श्रीमद्भागवत अष्टोत्तर शत चतुर्थ दिवस

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श्रीचित्रकूटधाम के प्राण कामदगिरि व मंदाकिनी को रखें सुरक्षितः आचार्य नवलेश दीक्षित

चित्रकूट। श्रीचित्रकूट धाम की शोभा मां मंदाकिनी और श्रीकामदगिरि से है। यह चित्रकूटधाम की मुख्य धरोहरें हैं। हमारा काम केवल इनको सुरक्षित रखना है। हम कुछ भी करें किसी भी प्रकार करें लेकिन इन अमूल्य धरोहरों को सुरक्षित रखने के लिए अपना सर्वस्व योगदान दें।

विश्व प्रसिद्व महातीर्थ श्रीचित्रकूटधाम स्थित श्रीजी होटल में आयोजित हो रहे श्रीमद्भागवत अष्टोत्तर शत ज्ञान यज्ञ में चतुर्थ दिवस की कथा के दौरान जैसे ही जिलाधिकारी अभिेषेक आनंद व एसपी वृंदा शुक्ला पहुंची तो विश्व प्रसिद्व भागवताचार्य आचार्य नवलेश दीक्षित जी महराज को पत्रकारों को दिया गया अपना वचन याद आ गया।

उन्होंने कहा कि किसी भी बात को उचित स्थान व समय पर कहा जाए तो उसका प्रभाव होता है। कथा के बीच में उन्होंने न केवल चित्रकूट की महिमा का गुणगान किया, बल्कि डीएम व एसपी को उनके कर्तव्य से परिचित कराते हुए कहा कि वैसे तो मंदाकिनी व श्रीकामदगिरि परिक्रमा में गंदगी फैलाने वाले बाहर से नही आते बल्कि हम आप लोग ही हैं। लेकिन हम सब लोग मिलकर अगर चित्रकूट को स्वच्छ व सुंदर बनाने का प्रयास करेंगे तो सफलता अवश्य मिलेगी।

उन्होंने कहा कि यह मामला उपदेशात्मक नही बल्कि जिम्मेदारी का है। अगर श्री कामदगिरि परिक्रमा में थूकने व गंदगी फैलाने वालों को हाथ जोड़कर टोंकना प्रारंभ कर दें, उन्हें बताएं कि परिक्रमा में थूकना, गंदगी फैलाना महापाप है तो वह लोग मानेंगे, लेकिन पहल हमें ही करनी होगी।

श्री चित्रकूट की महिमा का गुणगान करते हुए भागवताचार्य जी ने कहा कि भुज भुवंग तुलसी नकुल,डसत ग्यान हर लेत, चित्रकूट इक औषधि चितवत होत सचेत। अगर चित्रकूट में आकर मां मंदाकिनी का स्नान और भगवान कामदगिरि की परिक्रमा कर ली तो मनवांछित फल की प्राप्ति जरूर होगी।

चित्रकूट की महिमा का गुणगान करते हुए आचार्य श्री ने बताया कि वृन्दावन में तो श्रीकृष्ण ने केवल एक रास किया है, जबकि चित्रकूट की धरती पर श्री राम ने सैकड़ों की संख्या में महारास किए हैं। वहां पर केवल निधि वन है जबकि चित्रकूटधाम में प्रमोद वन, आमोदवन, श्रंगारवट आदि कई स्थल है।

स्फटिक शिला पर तो भगवान ने स्वयं मां सीता का श्रंगार किया है। साधकों की हार्दिक इच्छा श्री कामदगिरि हनुमत चरण, मंदाकिनी को तीर। ये तीनों छूटे नहिं जब तक रहै शरीर को बताया।

दशम स्कंध की कथा के दौरान उन्होंने नारायण के कई अवतारों का जिक्र किया। बताया कि कैसे राजा बलि ने छल से नासराण को अपना दरबान बनाया और फिर कैसे नारायणी वलि को अपना भाई बनाकर वापस लाईं।

कथा के दौरान बताया कि कभी भी प्रभु कथा के दौरान वक्ता के उपर आसन लगाकर कथा नही सुननी चाहिए। श्रीकृष्ण जी के हनुमान जी को दिए गए श्राप के कारण ही उन्हें प्रेत योनि आना पड़ा। मेंहदीपुर बालाजी मंदिर में आज भी प्रेत योनि में पड़े लोगों को शांति मिलती है।

कथा के चौथे दिन मंच से डीएम अभिेषेक आनंद व एसपी वृंद्वा शुक्ला सहित अन्य लोगों का सम्मान किया गया।
सुबह के सत्र में सुबह के सत्र में कानपुर के विद्वान ज्योतिषाचार्य आचार्य गौरव शुक्ल, बांदा के वैदज्ञ विनोद शुक्ला जी के नेतृत्व में देश भर से आए विद्वान श्रीमद्भागवत महापुराण के मूल पाठ का सस्वर गायन कर इस महायज्ञ में अपनी आहुतियां दे रहे हैं।

कार्यक्रम में यजमान बनने के लिए दिल्ली,एमपी, असम, बिहार, छत्तीसगढ़,सहित अन्य राज्यों से भक्त गण आए हुए हैं। आज मंच पर श्रीमद्भागवत पुराण का डा0 सुरेंद्र अग्रवाल, अजय अग्रवाल, डा0 सीताराम गुप्ता, डा0 सुधीर अग्रवाल, महेंद्र अग्रवाल, मनीष अग्रवाल, शंकर जी, राजकुमार अग्रवाल, शकुंतला, प्रभाकांत पाठक, उपेंद्र मिश्रा, त्रिभुवन त्रिपाठी, श्रीसूर्यबंशी, रामसिंह, अरिमर्दन सिंह, अशोक शुक्ला आदि ने पूजन व अर्चन किया। शाम के सत्र में महाराजा मत्तगयेन्द्रनाथ ट्रस्ट के कर्ताधर्ता प्रदीप तिवारी, भाजपा के वरिष्ठ नेता पंकज अग्रवाल, राजीव अग्रवाल सहित अन्य गणमान्य लोग मौजूद रहे।

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