राकेश कुमार अग्रवाल
डर हो या साहस इंसान हों या पशु पक्षी थोडा – बहुत हर किसी में होता है . कई बार सोचता हूं तो ऐसा लगता है कि जैसे कुदरत ने या ईश्वर ने सभी में डर और साहस अलग अलग मात्रा में उनके साॅफ्टवेयर में इंस्टाॅल करके पहले से भेजे हैं . देखा जाए तो कितना भी शेखी बघारने वाला व्यक्ति हो थोडा बहुत डरपोक तो हर इंसान होता है .
कोई अँधेरे से डरता है तो कोई काॅकरोच तो कोई सांप , बिच्छू तो कोई छिपकली से डरता है . किसी को पानी से डर लगता है तो किसी को ऊँचाई से डर लगता है . शाहरुख खान एक फिल्म में काम करते हैं फिल्म का नाम था डर . जिसमें क क क क…… किरन बोलकर वे हीरोईन किरन को डराते रहते हैं . तो फिल्म डायरेक्टर रामगोपाल वर्मा एक फिल्म बनाते हैं और फिल्म का नाम रखते हैं डरना मना है . तो कुछ समय बाद वही रामगोपाल वर्मा अपनी दूसरी फिल्म ले आते हैं और कहते हैं कि डरना जरूरी है . मुझ जैसे व्यक्ति को अब यही समझ नहीं आता कि जब डरना मना है तो फिर डरना क्यों जरूरी है ? अपराधी पुलिस से डरते हैं तो विपक्षी पार्टी के नेता सीबीआई से डरते हैं . हीरो हीरोईन एनसीबी ( नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ) से डरते हैं . किसी को एक्साइज का डर है तो किसी को कस्टम का तो किसी को डर है इनकम टैक्स का .
अब तो बीमारियाँ भी डराने में कोई कसर नहीं छोड रही हैं . दबंग फिल्म में हीरोईन कह रही थी कि साहब ! थप्पड से डर नहीं लगता है प्यार से लगता है . मेरे साथ भी बहुत कुछ ऐसा ही हो रहा है . मुझे बीमारी से डर नहीं लगता , मुझे तो उनके नामों से डर लगता है . भले शेक्सपियर पांच सौ साल पहले लिख गए हों कि नाम में क्या रखा है ? मैं तो नाम सुन सुनकर , नाम पढ पढ कर दहशत में आ जाता हूं . बीते डेढ साल में कोरोना ने मुझे जितना नहीं डराया उससे कहीं ज्यादा कोरोना के नए नए वैरिएन्ट डरा रहे हैं . ठीक उसी तरह जब कोई चक्रवाती तूफान आता है तो हर बार तूफान एक नए नाम के साथ आता है . कई बार चक्रवाती तूफान से ज्यादा उनके डरावने नाम कहीं ज्यादा डराते हैं .
लोगों ने जैसे तैसे कोविड 19 का नाम सीखा था . इसके बाद क्वारंटीन , लाॅकडाउन , आईसोलेशन , सेनेटाइजर , एल 1 , एल 2 , एंटीजन टेस्ट , आरटीपीसीआर टेस्ट के नाम सीखे तभी कोविशील्ड , कोवैक्सीन , स्पुतनिक , माॅडर्ना जैसे भारी भरकम नाम आ गए . करत करत अभ्यास के आधार पर थोडा बहुत सीखने में सफल भी रहे लेकिन कुछ महीनों से कोरोना के नए संभावित वैरिएन्ट एडवांस में गदर काटे हुए हैं . अल्फा , बीटा , डेल्टा , एटा , गामा , कप्पा बाहुबली टाइप के वायरस ज्यादा लगते हैं . जैसे पहले राक्षस डराया करते थे . वायरस के वैरिएन्ट के नाम रमेश, सुरेश , रिंकी , पिंकी भी रखे जा सकते थे जिनको न सुनकर डर लगता है न बोलकर लेकिन गामा और कप्पा जैसे नाम तो कटप्पा की तरह प्रतिध्वनित होते हैं . हम लोग तो उस समाज के वासी हैं जिसमें बेटों की शादी के बाद घर आने वाली बहुओं के नाम तक बदल कर अपनी सुविधानुसार रख लेते हैं . भले शादी के पहले लडकी को 20- 25 साल तक घर , बाहर , स्कूल , कालेज में किसी भी नाम से पुकारा जाता रहा हो . लेकिन शादी के बाद उसे एक नया नाम मिल जाता है . बहू को भी इसमें कुछ अटपटा नहीं लगता . लेकिन कोरोना के वैरिएन्ट के नाम जरूर अटपटे लग रहे हैं . विज्ञान व मेडीकल साइंस से जुडे लोगों को हो सकता है कि इन नामों में कुछ भी अटपटा न लगे लेकिन हम लोगों को तो ये नाम भी मंहगाई डायन खाए जात है कि तर्ज पर कोरोना के वैरिएन्ट भी डराए जात है . बहुतेरी बीमारियां आईं और आकर चली भी गईं . लेकिन इतने लम्बे अरसे तक किसी भी बीमारी ने नहीं डराया . अगर बीमारी ने डराया भी तो उनके नाना प्रकार के नामों ने तो कहर नहीं बरपाया . अब तो बस यही लगता है कि या वैक्सीन अब तेरा ही सहारा .