हाथरस मे बिटिया के साथ हुई घटना का जो भी दोषी है उसे तत्काल हो फांसी की सजा : समाजसेवी आचार्य श्रीकांत तिवारी

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रिपोर्ट – संदीप कुमार फिज़ा

सरेनी (रायबरेली)। सरेनी क्षेत्र के अन्तर्गत स्थित महराजपुर निवासी समाजसेवी आचार्य श्रीकांत तिवारी ने हाथरस की घटना पर दुख जताया है,और उन्होंने कहा कि आज पूरा देश इस घटना से दुखी है।हमारे देश की इस बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए हम सभी सरेनी क्षेत्रवासी सरकार से मांग करते हैं कि ऐसे दरिंदों को जेल नहीं सीधे फांसी होनी चाहिए!आपको बता दें कि श्रीकांत तिवारी ने कहा कि इसमें कहीं न कहीं कानून व्यवस्था का सिस्टम भी दोषी है। हाथरस जिला प्रशासन के द्वारा इस मामले को संज्ञान में लेते हुए तत्काल सीबीआई जांच बैठा कर हाथरस की बेटी को इंसाफ दिलाया जाए। हमारे देश की कितनी ही बेटियां हैं जो अपने आपको असुरक्षित महसूस करती हैं, जो बहुत ही दुखद है। उन्होंने सरेनी क्षेत्रवासियों की तरफ से सरकार से मांग की है कि हाथरस की घटना का जो भी दोषी है, उसे तत्काल फांसी की सजा हो, जिससे हमारी हाथरस की उस बेटी को इंसाफ मिल सके। श्री तिवारी ने कहा कि ये लड़की बाल्मीकि है इसलिए न्याय दो, ये लड़की जाट है इसलिए न्याय दो, ये लड़की राजपूत है इसलिए न्याय दो,ये लड़की ब्राह्मण है इसलिए न्याय दो, ये लड़की गुर्जर है इसलिए न्याय दो, ये लड़की यादव है इसलिए न्याय दो,ये लड़की दलित है इसलिए न्याय दो,ये लड़की सवर्ण है इसलिए न्याय दो, ये लड़की कश्यप है इसलिए न्याय दो, ये लड़की निषाद है इसलिए न्याय दो,ये लड़की हरिजन है इसलिए न्याय दो,ये लड़की मुस्लिम है इसलिए न्याय दो जब तक ये विभाजन रहेगा तब तक कुछ बदलाव नहीं हो सकता। जब ये होगा कि ये लड़की भी एक सजीव प्राणी है,इसके भी अपने अधिकार हैं, ये भी मनुष्य है,इसको भी पीड़ा होती है और बहन बेटियां तो सबकी समान ही होती हैं,इसलिए इसकी रक्षा करना और ध्यान रखना,इसको सुरक्षित अनुभव कराना हमारा दायित्व है। जब यह भावना हो जाएगी हम सबकी तब समाज की मानसिकता परिवर्तित हो सकती है।साथ ही साथ उन्होंने कहा कि जब तक ये जाति के पुरोधा सब बेटियों को अपनी बेटी की तरह नहीं मानेंगे तब तक कुछ नहीं होगा, आप बेटी न कहकर उसमें जाति सम्मिलित कर रहे हैं तो आप मेरे लिए एक धूर्त व्यक्ति से अधिक और कुछ नहीं हैं, जिसे एक बेटी की आड़ में अपना एजेंडा पूरा करना है। हर बेटी को न्याय मिले लेकिन बेटी है इंसान है यह सोचकर न कि जाति देखकर।

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