विशेष रिपोर्ट
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अब पूरा परिवार हो जाएगा भाजपामय
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30 से ज्यादा विधायकों के भाजपा में जाने की तैयारी
संदीप रिछारिया (वरिष्ठ संपादक)
इतिहास दोहराता है। दो लाइनों में समझें तोे दादी कांग्रेस से जनसंघ व भाजपा में आईं तो पिता जनसंघ से कांग्रेस में चले गए। अब ग्वालियर राजघराने की तीसरी पीढी के युवराज यानि ज्योतिरादित्य सिंघिया ने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया है। पिछले दो दिन से चल रहे सियासी ड्रामे की पटकथा की अन्र्तकथा की गुत्थी उस समय सुलझी जब ठीक महराज माधव राव सिंधिया की गरसी के दिन मंगलवार की दोपहर पूर्व मंत्री सिघिया अपनी लैंड रोवर गाड़ी को खुद ड्राइव करते लोक कल्याण मार्ग स्थित पीएम आवास के अंदर गए और कापफी देर बाद उसी गाड़ी में उनके साथ गृहमंत्री भाजपा के चाणक्य यानि की अमित भाई शाह के साथ वापस निकले। कुछ ही देर बाद उनका इस्तीफा भी सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगा। श्री सिंघिया ने अपना इस्तीफा कांग्रेस की चेयरपर्सन सोनिया गांधी को लिखते हुए कहा कि वह पिछले 18 सालों से कांग्रेस पार्टी के माध्यम से लोगों की सेवा कर रहे हैं। अब वक्त आ गया है कि वह नई शुरूआत के साथ आगे बढना चाहते हैं। उन्होंने इशारों में इस्तीफे में कहा कि उनका यह रास्ता पिछले वर्ष से बनना शुरू हो गया था।
मप्र में सरकार की चला- चली की बेला
14 विधायकों के इस्तीफे के बाद कमलनाथ सरकार संकट में आ गई है। इस्तीफे स्वीकार होने के बाद कांग्रेस के पास कुल 100 विधायक रह जाएंगे। फिलहाल निर्देलीय 2 व सपा का एक व बसपा के दो विधायकों का कांग्रेस को समर्थन प्राप्त है। ऐसे में उनके पास 107 विधायक हैं। सरकार चलाने के लिए इतने विधायक तो नाकाफी होंगे।
— Jyotiraditya M. Scindia (@JM_Scindia) March 10, 2020
कुछ इस तरह का है सिंधिया परिवार का राजनैतिक इतिहासः
कांग्रेस से चार बार सांसद और केंद्रीय मंत्री रह चुके ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी राजमाता विजयाराजे सिंधिया जनसंघ की संस्थापक सदस्यों में से एक थीं। हालांकि उन्होंने भी ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह ही अपनी राजनीति की शुरुआत 1957 में कांग्रेस से की थी। वह गुना लोकसभा सीट से सांसद चुनी गईं। लेकिन 10 साल बाद वो कांग्रेस का हाथ छोड़कर 1967 में जनसंघ से जुड़ गईं।
हाल ये था कि इंदिरा गांधी की मजबूत छवि के बावजूद 1971 में जनसंघ ग्वालियर क्षेत्र में तीन सीटें जीतने में कामयाब रहा। विजयाराजे सिंधिया भिंड से, अटल बिहारी वाजपेयी ग्वालियर से और ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया गुना से सांसद बने। वो जब सांसद बने तो सिर्फ 26 साल के थे।
पिता ने छोड़ा था जनसंघ का साथ
घर केे माधवराव के झगड़े का असर नेतागिरि पर भी पड़ा। माधवराव सिंधिया का जनसंघ से मोह भंग हो गया और वो अपनी मां की पार्टी जनसंघ से अलग हो गए। 1980 में माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीतकर केंद्रीय मंत्री भी बने।
ज्योतिरादित्य सिंधिया की दोनों बुआ बीजेपी में
ज्योतिरादित्य सिंधिया की दोनों बुआ वसुंधरा राजे सिंधिया और यशोधरा राजे सिंधिया बीजेपी में हैं। वसुंधरा राजे कई बार राजस्थान की मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं। उनके बेटे दुष्यंत भी राजस्थान की झालवाड़ सीट से बीजेपी के टिकट पर सांसद बने हैं। वहीं दूसरी बुआ यशोधरा ने 1994 में अपनी मां की इच्छा के मुताबिक, बीजेपी जॉइन की और 1998 में बीजेपी के ही टिकट पर चुनाव लड़ा। वो पांच बार विधायक रह चुकी हैं, साथ ही शिवराज सिंह चैहान की सरकार में मंत्री भी।
कांग्रेस मुक्त की ओर बढ़ रही है बीजेपी
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व यूथ विग्रेड के मजबूत चेहरे ज्यातिरादित्य के भाजपा में जाने के बाद भगवा बिग्रेड कांग्रेस मुक्त भारत की ओर तेजी से बढ़ती दिखाई दे रही है। जल्द ही राजस्थान और महाराष्ट में भी सियासी संकट कांग्रेस के सामने आ सकता है। कहा जा रहा है कि राजस्थान में सचिन पाइलेट व महाराष्ट्र में मिलिंद देवडा भी ज्योतिरादित्य के साथ जल्द ही आ सकते हैं।
ज्योतिरादित्य ने अलग राह क्यों चुनी?
दरअसल, 2018 में हुए मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की 15 साल बाद वापसी हुई। लेकिन बहुत कोशिशों के बावजूद ज्योतिरादित्य सिंधिया सीएम नहीं बन सके। आखिर में कमलनाथ के नेतृत्व में सरकार बनी। इस बात को लेकर भी ज्योतिरादित्य की नाराजगी कई बार सामने आई।
माना जाता है इसी नाराजगी को कम करने के लिए उन्हें पार्टी ने प्रियंका गांधी के साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया था। लेकिन वो 2019 लोकसभा चुनाव में भी उतने एक्टिव नहीं दिखे। यहां तक की 2019 लोकसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी सीट भी नहीं बचा सके। नवंबर 2019 में ये भी खबर आई की ज्योतिरादित्य ने कांग्रेस पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है, लेकिन उस वक्त इस खबर को अफवाह करार दिया गया था।
फिलहाल कांग्रेस ज्योतिरादित्य सिंधिया को कॉल, मैसेज सब कर रही है ताकि वो वापस आ जाएं लेकिन इस बार ज्योतिरादित्य सिंधिया आर-पार के मूड में हैं। इसलिए उन्होंने कांग्रेस को अपना इस्तीफा भेज दिया है।