विलुप्त हो गई घरौंदा बनाने की परम्परा

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(मोजीम खान)
तिलोई,अमेठी-क्या क्या होती थी वो बचपन की दीपावली,जब मिट्टी से घर बनाया करते थे। ये मिट्टी के घरौदे अब यादो तक ही सीमित रहे गए है। पता नही कब जैसे जैसे बड़े हुए। मानो पुरानी परम्परा ही गुम होती चली गई। यह परम्परा गाँव के ग्रामीणों से लेकर शहर के लोगो तक पहले थी।लेकिन आधुनिकता के दौर मे दीपावली के शुभ अवसर पर मिट्टी के घरौदा बनाने की परम्परा गावों से लेकर शहर तक गायब हो गई है।

घरौदे से जुड़ी है पौराणिक कथा

जब भगवान श्री राम चौदह साल के वनवास काटने के बाद कार्तिक मास की अमावस्या के दिन अयोध्या वापस लौटे थे। तब उनकी आगमन की खुशी मे नगर वासियों ने अपने घर मे घी के दीपक जलाकर उनका स्वागत किया था। उसी दिन से दीपावली मनाए जाने की परम्परा होती चली आ रही है। कहा जाता है कि अयोध्या वासियों का मानना है कि भगवान श्री राम के आगमन से उनकी नगरी फिर से बसी है।इसी को देखते हुए लोगो द्वारा घरौदा बनाकर उसे सजाने का प्रचलन आरम्भ हुआ था।

आँगन की शान घरौदा

ग्रामीण इलाके मे मिट्टी द्वारा निर्मित घरौदा की एक अलग पहचान थी। पहले शहरी क्षेत्रो मे भी दीपावली के मौके पर इसे बनाया जाता था।लेकिन आधुनिकता के दौर मे अब न तो गावों मे और न ही शहरो मे मिट्टी का घरौदा दिखाई पड़ता है। आधुनिकता के इस चकाचौंध मे सब पुरानी परम्परा विलुप्त होती जा रही है।

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