…लड़की हूं… बस इसीलिए गुनहगार थी मैं

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शर्मनाक सियासी सोंच का परिचायक है धन देकर बिलखते मां-बाप के आंसू रोकने की कोशिश
हाथरस की बेटी की लेकर हो रही राजनीति पर शर्मशार है मानवीय चिन्तन

अनुज अवस्थी (वरिष्ठ पत्रकार)

‘मेरे जिस्म के चिथड़ों पर, लहू की नदी बहाई गई, बाद में, मेरे रक्त रंजित शरीर में आग लगाई गई, मुझे याद है, मैं बहुत चीखी चिल्लाई। बदहवास, बेसुध, दर्द से तार-तार थी मैं, क्या लडक़ी हूं, बस इसीलिये गुनहगार थी मैं?’ हाथरस की एक बेटी ऐसी ही कसक लिए सोमवार की देर रात पुलिस द्वारा जबरन सुपर्द-ए-खाक कर दी गयी। अपहरण कर बलात्कार के बाद तड़पा-तड़पा कर मारी गयी हाथरस की निर्भया के गुनहगारों को पकडऩे और फांसी पर चढ़ा देने की मांग को लेकर धरना प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। नेता आ रहे हैं, पुलिस व प्रशासन के अफसर पहुंच रहे हैं। योगी सरकार ने धन देकर बिलखते मां-बाप के आंसू रोकने की कोशिश की तो, अन्य राजनैतिक पार्टियों ने हत्यारों को सख्त सजा दिलाने का भरोसा देकर उनके आक्रोश को शान्त करने का प्रयास किया। कोई नारे लगाकर आक्रोश व्यक्त कर रहा था तो कोई लाश जबरन जलाने और उसे परिजनों को न दिखाने को लेकर संवेदनायें जाहिर कर रहा था। इसमें भी वह लोग शामिल थे जो सिर्फ अपनी राजनीति चमका रहे थे।
रूह को झकझोर देने वाली यूपी की इस घटना पर संवेदनशील समाज तो गमगीन है, लेकिन सियासी सोंच, स्वार्थ की सीमा से बाहर नहीं निकल पा रही है। दरिन्दगी और हैवानियत की हद पार कर गई इस घटना को अपने-अपने तरीके से भुनाने के कुत्सित प्रयास होते देख मानवीय चिंतन शर्मशार है। प्रदेश भर का आम अवाम जब एक बेकसूर बेटी की मौत के बदले इंसाफ की मांग कर रहा था, वहीं कुछ सफेदपोश अपनी सियासत का कद बढ़ाने का रास्ता तलाश रहे थे। शासन, प्रशासन व कानून के पहरेदारों ने न केवल मृतका के परिवार का एक जन्मसिद्ध अधिकार छीन लिया बल्कि उसकी ऐसी चिता सजाई जिसमें न्याय, उम्मीद और विश्वास जैसे शब्द धूं-धूंकर जल गए। दिन-प्रतिदिन स्वार्थ के आवरण में सिमटती समाजसेवा वाली सियासत का असली चेहरा न केवल वीभत्स है, बल्कि डरावना भी है। कोई गमजदा परिजनों के बहाने सरकार और उसके नुमाइन्दों को कटघरे में खड़ा करके खुद को असली हमदर्द बता रहा है तो कोई घटना के बहाने अपने बड़प्पन का लोहा मनवाने में जुट गया है। पता नहीं इन बेशर्म सियासतदानों को कब शर्म आयेगी? फिलहाल लाश की राजनीति थू-थू की पात्र बन गई है। उम्मीद भले है कि उत्तर प्रदेश की तहजीब को कलंकित करने वाली इस घटना में मृतका के साथ न्याय होगा। सवाल फिर भी उठेगा कि क्या इसमें भी मुकदमा चलेगा, तारीखें आयेंगी-जायेंगी, लेकिन मुर्दा आत्माओं के इस समाज में जिंदा लाशों की कहानी बस यूं ही चलती रहेगी?

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