यूरिया की बजाय झोलियाँ भरने में मशगूल है सरकार और प्रशासन : कमल सिंह चौहान
किसान विरोधी है यह सरकार!
रिपोर्ट – दुर्गेश सिंह
रायबरेली : काँग्रेस नेता कमल सिंह चौहान ने कहाकि जिले में यूरिया की किल्लत बढ़ती जा रही है। अभी तक समितियों में खाद की किल्लत थी। लेकिन, अब धीरे-धीरे बाजारों में भी बढ़ने लगी है। जिन दुकानदारों के पास है भी वह मनमाना दाम वसूल रहे हैं। खाद कब आएगी, इसकी भी कोई जानकारी नहीं है। इससे अब किसानों की उम्मीदों पर पानी फिरने लगा है।
कोरोना संक्रमण के दौर में भी जिले में 90 हजार एकड़ में धान की रोपाई की गई। किसानों ने हाड़ तोड़ मेहनत करके धान की फसल तैयार की। लेकिन, अब यूरिया के अभाव में लहलहाती फसल पर संकट मंडराने लगा है। फसलें बर्बाद होने के कगार पर पहुंच चुकी हैं। समितियों में यूरिया न होने पर किसानों की मजबूरी का फायदा दुकानदारों ने उठाया और मनमाना दाम वसूल किया। बाजारों में 20 रुपये से लेकर 80 रुपये तक ज्यादा कीमत पर खाद बिकी। इसके साथ जिक आदि उत्पाद लेने की बाध्यता भी किसानों के सामने रही। अफसर भी इसे जानकर अनजान बने रहे। खाद की बढ़ती किल्लत से किसान अब निराश हो रहा है।
बिना खाद कमजोर हो रही फसल
खाद की किल्लत से किसानों की फसल कमजोर हो रही है। परशदेपुर, खीरों, लालगंज, बछरावां, राही, डीह, डलमऊ, आदि क्षेत्रों की समितियों में यूरिया नहीं है। ऊंचाहार में भोर होते ही किसान आइएफएफडीसी इफको किसान सेवा केंद्र में लाइन लगाकर खड़े हो जाते हैं। प्रतिदिन वितरण होने के बाद भी सभी किसानों को नहीं मिल पा रही है। किसान बताते हैं कि उनको वह भोर से ही केंद्र पर लाइन लगानी पड़ती है। इस वर्ष फसलों में फफूंदी रोग से पीली पड़ रही हैं। अब जरूरत के समय यूरिया नहीं मिल पा रही है। जहां मिलती भी है वहां पर 350 रूपये से लेकर 400 रुपये की दर से खरीदना पड़ता है।
यूरिया की समस्या से क्षेत्र का हर किसान आजिज है, लेकिन उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है।
इस समय धान की रोपाई के बाद अब किसानों को यूरिया का छिड़काव करने की बहुत अधिक जरूरत है, लेकिन यूरिया के नाम पर सिर्फ ठगी का शिकार होना पड़ रहा है। इस बात से व्यथित किसान कई बार क्षेत्रीय अफसरों से शिकायत कर चुके हैं, लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। सहकारी पर तैनात सचिव और कृषि सेवा केंद्रो में तैनात प्रभारी हर समय खाद का टोटा बताते रहते हैं। किसानों को पिछले एक सप्ताह से बैरंग लौटना पड़ रहा है। रोज यही कहा जाता है कि अभी खाद नहीं है, कल आना। दूसरी तरफ बाजारों में अधिक दामों पर यूरिया मिल रही है। इसमें घटतौली और मिलावट भी अधिक रहती है। इससे किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है।