संदीप रिछारिया (वरिष्ठ संपादक)
चित्रकूट। एक तरफ जहां पूरे विश्व मे लाकडाउन के चलते फैक्ट्रियां बन्द होने के कारण जीवनदायनी नदियों को पुनर्जीवन मिलने की खबरे लगातार दिखाई दे रही है। समाचारों में दावा किया जा रहा है कि बिना एक भी रुपया खर्च किये गंगा, यमुना ही नही टिगरिस, वोल्गा, टेम्स जैसी कितनी ही नदियों के सूरते हाल बदल चुके है।लेकिन वही दूसरी ओर धर्मनगरी चित्रकूट से एक ऐसी तस्वीर सामने आती है जो सभ्य समाज के नाम पर बदनुमा दाग के रूप में दिखाई देती है। चित्रकूट की मन्दाकिनी नदी को बर्बाद करने का काम अपनों ने किया है। अपने यहाँ पर दो तरह के है ।एक वो जिन्होंने लगातार मन्दाकिनी को अपनी गंदगी देकर अपवित्र किया है तो दूसरे वो सरकारी करिदे जिन्होंने घाटों को सुंदर बनाने के नाम पर मन्दाकिनी को बालू की बोरियो से पाट दिया है। लगभग दो साल पहले सीढ़ियों को बनाने के नाम पर लाखों बालू से भरी बोरिया मन्दाकिनी के जल में डाली गई थी। कई बार प्रशासनिक अधिकारियों के द्वारा पूछे जाने पर चार छह बोरिया निकलवाकर सिचाई विभाग के अधिकारी लगाकर उनको गुमराह करते रहे। लाकडाउन के दौरान मन्दाकिनी सफाई के लिए चैनल खोले जाने के बाद सच्चाई सामने आ गई है। अब देखने वाली बात यह है कि इस पर जिलाधिकारी क्या एक्शन लेते है।