सर्कस की दुनिया और रामसिंह चार्ली

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इंसान की तमाम जरूरतों में से एक है मनोरंजन . हर देश काल के मनोरंजन के अपने तौर तरीके थे . आजादी के बाद से लेकर दस वर्षो पूर्व तक सामूहिक इंटरटेनमेंट का सबसे बडा माध्यम सर्कस था . जिसमें प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से सैकडों कलाकार , व्यवस्था से जुडे कर्मचारी , पशु व पक्षी शामिल होते थे . एक तरह से यह लघु उद्यम की तरह था . जिस शहर , नगर में सर्कस जाता था कम से कम एक डेढ माह तक सर्कस के कलाकार प्रदर्शन करके लोगों का इंटरटेनमेंट और अपने लिए रोजी रोटी का इंतजाम करते थे . सर्कस हो और जोकर न हो भला कहीं ऐसा होता था . बौना कलाकार अपनी वेशभूषा और हरकतों से सहज ही बच्चों से लेकर बुजुर्गों सभी को हंसा देता था .
बचपन से लेकर समझदारी की उम्र तक मुझे भी दर्जनों बार सर्कस देखने का अवसर मिला . शाहरुख खान अभिनीत सीरियल ‘ सर्कस’ भी देखा तो राजकपूर की फिल्म ‘ मेरा नाम जोकर ‘ भी . जब छोटा था सर्कस देखता था तो मन करता था कि काश ! मैं भी इसी सर्कस में कलाकार होता . कितनी शानदार दुनिया है इनकी . सैकडों लोग एक तम्बू के नीचे , ट्रकों पर लदकर कभी इस शहर कभी उस शहर , लोगों का मनोरंजन , साझा सुख – साझा दुख . वक्त का पहिया घूमा और देखते ही देखते सर्कस इंडस्ट्री खत्म होने के कगार पर पहुंच गई .
जब एक सर्कस बंद होता है तो उससे जुडे कलाकार की जिंदगी किस तबाही के कगार पर आकर खडी हो जाती है . इसी विषय पर ओटीटी प्लेटफार्म सोनी लिव पर हाल ही में फिल्म रामसिंह चार्ली प्रदर्शित हुई है . नितिन कक्कड निर्देशित व शारिब हाशमी और नितिन कक्कड द्वारा लिखी यह फिल्म देखने काबिल है . कुमुद मिश्रा ने रामसिंह चार्ली का किरदार निभाया है . एक तरफ सर्कस बंद होने के बाद रोजगार की जद्दोजहद दूसरी तरफ गर्भवती पत्नी हालात का मारा रामसिंह जो सर्कस में चार्ली चैप्लिन का किरदार निभाता था कोलकाता की सडकों पर नंगे पैर जब हाथ रिक्शा लेकर दौडता है तो विमल राय द्वारा निर्देशित व १९५३ में प्रदर्शित फिल्म ‘ दो बीघा जमीन ‘ की याद आ जाती है . जिसमें शम्बू महतो का किरदार निभा रहे बलराज साहनी कोलकाता में हाथ रिक्शा चलाते हैं . इस फिल्म को कान्स फिल्म फेस्टीवल में प्रदर्शित किया गया था . इसे बेस्ट फिल्म और बेस्ट डायरेक्टर का अवार्ड भी मिला था .
गरीबी से जूझ रहे लोग जैसे तैसे एक काम में हुनर मंद होते हैं और अकस्मात उनके हाथ से जब वो काम भी छिन जाता है तब क्या होता है आम इंसान के साथ इसी ताने बाने पर बुनी कहानी आपकी संवेदनशीलता को जगाने और झकझोरने में कामयाब रही है यह फिल्म . समय निकालकर जरूर देखें रामसिंह चार्ली को . और कुमुद मिश्रा के सधे हुए अभिनय को .

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