रैगिंग – चुहलबाजी या प्रताड़ना

28

राकेश कुमार अग्रवाल
लखनऊ में सिगरेट पीने से मना करने पर सीनियर्स द्वारा एक दिव्यांग छात्र का यौन शोषण किए जाने की सनसनीखेज खबर से एक बार फिर रैगिंग का जिन्न बाहर आ गया है .
लखनऊ के शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय राष्ट्रीय पुनर्वास विवि में बीएड और एमएड के छात्रों ने 4 फरवरी को बीए प्रथम सेमेस्टर के एक दिव्यांग छात्र को बीएड प्रथम सेमेस्टर के छात्र आकाश और एम एड तृतीय सेमेस्टर के छात्र सत्येन्द्र यादव ने पहले उसे परेशान किया . जब वह खाना खाने के लिए हाॅस्टल जाने लगा तो बरामदे में ही उसे पकड लिया . उसे जबरन खींचकर प्रथम तल पर छात्रावास में ले गए . जहां उसे जबरन सिगरेट पिलाने का प्रयास किया गया . मना करने पर जबरन उसके मुंह में सिगरेट ठूंस दी गई . पीडित छात्र ने धक्का देकर बचने का प्रयास किया तो आगबबूला आकाश और सत्येन्द्र ने दिव्यांग छात्र को सबक सिखाने के लिए उसका जबरन यौन शोषण किया और धमकाते हुए भाग गए . चौंकाने वाली बात यह है कि शिकायत के बावजूद विश्व विद्यालय प्रबंधन पूरे मामले को दबाए रहा .
दरअसल देखा जाए तो रैगिंग की शुरुआत प्रोफेशनल शिक्षण संस्थाओं से हुई थी . तीन चार दशक पहले तक बडे नगरों में ही सीमित संख्या में कालेज होते थे . जहां दूरदराज के गांवों – कस्बों के छात्र भी पढने के लिए पहुंचते थे . ज्यादातर ऐसे छात्र शर्मीले स्वभाव के होते थे एवं शहरी आवोहवा से बहुत दूर होते थे . सीनियर छात्रों द्वारा रैगिंग का उद्देश्य जूनियर छात्रों को नए माहौल के अनुरूप ढालना , उनके साथ हंसी – मजाक व चुहलबाजी करना था ताकि वे स्कूली माइंडसेट से बाहर निकल कर अपने को थोडा मैच्योर महसूस करें . लेकिन इसी चुहलबाजी ने कब इसका रूप स्वरूप बिगाडकर इसे शारीरिक और मानसिक प्रताडना में बदल दिया इसका समाज को तब पता चला जब रैगिंग की प्रताडना से आजिज आए छात्र – छात्राओं ने आत्महत्या कर मौत को गले लगाना शुरु कर दिया .
फलस्वरूप ऐसी घटनाओं की गूंज राष्ट्रीय स्तर पर गूंजी और सरकार को रैगिंग के खिलाफ कानून बनाना पडा . रैगिंग रैग्युलेशन एक्ट के तहत रैगिंग में दोषी पाए गए छात्रों को तीन साल तक का सश्रम कारावास व शैक्षणिक संस्था पर कार्यवाही के साथ अर्थदण्ड का प्रावधान किया गया है . इसके तहत धारा 294 , 323 , 324, 325 , 326, 339 , 341 , 342 व 506 के तहत मुकदमा पंजीकृत कर कानूनी कार्यवाही का प्रावधान है . जून 2009 से राष्ट्रीय एंटी रैगिंग हेल्पलाइन भी शुरु कर दी गई . साथ ही पीडित छात्रों के लिए टोल फ्री नंबर भी जारी किया गया ताकि वे बेहिचक अपनी शिकायतें दर्ज करा सकें . लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर किया गया सर्वे के आँकडे बताते हैं कि 84 फीसदी छात्र सीनियर छात्रों के खौफ से उनके साथ की गई रैगिंग की शिकायत ही नहीं करते .
हाल ही में म.प्र. के भोपाल की एक अदालत ने सात साल पहले रैगिंग की शिकार छात्रा द्वारा खुदकुशी किए जाने के मामले में दोषी करार दी गई चारों सीनियर छात्राओं को 5-5 साल की सजा सुनाने के बाद केन्द्रीय जेल भेज दिया है . 6 अगस्त 2013 को बी.फार्मा सेकंड ईयर की छात्रा अनीता ने आत्महत्या कर ली थी . रैगिंग लेने वाली छात्राओं में दीप्ति एमपीपीएससी की तैयारी कर रही है . निधि तीन साल साल से सिविल का एक्जाम दे रही है . देवांशी की दो साल पहले बैंक अधिकारी से शादी हुई है एवं उसका 11 माह का एक बेटा भी है . मां द्वारा 7 साल पहले ली गई रैगिंग की सजा अब मां के साथ उसके 11 माह के दुधमुंहे बेटे को भी भुगतनी पड रही है . कीर्ति हाउस वाइफ है एवं उसके दो बेटे हैं .
रैगिंग के प्रावधान भी काफी कडे बनाए गए हैं जिसके तहत किसी छात्र का मौखिक उत्पीडन , उसके साथ अभद्रता करना , अनुशासनहीन गतिविधि करना जिससे कष्ट , आक्रोश , मानसिक पीडा पहुंचे , जूनियर के मन में भय उत्पन्न करना या फिर किसी जूनियर छात्र से ऐसे कार्य को करने के लिए कहना जिससे उसे लज्जा , पीडा या भय की भावना उत्पन्न हो . सभी रैगिंग के दायरे में आएंगी .
सीनियर छात्र जब रैगिंग करते हैं उस समय वे अपने कैरियर के मुहाने पर होते हैं . क्योंकि कुछ ही वर्षों में उन्हें अपने कैरियर को मूर्त रूप देना होता है . ऐसे में इस तरह के मामलों में आरोपित होने के बाद इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि उसका कैरियर ही हमेशा के लिए दांव पर लग जाए . सवाल यह भी है कि हंसी मजाक , चुहल बाजी को इतना विकृत रूप नहीं लेना चाहिए कि जूनियर भयभीत और प्रताडित होकर मौत को गले लगा ले या फिर हमेशा के लिए डर और भय उसके जेहन में समा जाए . और सीनियर का नाम आते ही वह खौफजदा हो जाए . अभिभावकों को भी अपने बेटे बेटियों को समझाने की जरूरत है कि सीनियर होने का मतलब जूनियर पर थर्ड डिग्री लगाना नहीं है . बल्कि जूनियर छात्रों का सच्चा हमदर्द बनना है ताकि वे घर व परिवार से दूर नए माहौल में खुद को बेगाना न समझें .

Click