कोई पैदल तो कोई साइकिल पर सवार होकर हजारों किलोमीटर के सफर पर निकल पड़ा है
सियासत के वायदे हवा हवाई, ज़मीन पर रहने वाला मजदूर लाखों करोड़ के जीरो भी नहीं समझता
रायबरेली– प्रवासी मजदूरों की खतरे भरी जिंदगी देखना हो तो रायबरेली के चारों कोनों में खड़े हो जाइए चाहे वह फिर रायबरेली- कानपुर हाईवे हो, सिविल लाइन चौराहा, रायबरेली -प्रतापगढ़ मार्ग, रायबरेली- इलाहाबाद या राजधानी को जाने वाले हाईवे में मजदूरों की दुर्दशा की तस्वीरें खुलेआम निकलकर सामने आ जाएंगी और आप भी सोचने पर मजबूर हो जाएंगे क्या वाकई प्रशासन और सियासत के सभी उपाय मौजूदा समय में कारगर हो रहे हैं ?जवाब में यही आएगा नहीं साहब नहीं! बेबसी और सितम भूख तड़प के साथ मजदूर अपने गांव की ओर कूच कर रहा है उसे यह वह कितनी जल्दी अपने घर पहुंच जाए और अपनों से मिल ले। इन सबके बीच तस्वीरें सामने निकल कर आ रही हैं रायबरेली शहर के बीचों बीच स्थित सिविल लाइन चौराहे पर प्रवासियों मजदूर पहुंच रहे हैं चौराहे पर वह वाहन का इंतजार करते हैं कोई वाहन उन्हें बैठाता नहीं है तो वह पैदल ही आगे की ओर कूच कर देते हैं।मन में यह उम्मीद है कि वह अगर सही सलामत घर पहुंच जाएंगे तो जरूर बच जाएंगे और शायद आगे की जिंदगी वह आसानी से जी सकें। लेकिन यह सफर मौत से कम भी नहीं है कोई भूखा है और भीषण तपा देने वाली गर्मी में वह बीमार भी हो रहे हैं कोई महिला है तो उसके छोटे-छोटे बच्चे नंगे पैर पैदल चले जा रहे हैं, बुजुर्ग हैं वृद्ध महिलाएं हैं जो गुजरने वाले वाहनों को रोकती हैं और कहती हैं हमें बैठा लो लेकिन डर और खौफ के मारे कोई उन्हें अपने वाहन में जगह नहीं देता।
चल रहे ट्रक बन रहे हैं वरदान, है गलत लेकिन फिर भी ट्रक चालक बैठने की देते हैं जगह
छोटे बच्चे वृद्ध महिलाओं को देखकर चल रहे ट्रक चालक यदि खाली होते हैं तो वह उन्हें अपने साथ ले जाते हैं ट्रक चालक का भी दिल पसीज जाता है यह देखकर कि तपा देने वाली इस गर्मी में वृद्ध महिलाएं और बच्चे तड़प- तड़प कर पैदल चल रहे हैं लेकिन नहीं पसीजता तो प्रशासनिक व्यवस्था और नेताओं का दिल जो इतना कठोर हो गया है अपनी जिम्मेदारियों से वह भाग चुके हैं। यही मजदूर और यही खेत पर काम करने वाले किसान उन्हें वोट देकर विजय मुकुट दिलाते हैं लेकिन आज जब वह मजदूर मौत से सामना कर रहा है तो उनकी मदद करने वाला कोई नहीं है।
गुजरते प्रवासी नवयुवक मजदूर ने सुनाई दास्तान
फतेहपुर डलमऊ रायबरेली मार्ग से पैदल गुजरते हुए नौजवान प्रवासी मजदूरों ने बताया साहब हम मीडिया से बात नहीं करना चाहते क्योंकि मीडिया तो सरकार का हित ही दिखा रही है हमारा दुख बता ही नहीं रही है। हमारी संवाददाता ने जब उनसे पर्सनल जानकारी साझा करनी चाही तो उन्होंने बताया हम गांव में नहीं जा सकते लोगों से डर लगता है कहीं वह उन्हें मार ना डालें। इसलिए हाईवे के किनारे किनारे वह पैदल चल रहे हैं चंडीगढ़ से पैदल आए हैं अमेठी जाना है उन्होंने कहा खाने का भी इंतजाम नहीं हो पाता पानी पी पीकर रास्ते से गुजरते चले आए हैं कुछ अच्छे लोग मिल जाते हैं तो दूर खाना रख देते हैं और उठाकर हम खा लेते हैं।लेकिन साहब अब दुबारा शहर नहीं जाएंगे मजबूरी खींच ले जाती है जो भी आता है वोट लेकर चला जाता है मेरे जनपद में अगर फैक्ट्री होती तो हम लोग बाहर हरगिज़ नहीं जाते। ऐसी जमीनी हकीकत आम हो गई हैं लेकिन उससे किसी को प्रभाव भी नहीं पड़ता मजदूरों को उन्हीं के हाल पर छोड़ दिया गया है जो निंदनीय है और दर्दनाक भी।
सामने आए प्रशासन पैदल चल रहे प्रवासी मजदूरों की करे मदद
रायबरेली जिला प्रशासन को चाहिए कि वर्तमान हालातों को देखते हुए पैदल चल रहे प्रवासी मजदूरों के लिए किसी साधन की व्यवस्था कर दें जिससे वह कम से कम पैदल ना चले या फिर उन्हें किसी एक जगह पर रोक दिया जाए जिससे वह अपने आप को खतरे में न डाल सकें।लेकिन बेपरवाह प्रशासन को कोई फिक्र ही नहीं है मजदूर अपनी जिंदगी अपने छोटे-छोटे बच्चों की जिंदगी को खतरे में डालकर आगे बढ़ रहे हैं क्योंकि उन्हें घर तो पहुंचना ही है। ऐसे में रायबरेली जिला प्रशासन को तत्काल मदद मुहैया करानी चाहिए जिसमें वाहन की व्यवस्था या फिर जिन आधार पर व्यवस्थाएं हो सके वह की जाए ऐसी मजदूरों की मांग है।