सरसंघचालक मोहन भागवत ने दीनदयाल शोध संस्थान के कार्यकर्ताओं को किया संबोधित

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संदीप रिछारिया

चित्रकूट/ दीनदयाल शोध संस्थान के आरोग्यधाम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रांत प्रचारक बैठक के दौरान अपने आठ दिवसीय प्रवास पर चित्रकूट पधारे सरसंघचालक श्री मोहन राव भागवत ने प्रवास के अंतिम दिन जाने से पूर्व दीनदयाल शोध संस्थान के सभी प्रकल्पों के प्रभारियों एवं ग्रामीण क्षेत्रों में स्वावलंबन अभियान का काम देख रहे समाजशिल्पी दंपतियों को संबोधित किया।

संस्थान के कार्यकर्ताओं के साथ परिचयात्मक एवं जिज्ञासा बैठक के दौरान संस्थान के कार्यकर्ताओं ने श्री भागवत जी से पूछा कि वर्तमान में सामाजिक, आर्थिक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस तरह की परिस्थितियां बन रही है उनमें दीनदयाल शोध संस्थान जैसे जो संगठन एवं संस्थाएं हैं जो देश भर में काम कर रहे हैं, उनमें अभी खासतौर पर जो ग्रामीण क्षेत्र में काम कर रहे हैं उनमें एक चीज देखने में आ रही है कि ग्रामीण क्षेत्र में लोगों की आकांक्षाओं एवं अपेक्षाएं उनमें बहुत तेजी से सामाजिक बदलाव आया है। ऐसे में दीनदयाल शोध संस्थान जैसी संस्थाओं को क्या करना है उनके लिए क्या मार्गदर्शन है।

इसका उत्तर देते हुए सरसंघचालक श्री भागवत ने कहा कि कुछ तो समय बदलता है उसके अनुसार सब को बदलना होता है। आकांक्षाएं तो पहले भी थी। यह समाज में चलने वाली मानसिक प्रक्रिया है। प्रवृत्ति हमारी है थोड़ा चिंतन करते रहना चाहिए। कई बातों को तो कोरोना की परिस्थितियों ने बता दिया। ऐसी बातों को पहचानना। उसमें जो शाश्वत है, सत्य है, वही चिरंतन है, वही सस्टेनेबल है। जो असत्य है वह सत्य की कसौटी पर टिकने वाला नहीं है। अपना परिवार का पालन पोषण किस तरह करना, समाज की व्यवस्था किस तरह चले, सृष्टि ठीक रहे, यह एक अपना तरीका अपने पास है, भारत के पास है।

उन्होंने कहा कि ग्रामीण एवं वनवासी क्षेत्रों में आज भी संस्कारों का नुकसान नहीं है, वहां संस्कारों में कोई क्षति नहीं हुई है। शिक्षा नहीं पहुंची उसका नुकसान हुआ है लेकिन शहरी क्षेत्रों में शिक्षा आ गई उसके कारण कुछ नुकसान भी हुआ है। वहां ऐसा नहीं हुआ इसीलिए यहां ठीक है‌। इसीलिए ऐसी बातों पर लोगों को आगे रहना चाहिए, समाज को प्रबुद्ध बनाना चाहिए। उन्होंने आयुर्वेद का उदाहरण देते हुए कहा कि काल की कसौटी पर जो आयुर्वेद में है वह एलोपैथी में नहीं है। इसका मतलब यह नहीं कि एलोपैथी ठीक नहीं उसका भी एक अपना महत्व है।

इस मौके पर आरोग्यधाम के वरिष्ठ चिकित्सक न्यूरो सर्जन डॉ मिलिंद देवगांवकर ने बताया कि आरोग्यधाम में आयुर्वेद एवं मॉडर्न मेडिसन के साथ इंटीग्रेटेड थेरेपी का मॉडल तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं, उस पर अनुसंधान भी चल रहा है। उसके अंतर्गत बहुत सारी बीमारियां उसके अंतर्गत आयुर्वेद में बहुत सारी अच्छी दवाइयां है उसको साइंटिफिक तरीके से बाहर लाने की कोशिश कर रहे हैं।

इस पर श्री भागवत जी ने कहा कि चिकित्सा में एक और विचार करना चाहिए जैसे इंटीग्रेटेड थेरेपी एक अलग बात है, वैसे ही स्पेसिफिक थेरेपी भी है। हर व्यक्ति की प्रवृत्ति अलग-अलग होती है पॉलीसिस्टेमिक रिलीफ उसमें सब उपलब्ध है। उसकी कुछ हिस्ट्री है कुछ लक्षण है उसके आधार पर उपचार किया जाना चाहिए।

श्री भागवत ने कहा कि हमारा काम है संपर्क के जरिए लोगों को संस्कारवान बनाना। डीआरआई इसी कार्य में लगा हुआ है। इसके सभी कार्यकर्ता इस दिशा में पूरी ईमानदारी से लगे हुए हैं। उन्होंने कहा कि काम हमें अनुभवी बनाता है। लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्धता तथा विचारों के प्रति समर्पण हमें संगठन में टिकाए रखता है।

इस अवसर पर दीनदयाल शोध संस्थान के प्रधान सचिव श्री अतुल जैन, संगठन सचिव श्री अभय महाजन, कोषाध्यक्ष श्री बसंत पंडित एवं महाप्रबंधक श्री अमिताभ वशिष्ठ, उप महाप्रबंधक डॉ अनिल जायसवाल सहित संस्थान के सभी प्रकल्पों के प्रभारी एवं समाज शिल्पी दंपत्ति उपस्थित रहे।

मंगलवार की सुबह सरसंघचालक श्री मोहन भागवत द्वारा संघ स्थान के बाद आरोग्यधाम में मंदाकिनी कॉटेज के समीप (पंचवटी) 5 पौधों का रोपण किया गया। पंचवटी में पांच प्रकार बड़, पीपल, आंवला, अशोक और बेल के पौधे लगाए गए। ये वो पौधे हैं जो सबसे ज्यादा आक्सीजन देने वाले हैं।

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