए जेम से भर्ती की नीति बनाई जिसमें भर्ती के लिए कुछ बिंदु प्रमुखता से रखे।

क्या कहता है शाशनदेश

शाशनदेश की बात करें तो जारी होने के बाद उसमे सबसे पहले स्पष्ट था कि आने वाले समय में जो भी भर्ती हो वो सरकारी जेम पोर्टल के माध्यम से की जाय। जो भी सेवा प्रदाता फर्मे पहले से कार्य कर रही है उनसे अनुबंध समाप्ति के बाद सेवा नवीनीकरण न कर के जेम पोर्टल से ली जाए। साथ प्रस्तर 3 के उपबिन्दु 4 में स्पष्ट उल्लेख है कि सेवा प्रदाता बदलने की स्थिति में सिर्फ नवीन कर्मी ही रखे जाएँ बाकी पहले से कार्य कर रहे कर्मियों को न बदला जाए जिससे सरकारी कार्य मे निरन्तरता बनी रहे।

कैसे होती है मनमानी

ज्यादातर सेवा प्रदाता विभागीय अधिकारियों को लालच देकर या गुमराह कर के पुराने लोगो को बिना कारण बताए हटा देते हैं जिससे नए आने वालों लोगो से भर्ती के नाम पर लाभ ले सकें।

क्या है मामला

रायबरेली में महिला सीएमएस ने शासनादेश के तहत जेम से टेंडर करवाया और मनचाहे वेंडर मेसर्स क्यू सिक्योरिटी को सेवा प्रदाता चुन कर 1 अप्रैल से कार्य करने हेतु बुलाया। शासनादेश को दरकिनार करते हुए नए वेंडर ने 1 अप्रैल को ही पूर्व में कार्यरत 4 कर्मियों को निकाल दिया। कर्मियों पर कार्य मे शिथिलता का आरोप लगाया गया। अब बड़ा सवाल ये है कि विगत कई वर्षों से कार्य कर रहे इन लोगो पर इसके पहले कभी भी कोई आरोप नही लगा। अचानक आने के पहले ही दिन ठेकेदार को 9 में 4 लोगो को कार्य में शिथिल दिखाई पड़ गए। उपरोक्त मामले में न तो कार्य व्यवहार के लिए इन लोगो को कोई चेतावनी नोटिस दी गई न ही कोई हटाने का पत्र। बस रोज की तरह ड्यूटी पर जाने पर बताया गया कि आपके स्थान पर कोई और कार्य कर रहा है। इसको लेकर कर्मियों ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी से लेकर मुख्यमंत्री तक शिकायत की है।

पहले से है ठेकेदार का विवादों से नाता

शाशनादेश के बाद पशुपालन विभाग में भी बहुउद्देश्यीय सचल पशु चिकित्सा वाहन के लिए ड्राइवर उपलब्ध करवाने की जिम्मेदारी इसी फर्म को दी गई थी। सूत्र बताते हैं कि वहां पर भी ड्राइवर बदलने की पूरी कोशिश इनके द्वारा की गई।जिसकी शिकायत मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी से लेकर जिलाधिकारी तक की गई। लेकिन अधिकारियों से साठगांठ के चलते ये अपना सिक्का चलाये रखने में कामयाब हो गए।इस समय विश्व के साथ भारत भी गंभीर महामारी संकट से जूझ रहा है ऐसे में पुराने कर्मियो का हटाकर उनके स्थान पर नए कर्मी तैनात करना शासनादेश के उलंघन के साथ मानवता का भी हनन है। नए लोग पूरी तरह से ट्रेंड नही होंगे उन्हें विभागीय कार्य के तौर तरीक़े सीखने में वक्त लगेगा। ऐसे में इस वैश्विक महामारी के समय थोड़े से लालच की स्वार्थपूर्ति हेतु ठेकेदार और अधिकारियों की मिलीभगत की चर्चा हर चौराहे पर हो रही है।

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